गुरुजी ने गुड़गाँव के सैक्टर 10-A के स्थान का निर्माण कार्य वर्ष 1986-87 में शुरु कर दिया था।
एक दिन जब निर्माण कार्य चल रहा था, माताजी, चारू, रेनू, योगेश को साथ लेकर सैक्टर 10-A के निर्माण स्थल पर पहुंची। गाड़ी योगेश चला रहा था। गुरुजी की बड़ी बेटी रेनू ने ड्राईवर से उसे ड्राईविंग सिखाने के लिए कहा। वह ड्राईविंग सीट पर बैठ गई और स्वतंत्र रूप से कार चलाने लगी।
एक चक्कर लगाने के बाद जब वह वापिस आ रही थी तो गाड़ी रोकने के लिए ब्रेक का पैडल दबाने के बजाय घबराहट में एक्सीलेटर का पैडल दबा दिया और वह सीधी माताजी की ओर जाने लगी। तेज गति से कार माताजी से जा टकराई और माताजी जमीन पर गिर गईं।
यह देखकर योगेश और वहाँ मौजूद लोग घबरा गए और माताजी को उठाकर तुरन्त आर्यन अस्पताल ले गये। लेकिन माताजी ने वहाँ अन्दर जाने से मना कर दिया और कहा कि उन्हें पहले स्थान ले जाएँ। वहाँ के डॉक्टर के.पी. चौधरी ने अस्थि विशेषज्ञ डॉक्टर कोछड़ जो गुरुजी का भक्त था, को उनकी जाँच करने के लिए बुलाया ! पूरी जाँच करने पर पाया कि बहुत सी हड्डियाँ क्षतिग्रस्त हुई हैं। उसने सुझाव दिया कि उन्हें एक्सरे के लिए अस्पताल ले जायें।
इतने में गुरूजी स्थान पर पहुंच गये और उन्होंने कहा, “कहीं ले जाने की जरुरत नहीं है, मैं अपने आप ठीक कर लूंगा। बच्चों ने उनकी बाँह व शरीर पर पट्टियाँ बाँध दी। डॉक्टर ने माताजी से बिना घी और कम नमक का हल्का खाना खाने का अनुरोध किया। …और कुछ दिनों तक माताजी बिना घी और नमक के खिचड़ी खाती रहीं। डॉक्टरों ने माताजी के चलने फिरने पर रोक लगा दी।
सबने गुरुजी से उन्हें जल्द ठीक करने की प्रार्थना की लेकिन गुरुजी माने नहीं। कहने लगे, “तुम इन्हें पहले अस्पताल क्यों ले गये… मेरे पास क्यों नहीं लेकर आये…? अगर तुम सीधा मेरे पास लेकर आते तो मैं अपने आप इनके दर्द को भी दूर कर देता और हड्डियों को भी ठीक से जोड़ देता।
तुमने अस्पताल के बारे में पहले सोचा और मेरे बारे में बाद में।” इसी तरह कुछ दिन बीत गये ! एक दिन जब माताजी कुछ खा रही थी तो गुरुजी कमरे में आये और माताजी के हाथ से कटोरी लेकर खिचड़ी चखी और हैरान होकर पूछा, “यह खा रही हो तुम… इसमें तो कोई स्वाद ही नहीं है…” कटौरी उन्होंने एक तरफ रख दी और इन्दु या बिटू को आदेश दिया कि अपनी माँ के लिए वैसा ही खाना लाओ जैसा उनके लिए बनाया गया है।
खाने के बाद उनका मूड़ एकाएक बदल गया और वे बोले, “चल मॉस्टर आजा, मैं अभी खोलता हूँ सारी पट्टियाँ और मिनटों में सब पट्टियाँ खोल दी। इसके बाद उन्होंने माताजी के दर्द वाले हिस्सों को छुआ और वे तुरन्त दर्द मुक्त हो गये और उनकी सभी हड्डियाँ भी अपनी-अपनी जगह पर सुव्यवस्थित ढंग से जुड़ गई। यह एक चमत्कारी दृश्य था और वहाँ पर खड़े सभी लोग बेहद खुश और हैरान थे।
माताजी ने अपना नियमित भोजन करना शुरु कर दिया और कुछ दिनों में धीरे-धीरे चलना भी शुरु कर दिया एक हफ्ते के अन्दर-अन्दर ही वे करीब-करीब सामान्य हो गयीं।
कल्पना करो– उन दिनों में माताजी के दर्द को गुरुजी ने कैसे बरदाश्त किया..? मैं यह जानता हूँ कि ऐसा वह पहले दिन भी कर सकते थे। लेकिन कोई विशेष कारण ही रहा होगा और १-धटना का भी विशेष ही कारण होगा कि पिछले कुछ दिनों तक माता जी को इतना दर्द सहन करना पड़ा।
सर्वज्ञ और स्वयं कर्ता गुरुजी माताजी को सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं। …परन्तु ऐसा लगता है कि शायद अपने बच्चों के आध्यात्मिक हृदयों में विश्वास और अनुशासन को दृढ़ता से स्थापित करना चाहते थे …साहिब जी।
यह है स्वरुप…
….हमारे श्रद्धेय गुरुजी महाराज का।
ऐसे महानतम महान गुरुदेव को करोड़ों प्रणाम…
….हे गुरुओं के गुरू, कृपा निधान गुरुजी,
हमें अपनी शरण में रखना …और अपनी कृपा बनाए रखना
…हमेशा …हमेशा।