उत्तर प्रदेश के रहने वाले दूबे जी को, राजस्थान में स्थित अपनी जायदाद की कुछ समस्या थी। जो उसने वहाँ एक बैंक को किराये पर दे रखी थी। दूबे जी चाहते थे कि वह जगह खाली हो जाये परन्तु इसके लिए बैंक अधिकारी तैयार नहीं थे।
संयोग वश, दूबे जी गुरुजी के शिष्य डा. शंकर-नारायण जी से मिले। उसने, उनसे इस विषय पर सलाह माँगी तो डा. शंकर-नारायण ने कहा, “मुझे इस विषय में इतनी जानकारी नहीं है। ऐसा करता हूँ कि मैं तुम्हें अपने गुरूजी से मिलवाता हूँ, वे तुम्हारा काम करवा सकते हैं। यदि उन्होंने ‘हाँ’ कर दी तो तुम्हारा काम हो जायेगा।” दूबे जी इसके लिये राज़ी हो गये।
डा. शंकर-नारायण, उसे गुरुजी के पास लाये तो गुरूजी ने उससे पूछा—
“तुम क्या चाहते हो?”
तो उसने अपनी समस्या गुरुजी को बता दी और कहा कि वह चाहता है कि उसकी वह जगह खाली हो जाये। गुरुजी बोले :
“जाओ, तुम्हारा काम हो जायेगा।”
मीटिंग के लिए तय समय पर दूबे जी, बैंक के प्रधान कार्यालय (Head Office) गये और वहाँ ऑफिसर से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे।
जब दूबे जी वहाँ इंतजार कर रहे थे, तभी दूबे जी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गये कि गुरूजी उस ऑफिसर के कमरे में जा रहे है। कुछ देर के बाद उस ऑफिसर ने दूबे जी को अपने कमरे में बुलाया। उसकी बात सुनी और बिना किसी परेशानी के उनको जगह खाली करके देने की बात मान ली।
जल्दी ही दूबे जी को उस जगह का कब्ज़ा मिल गया।
गुरुजी के वे शब्द : “जाओ…., तुम्हारा काम हो जायेगा”
…..काम कर गये।
तथा दूबे जी को अपने जीवन की एक बड़ी परेशानी से छुटकारा मिल गया।
यह सब तो ठीक है लेकिन जैसा गुरूजी ने कहा था उसकी जगह भी कुछ दिनों के बाद बैंक वालों ने खाली कर दी। लेकिन यह अध्याय यही समाप्त नहीं हुआ…., बहुत सी निम्न लिखित बातें हैं जो विचारणीय हैं : –
आखिर गुरुजी, उस बैंक के ऑफिसर के कमरे में करने क्या गये थे…?
कब और किस दरवाजे से गुरुजी, उसके कमरे से बाहर निकले…?
दूबे जी ने गुरुजी को उस बैंक ऑफिसर के कमरे के अन्दर जाते हुए तो देखा परन्तु न तो गुरुजी उसके कमरे में ही थे और न ही कमरे से बाहर जाते हुए ही दिखे…
इसका जवाब आप ही दे दो ना,
……….गुरूजी ।।
मुझे तो ऐसा लगता है कि …….आपने स्वयं ही जायदाद खाली करने का आदेश दिया था उस बैंक ऑफिसर के अन्दर बैठकर।