अस्सी वर्ष की, सुन्दर दिल वाली एक आकर्षक महिला जो राजौरी गार्डन में रहती थी और जिसे सब लोग प्यार से राजौरी गार्डन वाली माता के नाम से सम्बोधित करते थे, कुछ खास बातों के कारण प्रसिद्ध थी, जैसे: – * गुरुजी के प्रति अपार भक्ति और मेरे लिए अत्याधिक प्रेम–
* कभी लाईन में अपनी बारी की प्रतीक्षा न करना और सीधा मेरे पास चले आना–
* हर बार अपनी सेहत के खराब होने की शिकायत करना–
* एक दो लोगों की सहायता से मुरझाये हुए चेहरे के साथ, धीमे-धीमे चलकर मेरे पास आना–
* मुझसे मिलने के बाद खिले हुए चेहरे के साथ, एक आश्चर्यजनक स्फूर्ति और बिना किसी सहारे के हंसते हुए वापिस जाना–
* जब भी मिलना, मुझसे अपने घर आने का वचन लेना–
* मेरे सिर पर 50 या 100 रुपये का नोट घुमाकर पास खडे किसी व्यक्ति को दे देना–
* हर बार मुझसे एक गिलास जूठा जल लेकर पीना–
* मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर चूमना–
* मेरे कमरे में टंगी मेरी पत्नी गुलशन की तस्वीर को प्रणाम करना–
* मेरे कमरे में गुरुजी के चरणों की तस्वीर को माथा छूकर प्रणाम करना–
* जब भी आना मुझसे अवश्य मिलना चाहे मैं स्थान पर हूँ अथवा अपने कमरे में विश्राम कर रहा हूँ इत्यादि-इत्यादि।
एक दिन एक खास घटना घटी: – हुआ यूं कि मैंने सब सेवादारों को निर्देश दिया कि मैं अपने कमरे में हूँ और मुझे किसी से मिलना नहीं है, उपरोक्त निर्देश मैंने गुरुजी के आदेशानुसार ही दिया था। तभी वो महिला आई और मिलने के लिए सन्देश भेजा। सेवादारों ने मना कर दिया लेकिन वो जिद्द करके बैठ गई। मैंने दुबारा मना किया तो उसने कहा कि जब तक मुझसे मिल नहीं लेगी वह स्थान पर ही बैठी रहेगी।
यह सुनकर मैं बाहर गया और उसे समझाने का प्रयत्न में कहा कि अनुशासन सभी के लिए आवश्यक होता है इसलिए सभी को इसका पालन करना चाहिए। लेकिन वो नहीं मानी और जिद्द करने लगी और अधिकारपूर्ण अंदाज के साथ पूछने लगी कि क्यों नहीं मिलूंगा मैं उसे। उसके इस रवैय्ये को देखकर मैंने उसे डॉट लगा दी और अपने कमरे में वापिस आ गया।
अगले दिन शाम को वो फिर आई तो मैंने उसे अंदर बुला लिया और सोचा कि आज ज़रा नरमी से पेश आना चाहिए। वो आई तो उदास सी लग रही थी, आते ही पंजाबी लहजे में कहने लगी, “कल तुसी मैंनूं डॉट लगाई सी ते मैं सारी रात रोंदी रई आं” फिर एकदम उसका अन्दाज़ बदला और वो मुस्कुराने लगी, कहने लगी, “रात नूं गुरजी ने दर्शन दिते सी और मैंनूं डाँट लगा के कैन लगे कि तू मेरे पुत्तर नूं तंग करनी ऐं, ओनूं परेशान ना करया कर। मैं आख्या, गुरुजी ओ मैंनूं झिड़कदे बहुत नें। गुरुजी कैन लगे, फेर की होया झिड़कदे ने ते…!” कहकर वो हंसने लगी और आनन्द विभोर हो गयी।
यह घटना कोई सांसारिक नहीं दिखती, एक साधारण सी महिला, कितनी नज़दीक है दुनिया के सबसे बड़े गुरुजी के साथ, आत्मिक दर्शन देकर उसे डाँट लगाना और अछूता ज्ञान देना–
वाह–
* क्या सादगी है उस महिला की और उसकी गुरुभक्ति की–
* —और क्या कृपा है गुरुजी की उसपर कि रात को जगाकर उसे यह बताना कि उनके शिष्य को
परेशान ना किया करे– यह कोई आम उद्हारण नहीं लगता–
इतना खास है कि मन धरती पर टिकता ही नहीं।
…गुरुजी, आपको और आपके भक्तों को सराहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे– ऐसे भक्त संसारी लोगों को नींद से जगाने के लिए रौशनी का काम करते हैं।
प्रणाम साहिब जी–