एक रात गुड़गाँव स्थान पर, गुरुजी अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे कि अचानक उन्होंने बिटू को कहा कि वह जाकर माँ से कहे कि सब शिष्यों के लिए शिकन्जवी बनायें। गर्मी बहुत थी और सभी को प्यास भी लगी थी। माता जी ने आकर बताया कि घर में नीम्बू नहीं हैं। उस वक्त आधी रात को नीम्बू के बगैर शिकन्जवी कैसे बन सकती थी?
गुरुजी बोले– ”जब मैंने शिकन्जवी बनाने के लिए कहा है, तो नीम्बू वहीं होंगे। ….जाओ और फ्रिज में देखो।’
माताजी अन्दर चली गयीं और कुछ देर बाद फिर वापिस आकर बोली— ”फ्रिज में नीम्बू नहीं हैं।”
गुरूजी ने कहा ”जब मैंने शिकन्जवी बनाने के लिए, कह दिया है, तो ये कैसे सम्भव हो सकता है कि नीम्बू वहाँ पर न हों। जाओ और फ्रिज में दुबारा देखो।”
माता जी दुबारा अन्दर गईं और जब वापिस आईं, तो इस बार उनके हाथ में एक लिफाफा था जिसमें 5/6 नीम्बू थे।
मैं गुरुजी के बिलकुल साथ बैठा था। मै मुस्कुराया और धीरे से गुरुजी के कान में फुसफुसा कर बोला–
“गुरुजी, माताजी ठीक कह रही थी। कृप्या आप बताईए कि ये नीम्बू आपने कहाँ से लाकर फ्रिज में रख दिये…?”
गुरूजी ने मेरी बात नज़र अंदाज करते हुए, मेरे प्रश्न को सुना-अनसुना कर दिया और हम शिष्यों पर जो वे ज्ञान की वर्षा कर रहे थे, फिर से करने लगे। वहाँ पर सभी शिष्य मौजूद थे। परन्तु हममें से किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह गुरु जी से उस रात, यह बात दुबारा पूछता।