अविश्वस्नीय झलकियों के भाग-1 व भाग-2 में कुछ झलकियाँ प्रकाशित एवं वितरित करने के बाद कुछ और ऐसी झलकियाँ मुझे स्मरण हो आईं, जिन्हें मेरे सुपर मॉस्टर गुरूजी ने इस पुस्तक में लिखने के लिए निर्देशित किया, जिसे अविश्वस्नीय झलकियाँ भाग-3 के नाम से जाना जायेगा।
मैं आत्म विभोर हूँ और आपके लिए भी यही आशा करता हूँ। समय की सभी बाधाओं को भूलते हुए मेरे संग अतीत की यात्रा करें। मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है कि मुझे उनके नज़दीक रहने, खड़े होने, उनके समक्ष या पास बैठकर अपनी आँखों को सुख देने का अवसर मिला और ‘गुरुजी’ की मधुर वाणी से ‘आ पुत’ सुनने का परम आनन्द प्राप्त हुआ।
“आओ बेटा, क्या बात है?”
“जी मैंने सुना है कि आप सबको ठीक कर देते हैं। मुझे ये बीमारी है और मैंने बहुत इलाज कराया पर आराम नहीं आया। किसी ने कहा कि आप गुरु हैं और सबका भला करते हैं इसलिए आपके पास आया हूँ। मुझ पर मेहर करें। मैं दवाईयाँ खा खाकर थक गया हूँ।”
“…बैठो बेटा।”
फिर एक आवाज़ पर पानी का गिलास मंगवा कर अपने माथे से लगाकर कहना, “लो… जल पी लो बेटा, जाओ आज के बाद तुम ठीक..! कोई दवाई नहीं खाना। इतने दिन के बाद बड़ा वीरवार आयेगा, तुम सवा रुपये की मीठी फुल्लियाँ प्रसाद के रुप में चढ़ा देना स्थान पर।”
और बस, इतना ही..!! बीमार की बीमारी खत्म, बिना किसी दवाई या डॉक्टरी इलाज के।
ऐसा ही होता रहा सालों साल ….और मैं देखता रहा… देखता रहा..!
एक बार हिम्मत करके पूछा, “आप इतना कुछ करते हो सुबह से रात तक लोगों के दुख दूर करते हो और थकते भी नहीं। आप क्यों करते हैं ये सब । ना कोई पैसा और यहाँ तक कि कोई गिफ्ट भी नहीं लेते, आपको मिलता क्या है..?”
“…इनकी दुआएँ, तड़पती हुई इनकी आत्माओं का शांत और स्थिर होना, मुरझाये हुए इनके चेहरों का खिल जाना, …ये मिलता है मुझे। इन सबके अन्दर भगवान विराजमान हैं आत्मा के रुप में। मेरे दिये हुए सुख को वो मालिक ही इनके अन्दर से महसूस करता है और इनका रोना बन्द। फिर निकलती हैं इनकी आत्माओं से दुआएँ । …ये मिलता है मुझे। और… ये वो दौलत है जो खर्च करने से खत्म नहीं होती। धन रुपया खर्च करने से खत्म हो जाता है मगर ये दौलत जितनी खर्च करो, उतनी बढ़ती जाती है।
ईश्वर की माया के कारण इन लोगों को याद नहीं कि ये कौन हैं। लेकिन मैं जानता हूँ। कोई भी जब मेरे सामने आकर बैठता है, तो जन्म से मृत्यु तक, सब पता लग जाता है मुझे। जिस बीमारी को लेकर आया है, उसका कारण भी पता चल जाता है। कैसे और कितने दिन में ठीक करना है, वो भी जानता हूँ। मेरे पास उस मालिक का दिया हुआ भंडार है। जरा सा बाँट देता हूँ, रोता हुआ, हंसता हुआ वापिस जाता है। …ये मिलता है मुझे बेटा।
जिसे इतनी पीड़ा है कि सहन नहीं होती और डॉक्टरों व दवाईयों ने भी हाथ खड़े कर दिये हों, मौत सामने है और वो मरना नहीं चाहता, उसे मैंने आराम दे दिया और मौत का डर खत्म कर दिया, कभी उससे पूछना ये सवाल। पूछना उससे कि आपको ठीक करके गुरुजी को क्या मिला!”
“भगवान को बुरा तो नहीं लगता कि आप उसके निज़ाम में दखल देते हैं. ?”
“बड़ा खुःश होता है वो..! उसी के कहने पर ही कर रहा हूँ ये सब ।” अपने बनाये हुए बन्दों के अन्दर ही रहता है आत्मा के रुप में। सुख उसी को महसूस होता है। बेटा, बहुत खुश होता है वो मालिक।
वाह…!! कैसा अछूता ज्ञान है आपके पास, गुरूजी। ना कभी सुना और ना ही कभी देखा। सच में आप गुरुओं के भी गुरू हैं। आपके पास एक मिनट बैठना स्वर्ग में एक युग के समान है साहेब जी…
कभी जुदा ना होने देना और ना ही कभी करना, मालिकों के सरताज।
कोटि-कोटि प्रणाम।
आम मनुष्य को जब कभी शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा आ घेरती है तो उससे बचने के लिए वह रास्ते तालाशता है। स्वाभाविक रुप से वह डॉक्टरों-हकीमों के बारे में सोचता है या अस्पतालों में जाने का प्रबन्ध करता है।
जैसे ही कोई दुखी या मरीज़ किसी डॉक्टर के पास पहुंचता है तो डॉक्टर खुःश होता है! कारण यह कि उसे अब आमदनी होगी… धन मिलेगा…।
लेकिन जैसे ही वो गुरुजी के पास पहुंचता है तो वे भी खुःश होते हैं। परन्तु अब कारण भिन्न है। गुरुजी को खर्च करना पड़ेगा, अपना ईश्वरीय धन। कमाल का फर्क है खुःशी और खुःशी के बीच।
वाह….
हे गुरूदेव, वाह..!!
आफरीन..!
आफरीन
राज्जे, गुरू शिष्य,
(राजपॉल सेख़री)
18 अप्रैल, 2011
आइए, अब तृतीय भाग का आनन्द लीजिए…