”सुन्दर नगर” हिमाचल प्रदेश का एक पहाड़ी इलाका है। वहाँ गुरुजी अपने विभाग की ओर से भूमि निरीक्षण हेतु ऑफिश्यिल टूअर पर गये थे। यह सोच कर कि गुरुजी के आसपास सुन्दर नगर में अधिक लोग नहीं होंगे जैसा कि आमतौर पर गुड़गांव में होते हैं, मैंने अपनी धर्मपत्नी गुलशन और बच्चों को, गुरजी के दर्शन करने सुन्दर नगर चलने के लिए कहा।
जब हम सब गुरुजी के पास सुन्दर नगर कैम्प में पहुंचे, तो हमें एक साथ वहाँ देखकर, गुरूजी बहुत खुश हुए। उन्होंने हमें चाय का प्रसाद दिया और किसी को आदेश दिया कि वह हमें बच्चों सहित आराम करने के लिए सरकारी रेस्ट हाऊस ले जाए।
गुरुजी ने मुझसे कहा— ”…जाओ बेटा, तुम अभी जाकर आराम करो, कल सुबह आठ बजे आ जाना। गुलशन और बच्चों को रेस्ट हाऊस में ही आनन्द लेने दो।”
वे आगे बोले— ”क्योंकि मुझे फील्ड में अपने सरकारी काम पर जाना है जब तक मैं वापिस न आऊँ, मेरी गैर मौजूदगी में तुम यहाँ आये लोगों की सेवा करना।”
अगले दिन सुबह-सुबह जब मैं कैम्प पहुंचा, तो देखा कि गुरुजी तो वहीं पर थे!!
मैंने गुरुजी से पूछा–‘गुरुजी, आप फील्ड में नहीं गये?” गुरुजी बोले— ‘नहीं बेटा, आज सुबह से बहुत बारिश हो रही है और पहाड़ों पर बारिश में काम करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए मैं कल जाऊँगा।”
दूसरे दिन फिर जब मैं कैम्प पहुंचा, तब भी गुरूजी कैम्प में थे। वे बोले—- ”बेटा आज भी बहुत बारिश हो रही है इसलिए मैं कल जाऊँगा।” तीसरे दिन जब मैं फिर कैम्प पहुंचा, तो गुरूजी उस दिन भी वहीं पर थे। परन्तु इससे पहले कि मैं कुछ बोलूं, उन्होंने जोर से लगभग चिल्लाते हुए ‘इन्द्र देवता’ को, इसके लिए दोषी करार देते हुए कहा कि—- “तूने मेरा सारा कार्यक्रम अस्त व्यस्त कर दिया है” और फिर ललकारते हुए बोले— “अब देखता हूँ कि तू कैसे बारिश करता है?” मैं बहुत अचम्भे में था कि गुरुजी ‘इन्द्र देव’ से, इस तरह बात कर रहे थे जैसे कि वे कोई साधारण व्यक्ति हों और उनकी बातें सुन रहे हों।
अगले दिन पहले की तरह ही जब मैं गुरुजी के पास कैम्प में पहुंचा, तो वे वहाँ नहीं थे। वे फील्ड में अपने काम पर जा चुके थे। छ: -सात दिन, जब तक मैं सुन्दर नगर में रुका, वहाँ कहीं बारिश नहीं हुई।
सुन्दर नगर में सेवा :
सुन्दर नगर के लोग अपनी-अपनी समस्यायें, दर्द और बीमारियों के साथ, गुरजी के पास आते और गुरजी उन्हें जल, लौंग, इलायची व काली मिर्च बना कर दे देते। मैं जानता था कि यह सब बिलकुल ठीक हो जायेंगे।
एक दिन की बात है, गुरुजी ने मुझे नीचे कमरे में सेवा के लिए बिठाया। लोग गुरुजी से ऊपर के कमरे में मिलते और वे उन्हें आशीर्वाद देकर, नीचे मेरे पास भेज देते। उनके द्वारा दिये गये आदेशों का पालन करते हुए, मैं सेवा कर रहा था।
तभी एक सेना से रिटायर्ड व्यक्ति, मेरे पास आया और बोला— “मुझे गुरुजी ने आपके पास भेजा है।”
उसने बताया कि 8/9 साल पहले उसकी टाँग में गोली लग गई थी, जिसका इलाज उसने सैनिक अस्पताल में करवाया। उस चोट की जगह एक छोटा सा छेद बन गया है और लगातार उसमें से पस निकलती रहती है।
वह आगे बोला– ”मैं तभी से डॉक्टरों से इसका इलाज करा रहा हूं, लेकिन पस है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही। मैं इस जख्म को हमेशा पट्टी से बाँध कर रखता हूँ। जब एक पट्टी गीली हो जाती है तो मैं उसे बदल देता हूँ। इतने साल हो गये, मुझे इसका कोई इलाज नहीं मिला।”
वह फिर बोला– ”मुझे किसी ने बताया है कि गुडगाँव से कोई गुरुजी, सुन्दर नगर आये हुए हैं, वे ही तुम्हारी यह बीमारी ठीक कर सकते हैं। बस विश्वास रखो। इसीलिए मैं गुरुजी के पास आया हूँ।”
उसने मुझे बताया कि ‘गुरुजी’ ऊपर बैठे हैं, मैं उनसे मिला हूँ, उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और आपके पास आने का आदेश भी दिया है।
उसकी इतनी बात सुनकर, मैं गुरुजी के पास गया और उनसे पूछा, ……..गुरुजी अब मैं क्या करूं? उन्होंने मुझे आदेश दिया—- ”उसकी पट्टटी खोलो और उसके जख्म की तरफ देखो। लेकिन ध्यान रखना, तुम्हारे दिमाग में भी ये बात न आये कि ये जख्म कितना गन्दा हैं।”
नीचे आकर मैंने जैसे ही उसकी पट्टी को खोला, लगभग तीन चार वर्ग इन्च का हिस्सा बुरी तरह से खराब हो चुका था। उसके बीच में लगभग तीन मिली मीटर का एक छेद बना हुआ था जिसमें से बहुत बदबूदार, सफेद पस निकल रही थी। उसकी टाँग गन्दी व सफेद पड़ गई थी।
वास्तव में ही, वह नजारा देखना मुश्किल हो रहा था। लेकिन जैसा गुरुजी ने कहा था, मैंने उसके उस ज़ख्म को देखा और उस पर हाथ रख दिया।
आश्चर्य: जब वह व्यक्ति अगले दिन आया, मेरी आँखें अचम्भे से खुली की खुली रह गई। उसके जन्म से पस निकलनी बन्द हो चुकी थी और उसकी टाँग भी सफेद की जगह अपने भूरे रंग में आ गई थी। मेरी खुः शी का ठिकाना नहीं था, मैं दौडता हुआ गुरुजी के पास गया और खुशी से लगभग चिल्लाता हुआ बोला— ”वाह…….गुरुजी, ये क्या हो गया……..! ___ ये आपने क्या कर दिया …….!!
ये आपने कैसे कर दिया …….!!!”
गुरुजी मेरे इस असमनजस भरे व्यवहार को देखकर, मुस्कुराते हुए बोले– “मजा आया ?”
फिर बोले—-
• राज्जे, ये ही सही मायने में भगवान की आराधना है। भगवान इन्सान के अन्दर ही बसता है।
• ये दर्द, उसके अन्दर बसने वाली आत्मा ही महसूसकरती है। जब उसके शरीर में से आत्मा निकल जाती है, तब
उसे शरीर नहीं, शव कहते है।
• इस आत्मा के बगैर, इस शरीर को कुछ भी महसूस नहीं हो सकता। ये दर्द, इसी आत्मा को ही होता है और ये आत्मा, परमात्मा अर्थातः ईश्वर का ही अंश है। अगर तुमने किसी इन्सान की सेवा कर ली, तो समझो, तुमने भगवान की सेवा कर ली। क्योकि उसमें परमात्मा का ही अंश विराजमान है।
….गुरुजी ने मुझ जैसे नासमझ को इतना बड़ा ज्ञान इतने सरल और समझ में आने वाले शब्दों में दे दिया…
……मैं तो निहाल हो गया।