मैं मुम्बई गया हुआ था और पुन्चू मेरी बेटी है। अस्सी के दशक के शुरु की बात है कि गुरुजी ने मुझे कुछ दिनों के लिए बम्बई जाने का आदेश दिया। कोई फंक्शन अटेंड करना था और साथ ही अपनी दो बेटियों (पुन्चू और बिन्दु) तथा उनके परिवारों से भी मिलना था, जो मुम्बई में ब्याही हैं। जब गुरुजी का फोन आया तो मैं अपनी छोटी बेटी बिन्दु के यहाँ ठहरा हुआ था। गुरुजी ने मेरी वापसी का प्रोग्राम पूछा तो मैंने उत्तर देते हुए पूछा कि मेरे लिए कोई आज्ञा हो तो बताऐं। उन्होंने मुझे दो-तीन दिन और रुकने का आदेश दिया और साथ ही कहा कि वापिस आने से पहले पुन्चू को एक नई कार लेकर दे आओ। मैंने कहा …..जी गुरजी। लेकिन ना तो मैं इतने रुपये लेकर आया था और न ही गुरुजी ने मुझसे पूछा कि इतनी बड़ी खरीद के लिए पैसे का इंतजाम कैसे करूंगा..? उन्होंने सरलता से केवल इतना ही कहा और फोन रख दिया। गुरुजी के इस अछूते अंदाज़ से मैं प्रफुल्लित और गद्गद् हो गया। ऐसा लग रहा था …मानों वे मुझे आदेश दे नहीं रहे थे, बल्कि आदेश फेंक रहे थे मुझ पर। करीब दस हज़ार रुपये लेकर आया था और ज़रुरत थी करीब एक लाख की। इन महागुरुजी के राज्य में सोचना मनाह है क्यूंकि इससे मैं और मेरे अहंकार का सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। अतः शिष्य का धर्म है, सुनो और प्रतीक्षा करो। प्रतीक्षा का अर्थ है कि देखो, मालिक कैसे इंतजाम करते हैं। उधाहरणतयाः गुरुजी के आदेश अनुसार एक कार खरीदने के लिए मुझे एक लाख रुपया चाहिए और मेरे पास नहीं है। अब पढ़ें और आनंद लें और अनुमान लगाऐं कि आगे क्या हुआ होगा..!! क्या हीला तैयार किया होगा गुरुजी ने वहीं गुड़गांव में बैठकर। सुबह बिन्दु के पति और ससुर ने मुझे उनकी फैक्ट्री चलने का आमंत्रण दिया, जो भिवंडी में है। रास्ते में उसके ससुर ने कहा, “राजपॉल जी, अब आपकी दो बेटियाँ यहाँ मुम्बई में रहती हैं इसलिए आपको एक कार, यहाँ पर भी रखनी चाहिए।”
मैंने कहा, “बिलकुल ठीक, चलो अभी खरीद लेते हैं।”
…और इस तरह हमने देखना शुरु किया और शाम तक एक नयी कार खरीदने में सफल हो गए और उसी शाम को कार पुन्चू को दे दी गयी।
गुरूजी का फोन सुबह आया था और उसी दिन शाम को काम हो गया। इंसानी दिमाग से या बुद्धि का प्रयोग किया जाये तो कोई नहीं मानेगा कि इतनी बड़ी खरीदारी बिना पैसों के और उस स्थिति में जब कारें सेल पर आज की तरह शोरुम में नहीं बिकती थी। उस समय का तरीका आज के तरीके से भिन्न था। लोग कार की बुकिंग कराते थे और करीब दस महीनो के बाद डिलिवरी मिलती थी। लेकिन कुछ लोग लाभ कमाने के लिए, नयी कार बेच भी देते थे। –परन्तु
* ऐसे लोगों को ढूंढना,
* पैसो का इंतजाम करना,
* उस व्यक्ति तक पहुंचना, जिसने कार बेचनी है
* …और फिर कार खरीदना ! यह सारे कार्य सिर्फ आठ घंटे में करना, कोई आसान काम नहीं था। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अवश्य कोई ईश्वरीय शक्ति थी, जिसने यह सारे कार्य बाखूबी कर दिए, जिसे मैं और बिन्दु का पति शरीर में नहीं देख पाए। मुझे पूर्ण विश्वास है कि फोन पर आदेश देते समय गुरुजी ने सारे कार्य का पूरा प्रबंध कर दिया था।
उद्धाहरण के तौर पर…
* बिन्दु के ससुर के मुख से यह शब्द निकलवाना कि मुझे अब मुम्बई में भी एक कार रखनी चाहिए, क्यूंकि मेरी दो बेटियाँ वहाँ ब्याही हुई हैं और…
* मेरा उसकी सलाह का मान लेना…
* फिर कार की तालाश करना और…
* उसी के हाथों पैसे का प्रबंध करना, वह भी बिना __ अहसान जताए क्यूंकि यह उसी का विचार था।
* आखिर में रात से पहले कार पुन्चू के हवाले करना इत्यादि-इत्यादि।
बाद में मुझे पता चला कि उसी सुबह पंचू ने गुरुजी को फोन पर शिकायत की थी कि सारे घर में एक ही कार होने के कारण उसे बहुत दिक्कत हो रही है। फोन पर शिकायत सुनने वाला संसार का सबसे बड़ा मालिक होने के कारण, पुन्चू ने अगली सुबह, बिना कार के नहीं देखी। यह मेरे मालिक गुरूजी, अपने भक्तों की जायज माँग को कभी नहीं नकारते और हमेशा ‘हाँ’ कह देते हैं।
….प्रणाम साहेब जी