डी. एस. जैन एक भक्ति परायण गुरूशिष्य और जगदीश सैंगर एक भक्त है। एक बार डी. एस. जैन को सैंगर का धमकी भरा, फोन आया कि कौन महारथी है मैं सबको उठाकर फैंक दूंगा। यह कहकर उसने टेलीफोन रख दिया।
जैन साहब जगदीश सैंगर के घर गये। वहाँ उन्होंने देखा कि उसकी जीभ उसके मुंह से बाहर आ रही है और अपने आकार से दुगनी बड़ी हो गई है। जैन साहब समझ गये कि यह किसी प्रेत आत्मा से ग्रसित है। उन्होंने उसे गर्दन से पकड़ा और उसकी जीभ उसके मुँह के अन्दर कर दी।
जैन साहब ने सैंगर के अन्दर स्थित शक्ति से उसकी पहचान तथा उसके शरीर में आने का कारण पूछा। तो उस शक्ति ने जवाब दिया…..
“मेरा नाम सूरज देव है और मैं पटना के पास भयाना गाँव का रहने वाला हूँ। मेरे गुरु का नाम बाबा मलंग दास है और उन्होंने ही मुझे इसे लेने के लिये भेजा है” (अर्थात इसे मारकर इसकी आत्मा को ले जाऊं)
जैन साहब ने उससे पूछा, “….फिर तुमने इसे मारा क्यों नहीं ?”
वह बोला,
“मैं इसे मार तो देता पर मैं मजबूर हूँ क्योंकि इसने गुरुजी का कड़ा पहना हुआ है। इसके हाथ से आप यह कड़ा उतरवा दो, उसके बाद यह एक से दस तक की गिनती भी नहीं गिन सकेगा और मर जायेगा। यह मेरी गॉरन्टी है।”
तब जैन साहब ने उससे उसके गुरू के बारे में पूछा तो उसने अपने गुरू में अपनी पूर्ण श्रद्धा प्रकट की। तब जैन साहब ने दीवार पर लगे गुरुजी के रुप की तरफ इशारा करते हुए उनके बारे में पूछा।
जैसे ही उसने गुरुजी के रुप की तरफ देखा, वह जोर से उछला और अपना सन्तुलन खो बैठा और उसने कहना शुरु किया,
“इनकी क्या बात करें इनके तो सहस्त्रों नेत्र हैं और इनका एक-एक नेत्र ब्रह्माण्ड के पार देख सकता है। इनकी तो क्या कहूँ, इनके तो शिष्य भी जब कहीं से निकलते हैं तो उनके पीछे लाखों आत्माएं घूमती हैं कि कहीं वे कुछ खा रहे हों तो गलती से भी कहीं उनकी जूठन नीचे गिर जाये तो वे उठाकर खा लें ताकि उनका भी कल्याण हो जाये।”
गुरुजी की ऐसी व्याख्या तो कोई सिद्ध पुरुष ही कर सकता है, जैसी सैंगर के शरीर में स्थित आत्मा ने की।
आपकी महानता का जिक्र कैसे करूं…..?
हे गुरुदेव……