ओ. पी. आहूजा, आयकर विभाग में एक अधिकारी के पद पर कार्य करता था। वह गुरुजी के पास आया और बोला, “गुरुजी, मेरे विभाग में एक ऑफिसर है जिसका नाम आई. डी. शर्मा है। वह मुझे बहुत परेशान करता है। मैं चाहता हूँ कि वह मेरे नियन्त्रण में आ जाये ताकि ऑफिस का माहौल ठीक हो जाये।”
गुरुजी बोले, “तुम अपनी आँखें बन्द करो और उसका चेहरा याद करो।”
जैसे ही आहूजा ने ऐसा किया, गुरुजी बोले—
“अरे इस व्यक्ति का तो मैं पिछले पांच साल से इन्तजार कर रहा हूँ, तुम इसे यहाँ ले आओ।”
आहूजा ने कहा, “महाराज वह आपके पास आने के लिए कभी तैयार नहीं होगा।” परन्तु गुरुजी बोले, वह आयेगा।
और फिर समय बीतता गया—
एक बार जब आई. डी. शर्मा, अपने छोटे से बेटे को गोद में लेकर बैठा हुआ था तो बहुत सारी गर्म-गर्म चाय बच्चे के ऊपर गिर गई और उसका कमर से नीचे का हिस्सा, आगे से बुरी तरह से जल गया।
तुरन्त आषधीय चिकित्सा (Medical Aid) का सहारा लिया गया लेकिन बहुत दिनों के इलाज के बाद डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिये। उन्होंने कहा कि इस बच्चे का जनन अंग, पूरी तरह से खराब हो गया है।
संयोग से एक महिला, जिसका नाम सरोज बाला है और उनके परिवार से काफी नजदीकी रखती थी, वहाँ आईं। उस महिला ने इसके लिए उन्हें, गुड़गाँव वाले गुरुजी के पास जाने और उनसे प्रार्थना करने की सलाह दी। उसने उन्हें पूर्ण आश्वासन दिलाया क्योंकि वह स्वयं भी पिछले छ: सालों से उनके पास जाती थी और उनके प्रति उसकी भरपूर आस्था थी। उसने कहा कि गुरुजी इस बच्चे को अवश्य ठीक कर देंगे। इसका उसे पूर्ण विश्वास है।
लेकिन आई. डी. शर्मा ने उस महिला को मना कर दिया और दृढ़ता पूर्वक कहा कि यह बीमारी ठीक करना डॉक्टरों का काम है और जब तक वो सलाह नहीं देंगे, मैं इसे कहीं नहीं ले जाऊंगा।
वह महिला चली गई लेकिन उसे शर्माजी का इस तरह का रुखा व्यवहार पंसद नही आया। लेकिन उस महिला ने एक बार फिर कोशिश की और जोर दिया कि इस मासूम बच्चे को एक बार वहाँ ले जाओ क्योंकि यह उस बच्चे की ज़िन्दगी का सवाल था।
तब आई. डी. शर्मा ने इस विषय पर दुबारा सोचा और किसी तरह गुडगाँव जाने और गुरुजी से मिलने को तैयार हो गया।
जैसे ही शर्माजी स्थान पर पहुंचे, उन्हें समझ में ना आने वाला अनुभव हुआ। उन्हें स्थान के गेट पर ॐ दिखा। वह ॐ गोल-गोल घूमने लगा। यह देखकर वे भ्रमित हो गये। उन्होंने अपने आपको संभाला और देखा कि दीवारों और छत पर भी विभिन्न रंगों से सुसज्जित बहुत से ॐ हैं।
वह अपने आप को एक अजीब से धर्म संकट की स्थिति में महसूस करने लगे। उसने उस बच्चे से पूछा कि क्या वह भी ॐ देख रहा है। बच्चे ने उन्हें बताया कि हाँ पापा, मैं भी चारों तरफ घूमते हुए ॐ देख रहा हूँ।
जब बच्चे ने भी एक साक्ष्य दे दिया कि वह भी ॐ देख रहा है तो शर्मा जी का भ्रम दूर हुआ और शंका भी मिट गई कि वह सही देख रहे हैं। तभी एक आवाज गूंजी, माताजी आ रही हैं और स्थान पर सभी लोगों को आशीर्वाद देंगी। शर्माजी तथा वह बच्चा दोनों आवाज सुनकर, स्थान पर खड़े हो गये। क्योंकि वे जानते नहीं थे कि माताजी कौन हैं……! और गुरुजी कौन……!!
गुरूजी से मिलने से पहले शर्माजी ने किसी संत-महात्मा या गुरु के पैर नहीं छुऐ थे। वह अपने पिता और बड़े भाई को सम्मान देने के अलावा किसी और के पैर नहीं छूते थे।
शर्माजी ने बच्चे को उठाया और गुरुजी के पास ले गए और गुरुजी से बात की।
गुरुजी ने पूछा—- ‘की गल ऐ पुत?’ (क्या बात है बेटा)
शर्माजी ने गुरुजी को पूरी बात बतायी और उस बच्चे के जनन अंग के बारे में बताया।
गुरुजी ने कहा—- “नहीं, इसके अंग को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा।
…जख्म है, चौबिस घण्टे में ठीक हो जायेगा।”
शर्माजी को यह बात हजम नहीं हुई और वे सारी रात सो नहीं सके। वे अगले दिन चार बजने का इन्तजार करते रहे कि कब जख्म अदृश्य हो ….और वह देखे!!
पट्टियाँ खोलने के लिए डॉक्टर को बुलाया गया। यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था खासतौर पर डॉक्टर के लिये—–
……..जख्म सूख चुका था।
डॉक्टर अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। कल का जन्म आज दिखाई भी नहीं दे रहा था। ….ये कैसे सम्भव हुआ? …..कौन है जिसने ये ठीक किया? अब शर्माजी के दिमाग की हालत का अन्दाजा तो वही लगा सकता था जिसे भगवान पर विश्वास हो।
और अब……..?? अब क्या…..
अब शर्मा जी दौड़े गुरुजी से मिलने …और पहुंचे स्थान पर। लेकिन गुरुजी से नहीं मिल सके। जिस सेवादार ने उन्हें बताया था कि गुरुजी वहाँ नहीं हैं वह उसे अपना संदेश देते हुए बोले, “ठीक है, मैं कल फिर आऊँगा।”
कल और एक बार फिर कल। परन्तु शर्माजी को गुरुजी के दर्शन करने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। पाँच-छ: दिन से ज़्यादा का समय निकल गया। आखिर वह समय आ ही गया कि उसे गुरुजी ने दर्शन दे दिये।
गुरूजी ने कहा,
“मैं तेरा इन्तजार पाँच साल से कर रहा हूँ और क्योंकि तू जिद्द में था, इसलिए मैंने ही गर्म-गर्म चाय गिराई थी तुझे बुलाने के लिए….| अब तू आ गया है, बच्चे को कुछ नहीं होगा और बच्चे के अंग को भी कुछ नहीं होगा। वह अपनी शादी-शुदा जिन्दगी सुख से बितायेगा।”
आई. डी. शर्मा हक्का बक्का रह गया। उसने गुरुजी से पूछा— “…अब आगे मेरे लिये क्या आज्ञा है?”
गुरुजी बोले—- “सेवा करो, यही तुम्हारी भक्ति है।”
बाकी मैं कर लूंगा।
कुछ सुनहरी ऋतुऐं बदली, साल बीते, वह बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हो खूबसूरत नौजवान बन गया। उसने अच्छी शिक्षा प्राप्त की और उसकी शादी हुई। आज वह कनाड़ा में बस गया है और सफलतापूर्वक अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ खुशहाल ज़िन्दगी व्यतीत कर रहा है।
………तो ये है गुरुदेव की महिमा।। महिमा एक आध्यात्मिक शब्द है। जो सिर्फ भगवान को सम्बोधित करने के लिए ही प्रयोग किया जाता है। मैं समझता हूँ कि गुरूजी के लिए यह बिलकुल उपयुक्त है।
ऑफरीन………
……..हे गुरुदेव।
…..आपके पवित्र चरणों में लाखों-लाखों साष्टांग प्रणाम हैं।