एक बार पंजाबी बाग में सेवा करते समय एक खूबसूरत नौजवान मेरे पास आया और मुझसे अकेले में बात करने की प्रार्थना की। उसे अपने साथ लेकर मैं ड्राईंग रुम में चला गया और बात करने के लिये कहा।
उसने मुझे अपने आपको सेना का सेनानायक (Captain) बताया और मुझे दो बच्चों की फोटो दिखाते हुए कहा कि वह उच्च न्यायालय (High Court) में अपने बच्चों के कानूनी संरक्षण (Legal Custody) के लिये याचिका (Petition) डालना चाहता है और उसके लिये मुझसे आशीर्वाद लेने आया है।
बच्चों के फोटो देखने के उपरान्त मैंने उसे अपनी पत्नी की फोटो भी दिखाने के लिये कहा। मुझे याद आया कि वह महिला भी अपने बच्चों को लेकर स्थान पर आयी थी।
मैंने उस व्यक्ति को दो दिन के बाद, दुबारा आने के लिये कहा और स्वयं गुरुजी के कमरे में इस परिस्थिति से निकलने और आगे का आदेश लेने के लिये चला गया।
एक तरफ वह व्यक्ति, उन बच्चों के कानूनी संरक्षण के अधिकार की बात कर रहा था तो दूसरी तरफ उस महिला को भी, उन्ही बच्चों के साथ सुख से रहने का आशीर्वाद मिल चुका था।
मैंने गुरुजी से पूछा— “गुरजी मैं उस व्यक्ति को क्या जवाब दूंगा, जब दो दिन बाद वह मेरे पास आयेगा?”
तो गुरूजी ने कहा…”उसे आशीर्वाद दे देना और ‘हाँ’ कह देना”
मैंने पूछा—- “लेकिन गुरुजी, उस महिला का क्या होगा, क्या वह अपने बच्चों के बगैर रह पाऐगी…?”
गुरुजी बोले— “नहीं बेटा, वह अपने बच्चों के साथ ही जायेगी।”
अगले दिन संयोग से वह महिला भी स्थान पर आयी और जैसे ही मेरे सामने बैठी, गुरुजी ने मुझे अपने पूर्ण अधिकार में ले लिया। अब मैं अपने आप को वैसा नही देख रहा था जैसा वास्तव में मैं हूँ। मैं अपने आपको एकदम अलग सा महसूस कर रहा था। ये मेरे जीवन का एक अभूतपूर्व अनुभव था।
जैसे ही उसने मुझसे आशीर्वाद माँगा, मैंने कहा,
“सदा सुहागिन रहो।” तभी उस महिला ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए
कहा—
“गुरुजी, आपके आशीर्वाद का अब क्या मतलब.? मुझे मेरे पति ने तो पहले ही तलाक दे दिया है।”
कुछ देर तक शान्त रहने के बाद मैंने कहा—
“तुम्हारी शादी का होना भगवान की मर्जी थी और तलाक का होना एक जज का निर्णय, जो एक इन्सान है। जहाँ तक मुझे ज्ञान है, भगवान बड़े हैं और मैं उनके निर्णय को मानता हूँ। तो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। यदि तुम्हारा पति तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को लेने आये, तो ‘हाँ’ करते हुए खुःशी-खुःशी अपनी नई जिन्दगी शुरु कर देना।”
मैंने उसे आगे आदेश दिया कि वह कल एक सुन्दर सी साड़ी पहनकर और सम्पूर्ण साजो-श्रृंगार के साथ, जैसा कि एक सुहागिन होती है, स्थान पर आये।
अगले दिन एक आश्चर्यपूर्ण घटना घटी। मैंने उस व्यक्ति को बच्चों के संरक्षण के अधिकार का आशीर्वाद दे दिया, लेकिन उनकी माँ के साथ। उसने परेशान होकर पूछा, यह कैसे मुमकिन हो सकता है..? ऐसी बहुत सी निन्दनीय बातें, जो तलाक के समय उसके प्रति उस महिला ने कही थी मुझे बताई और यह भी बताया कि उसने कहा था कि वह उसके साथ किसी भी हाल में नहीं रह सकती।
…और फिर उसका अपना परिवार भी इसके लिए तैयार नहीं होगा। मैंने उसे बताया, कि कुछ दिन पहले गुरुजी ने मुझे यही आदेश दिया था तुम्हारे लिए।
….और आखिर, वो मान गया।
फिर जैसा गुरुदेव ने आदेश दिया, वह स्थान पर आया, अपनी पत्नी की बाँह पकड़ी और उससे कहा—-
“हम सबके लिए घर चलो”
क्या दिव्य संयोग था,
कैसी रचना थी यह। विशेष रुप से योजना बनायी थी
स्वयं गुरुदेव ने।
एक टूटा और बिखरा हुआ परिवार, जिसमें एक पति-पत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी, स्थान से सीधा एअरपोर्ट और वहाँ से अपने नये घर में अपनी नई जिन्दगी बिताने के लिए चल दिए ।
वह सेनानायक बाद में पदोन्नत होकर मेजर बना और पूना में सेवारत हुआ। उसका बेटा और बेटी ने अच्छी संस्था में शिक्षा ग्रहण की। वे कई वर्षों बाद अपने माता-पिता के इस तरह ‘दुबारा मिलन’ को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। क्या कृपा है गुरूजी की…!! सचमुच ही एक अविश्वस्नीय और अनोखी घटना…| एक कानूनी तौर पर तलाकशुदा दम्पति अपनी सुखद शादीशुदा जिन्दगी व्यतीत कर रहे हैं और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे रहे हैं।
बार-बार प्रणाम है……
….हे गुरुदेव ।।