गुरुजी के आदेश का पालन करते हुए, मैं वीज़ा लेने के लिए अमेरिकन एम्बैसी गया और सम्बधित कागजात जमा कराये। लेकिन उन्होंने मुझे वीजा देने से मना कर दिया और कागज़ात वापिस लौटा दिये।
शाम को मैं गुरुजी के पास गया और उन्हें प्रणाम किया, तो उन्होंने मुझसे पूछा, ”तुम वीजा के लिए गये थे,…क्या तुम्हें वीज़ा मिल गया है?” मैंने एम्बैसी द्वारा लौटाये गये कागज़ात गुरुजी को सौंपते हुए कहा, ”उन्होंने मुझे वीजा देने से मना कर दिया है।” ऐसा सुनते ही गुरुजी क्रोध में आकर बोले, ”मेरे शिष्य को वीजा देने से इन्कार करने वाला, अभी पैदा नहीं हुआ।” और इस बात को यहीं खत्म कर दिया।
करीब एक हफ्ते बाद, हमेशा की तरह मैं गुड़गाँव स्थान पर रुका हुआ था कि एक सेवादार ने आकर मुझे सुबह छः बजे जगाया और कहा कि आपको गुरुजी बुला रहे हैं। मैं जल्दी-जल्दी वहाँ से उठा और ऐसे ही दौड़कर गुरुजी के पास पहुंचा। मैंने उन्हें प्रणाम किया, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और कहा— ”बेटा, अपनी माँ के पास जाकर नाश्ता कर लो और यहाँ से सीधा अमेरिकन एम्बैसी चले जाओ, तुम्हें आज वीज़ा मिल जायेगा।”
जैसा गुरुजी ने आदेश दिया था, मैं अमेरिकन एम्बैसी गया और अपना पासपोर्ट और वीज़ा के लिए आवेदन पत्र, वहाँ लगे बॉक्स में डाल दिया और स्वयं जाकर प्रतीक्षा हॉल में, इन्तजार करने लगा।
करीब दो घण्टे के इन्तजार के बाद, मेरा नाम पुकारा गया। मैं इन्टरव्यू के लिए कॉउन्टर पर पहुंचा। मैंने देखा कि मेरा इन्टरव्यू लेने के लिए आज फिर वही लड़की बैठी थी, जिसने पिछले हफ्ते मुझे वीजा देने से मना किया था। वह बोली— ”जब मैंने तुम्हें पहले ही वीजा देने से मना कर दिया था तो तुम आज फिर से क्यों आये हो?”
मैं उसके इस तरह के सवाल के लिए तैयार नहीं था। तभी मेरे दिमाग में अचानक से कुछ आया और मैं सोचने लगा कि मैं इससे इतना बड़ा हूँ और यह मुझसे किस तरह से बात कर रही है। मैं यहाँ यह नहीं बता सकता कि वहाँ मैंने किस तरह का व्यवहार किया लेकिन मैंने कॉउन्टर पर जोर-जोर से बोलना शुरु कर दिया और बहुत नाराज़गी दर्शाने लगा।
तभी उनका एक ऑफिसर वहाँ आ गया और वह उस लड़की को अचरज भरी नजरों से देखते हुए बोला– ”क्यों क्या हुआ?”
मैंने उस लड़की को जवाब देने का समय न देते हुए, उल्टे उसकी शिकायत उस ऑफिसर को करते हुए कहा—‘ ‘देखिए, इस लड़की ने मुझे गाली दी है।”
उसने, उस लड़की की तरफ प्रश्न भरी हुई नजरों से देखा। वह लड़की बोली– ”नहीं सर……!! मैंने गाली नहीं दी।”
मैं तुरन्त, उस ऑफिसर की तरफ मुड़ा और बोला—”ये मुझे वीजा देने के लिए वैसे भी मना कर सकती थी। ये आपकी मर्जी है। क्योंकि वह आपका देश है। लेकिन इस तरह से, यह मेरी बेइज्जती तो, नहीं कर सकती ना? ”
वह ऑफिसर, उस लड़की को अपने साथ पीछे ऑफिस में ले गया और कुछ समय बाद वह लड़की वापिस कॉउन्टर पर आई और बड़े आराम से बोली— ”आप कितने समय तक अमेरिका में रुकना चाहते हैं?” मैंने भी उसे शान्ति से जवाब दिया—”तीन या चार सप्ताह तक” वह बोली, ”पाँच सप्ताह का समय बहुत है?” कहकर, उसने मेरा पासपोर्ट और वीज़ा, मुझे दे दिया।
जब मैं वहाँ से वापिस बाहर निकला, तो एक महिला ने मुझे पंजाबी भाषा में कहा, ”जिस तरह का व्यवहार, आप इनके स्टाफ से अन्दर करके आये हैं, इस पर तो आपको जीवन भर वीज़ा नहीं मिल सकता।”
मैं उस महिला की तरफ ऐसे देख रहा था कि जैसे मैंने किया ही क्या है? वह बोली, ”भईया, जिस तरह से इतने जोर से शोर मचा कर आप बोल रहे थे, इस प्रतीक्षा हॉल में बैठा हर व्यक्ति एक दूसरे की तरफ देख रहा था।”
लेकिन मैंने, ऐसा कुछ भी महसूस नहीं किया था। तभी मैं अपने होश में वापिस आया और सोचने लगा।
कमाल है– मैं हॉल में स्टाफ से, इतने जोर से शोर मचा-मचा कर बोल रहा था और मुझे इस का आभास ही नहीं? वे सब, लोग मुझे बता रहे थे कि किस तरह से मैं अंग्रेजी में बातें कर रहा था? मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि ऐसी फर्राटे-दार अंग्रेजी बोलना मेरे अपने बस की बात नहीं थी।
एक बार मना होने के बाद, अमेरिका का वीजा मिलना एक बहुत बड़ी बात थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात तो यह थी, गुरुजी जानते थे तभी तो सुबह उन्होंने मुझे आदेश दिया,
”आज तुम एम्बैसी जाओ तुम्हें वीजा मिल जायेगा।”