यह झलकी न तो पूर्णतया संसारिक है और न ही पूर्णतया आध्यात्मिक। यह तो सिर्फ गुरुजी के प्रति समर्पण
और अटूट विश्वास की है। मुम्बई के दिनेश भंडारे के परिवार को एक बड़ा घर लेने की ज़रुरत आन पड़ी थी। लेकिन उसके पास बड़ा घर लेने के लिए पैसों का इन्तजाम नहीं था। इसलिए दिनेश को समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति से वह कैसे निपटे। बच्चे बड़े हो गये थे, इसलिए बड़े घर की अब बहुत जरुरत थी। लेकिन उस समय पर्याप्त मात्रा में पैसे नही थे उसके पास।
भुगतान करने की अंतिम तिथि तेजी से नज़दीक आ रही थी और दिनेश चिंतित था। क्योंकि बीस लाख पहले ही एड़वाँस के रुप में दे चुका था तथा ग्यारह लाख की और सख्त जरुरत थी और वह भी इतने कम समय में। वह बैठ गया और उसने गुरुजी से प्रार्थना की, “गुरुजी, पैसों का इन्तजाम नहीं हो रहा, कृपा करके आप ही कुछ कीजिए।”
जब वह चिंतित बैठा हुआ था तो, बिंदु (दिनेश की पत्नी) के करीबी एक व्यक्ति ने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा और फिर तभी उसने खुशी-खुशी 2 लाख रुपये देने की पेशकश कर दी। कुछ समय बीत गया और एजेंट, जो इस सौदे में प्रमुख व्यक्ति था, उसने भुगतान करने की अंतिम तिथि के बारे में याद दिलाया। दिनेश ने उसके लिए धन जुटाने में असमर्थता व्यक्त की। एजेंट ने कहा कि चिंता करने की आवश्यकता नहीं, उसके पास 3 लाख रुपये पड़े हैं और वह उसे उधार दे सकता है। अब दिनेश को रवि पाटिल नाम का एक पुराना मित्र मिला और उसने ₹4 लाख दिया और बाकी का घाटा भी, बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के पूरा हो गया।
काम हो गया। फ्लैट खरीदा गया और दिनेश आज तक निश्चित् तारीख तक फंड की व्यवस्था पर हैरान है। सोचता है कि आज के ज़माने में तो माँगने पर भी कोई नहीं देता लेकिन यह क्या हुआ कि बिना माँगे एक नहीं तीन चार लोगों ने अपने आप पूछा और फिर पैसे दे भी दिये, बड़ी खुशी के साथ।
पूर्णरुप से ध्यान गुरूजी महाराज की ओर ही जाता है। मेरी प्रार्थना पर गुरुजी ने इन सबके मन के अन्दर मेरी सहायता करने का विचार डाला होगा और वे सब एक-एक करके चले आये पैसे देने के लिए और समय से पहले मेरा काम हो गया।
धन्य हैं गुरुदेव आप…
…कितना ख्याल रखते हैं साहिब जी।
पूरे विश्वास के साथ एक भोले-भाले भक्त द्वारा सादगी से की गई प्रार्थना सुनी गई और उसके लिए सम्पूर्ण व्यवस्था समय से पहले ‘प्रभुओं के प्रभु’ द्वारा कर दी गयी।
ऐसे गुरुओं के गुरू, हमारे प्यारे गुरूजी को कोटि-कोटि प्रणाम…