जैसा कि गुरुजी ने मुझे आदेश दिया था, मैं प्रत्येक शनिवार के दिन सुबह-सुबह अपने घर पंजाबी बाग में लोगों की सेवा के लिए बैठ जाता था। बहुत से लोग वहाँ अपनी समस्यायें लेकर आते और मैं गुरुजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक शक्तियों का प्रयोग करता और लोग अविश्वस्नीय तरीके से ठीक हो जाते और सन्तुष्ट होकर अपने घरों को लौट जाते।
कुछ लोग जो पूर्ण रुप से ठीक नहीं हुए होते, दुबारा आते। इसी तरह सेवा सुबह से शाम तक चलती रहती।
लोग लाईन में अपनी बारी का इन्तजार करते और एक-एक करके मेरे पास लाईन में आते। इस तरह उन्हें करीब एक घण्टा इन्तजार करना पड़ता था। एक दिन शाम की बात है। मैं शाम को सेवा से जल्दी फ्री हो गया तो देखा कि एक जवान लड़की अभी तक वहाँ बैठी हुई थी। मैंने उससे पूछा— “आपने कुछ कहना है, आपकी कोई समस्या है?”
वह बोली—- ”नहीं मेरी कोई समस्या नहीं है लेकिन मैं एक प्रश्न पूछना चाहती हूँ।” वह बोली—- ”मेरा नाम कुमुदिनी है और मैं एक डॉक्टर हूँ। मैं हर शनिवार को सुबह यहाँ आती हूँ और मैं लोगों में सबसे आखिरी होती हूँ, जब मैं शाम को यहाँ से जाती हूँ, जाने के बाद बड़ी बेसबी से अगले शनिवार का इन्तजार करती हूँ कि मैं यहाँ दुबारा आ सकू।” उसने मुझसे आगे कहा—”मैं सुबह से शाम तक आपको यहाँ पर सेवा करते देखती रहती हूँ। आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो। आप मुझे यह बतायें कि मेरे साथ आपका क्या रिश्ता है?”
अचानक पूछे गये इस सवाल के लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं था। एकदम जवाब देने की हालत में भी मैं नहीं था। मैंने विषय बदलते हुए कहा— “तुम जाओ और रात को ग्यारह बजे तक सो जाना, मैं सपने तुम्हें में इसका जवाब दूंगा।”
और वह लड़की चुपचाप वहाँ से चली गई। अगली शाम मैं गुड़गाँव, गुरुजी के दर्शन करने गया और झुककर उनके पवित्र चरण छुए। वे बिलकुल अलग मूड में बोले— ”ओय…., क्या कहा था तूने उस लड़की को कि सपने में आकर उसे अपना रिश्ता बताओगे?”
मैं उनकी बात सुनकर सन्न् रहा गया और सोचने लगा, कि एक दिन पहले, मैंने उस लड़की से यही कहा था। मैंने कहा—‘ ‘गुरुजी, मैंने तो उससे अपनी जान बचाई थी क्योंकि मेरे पास उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।” मैंने गुरुजी से आगे पूछा— ”उसके बाद क्या हुआ, ….गुरुजी?” गुरुजी बोले—–“जब कोई शिष्य, किसी से कोई वादा कर लेता है, तो मुझे उस वादे को पूरा तो करना ही होता है। …इसलिए मैंने कर दिया है।”
मैंने गुरुजी से विस्तार से बताने के लिए, प्रार्थना की तो गुरुजी बोले—- __’जा… और उसी लड़की से ही पूछ ले,
…वोही तेरे को बताएगी।।” अगले शनिवार को जब मैं सेवा पर बैठा तो देखा डॉक्टर कुमुदिनी शाम तक अकेले बैठे मेरा इन्तजार करती रही। जब सब लोग चले गये, तो मैंने उसे बुलाया और उससे पूछा—- “कि विस्तार से बताओ कि उस दिन सोने के बाद उसने क्या देखा?” उसने बताना शुरु किया—- ”जैसा कि आपने कहा था, मैं जाकर ग्यारह बजे तक सो गई थी। मेरे सपने में आप, मेरे साथ ही आये। आप बहुत लम्बे हो गये थे और मुझे आपकी उंगली पकड़ने के लिए भी अपने हाथ ऊपर उठाने पड़ रहे थे। हम आकाश की तरफ उड़ने लगे और उड़ते हुए वहाँ पहुंचे, जहाँ पर रंग बिरंगे बादल थे। वहाँ एक ग्रे रंग का गेट बना हुआ था। लेकिन वहाँ कोई खाली मैदान नहीं था और वह गेट भी किसी पदार्थ का नहीं था। हम उस गेट के अन्दर आगे चले गये।
वहाँ पर ॐ ॐ ॐ की आवाजें गूंज रही थी।
तभी वहाँ, और भी आवाजें आने लगी। कोई कह रहा था—–
___जन्म जन्मान्तर से, ये तेरे पिता हैं”
कुमुदिनी आगे बोली— ”आप मुझे फिर, एक मूर्ति के पास ले गये और बोले, ये धुव ऋषि हैं, इन्हें प्रणाम करो। मैंने उन्हें झुक कर प्रणाम किया। उस मूर्ति ने अपना हाथ उठाया और मेरे सिर पर रखा। जैसे ही उसने मेरे सिर को छुआ, कि मेरी आँख खुल गई और तभी से अब तक मेरे सिर में दर्द हो रहा है।”
- गुरुजी का क्या तरीका है?
- गुरुजी का क्या सम्बन्ध है?
- गुरूजी की कहाँ तक पहुंच है?
- गुरुजी का कैसा रिश्ता है, ऋषि मुनियों के साथ?
- …गुरुजी, क्या कुछ बताते हैं और क्या कुछ दिखाते हैं। …यह सब वही जाने ।।