जब सही और गलत में फैसला कर पाना मुश्किल लगे, तो अपने दिल की आवाज़ सुनो


श्रद्धा के साथ सब्र का होना ज़रूरी है, सब्र रखने से आदमी के मन की शक्ति बढती है


बड़े वीरवार पे मीठी फुल्लियों का प्रसाद चढाने से मालिक प्रसन्न होते हैं


“कई जन्म लेकर भी कोई गुरु को नहीं ढूंढ सकता l
गुरु ही अपने शिष्यों को ढूंढता है l “

A person cannot seek his Guru even after taking multiple births. It is always the Guru, who finds His Shishyas and then brings them close to Himself.


“जब साधक को मैं की अनुभूति ना रहे. और यह भी अनुभूति ना रहे कि कुछ अनुभव किया जा रहा है. जब वह ‘परम शुन्य’ में विलीन हो जाये और इस विलीनता का उसे आभास भी ना हो. तो यह परम समाधि की अवस्था होती है”

When the seeker is devoid of his ego and stops experiencing “the self”. When he does not even realize that something is being experienced. When he reaches a state of thoughtlessness and doesn’t even realize the void being experienced, then it is a state of the ultimate trance.


कभी-कभी, जो हम चाहते हैं, वो हमें नहीं मिलता, और कभी बहुत इंतज़ार के बाद मिलता है. सच्ची श्रद्धा वो है, जो ऐसे समय में भी कह सके… “हे मालिक, आपका शुक्रिया… आप ही बेहतर जानते हैं”

Sometimes we don’t get what we want and sometimes we get it after a long wait. True faith is that, which inspires a person to thank His Guru in all circumstances and believe that his master knows what is best for him.


जब कुछ न था, तब हम थे,
जब कुछ न होगा, तब हम होंगे l
मृत्यु तो बस, एक पर्व है,
जीव की यात्रा तो अनंत है ll
सद्गुरु की कृपा दृष्टि से ही
यात्रा पूर्ण और संपूर्ण होना संभव है l

When there was nothing, we were there
When there will be nothing, we will be there
Death is just a Fiesta,
Life’s journey is infinite
It is only possible to complete this journey with the blessings of a true Guru.


जब आत्मज्ञान हो जाता है तो बाहरी ज्ञान की आवश्यकता नहीं पड़ती। ज्ञान की असीम शक्ति हमारे भीतर है। गुरु कृपा से जब उस ज्ञान का द्वार खुल जाता है तब सब कुछ उसमें समां जाता है।

When internal enlightenment is achieved, then the external knowledge is not required. There is an immense power of wisdom within us. With the blessings of our Guru, when the door to that knowledge is opened, then everything else merges into it.


जहाँ सत गुरु का आगमन होता है, वहां डर का अंत होता है।
और जहाँ डर का अंत होता है, वहां जीवन की शुरुआत होती है।।

With the advent of Sat Guru, the fear ends.
And where fear ends, is where the life begins ..


गुरु और शिष्य के बीच का आध्यात्मिक सम्बन्ध बिना शर्त अनंत स्नेह का होता है जिसमे किसी भी प्रकार के स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता।

The spiritual relationship between a Guru and His disciple is of infinite and unconditional love, which has no place for any kind of selfishness.


सेवा एक ऐसा सौभाग्य है, जो एक अनुकूलित आत्मा को गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।

‘Sewa’ is a privilege, which is granted to an optimized soul with his Guru’s grace.


Faith is not Believing that He CAN…
Faith is… KNOWING that He WILL.


“गुरु की सच्ची सेवा में उत्कृष्टता का खजाना छिपा है। इसकी कीमत का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। “

“There is a treasure of excellence hidden in the true Sewa of your Guru. Its price can not even be estimated. “


यह सत्य है कि अपने गुरु का साक्षात सामने होना, मन को भटकने नहीं देता। किन्तु यह भी सत्य है कि गुरुदेव अपने भक्तों के हृदय में निवास करते हैं। जिनके हृदय में श्रद्धा है, उनके लिए गुरुदेव का साक्षात सामने होना अनिवार्य नहीं, वो तो अपने मन के नेत्रों से हर समय उनके दर्शन पा लेते हैं। उनकी प्रत्येक अनुभूति में वो बसते हैं।

It is true that in the physical presence of the Guru, the mind does not wander. But it is also true that the Guru resides in the hearts of his devotees. It is not necessary for the Guru to always be physically present for the people who have true devotion. For them, He is omnipresent and they can always see Him through their conscience. He remains in their every sensation.


इंसान अच्छा या बुरा जन्म से नहीं, बल्कि कर्म से होता है। सभी में एक जैसी प्रवृत्ति होती है। यह हर एक पे निर्भर करता है कि वो अच्छाई का चयन करता है या बुराई का। जिसके भीतर सत्कर्म व परोपकार करने कि इच्छा हो, सज्जनता का वास हो, ऐसा इंसान जहाँ जाता है, वहाँ प्रकाश फैलाता है। उसे खुद को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसे में गुरु चरणों में सेवा करने से, गुरु कृपा भी स्वतः ही प्राप्त होती है।

People are not born good or bad, but they become good or bad by their actions. The nature of all children is similar when they are born. It depends on each one, as to which path they choose – good or bad. The person who is desirous to do good deeds and welfare. within whom is the abode of nobleness, will spread his light where ever he goes. He does not need to prove himself. When such a person reaches his Guru and devotes himself to Sewa, he automatically receives the grace of His Guru.


जीवन में कुछ भी अकारण नहीं होता। जो भी हो रहा है, उचित समय आने पर उसका उद्देश्य स्वयं प्रत्यक्ष हो जाता है।

Nothing happens in life without a reason. The purpose of whatever is happening in our lives, will automatically be known when the time is right.


बाहरी स्वर्ग और नर्क केवल हमारी मनोदशा है। हमारे संतोष अवं असंतोष की अवस्था के प्रत्यक्षीकरण हैं। जो भी व्यक्ति अपनी परिस्थितियों से संतुष्ट है, वो स्वर्ग की अवस्था में है। असंतुष्ट व्यक्ति के पास कितने ही सुख क्यूँ न हों, उसकी परिस्थिति नर्क के समान है। जहां नर्क का अंत होता है वहीँ स्वर्ग कि अभिलाषा भी समाप्त हो जाती है। और जहां स्वर्ग और नर्क का भेद ही मिट जाये, वह अवस्था मुक्ति की ओर ले जाती है।

Heaven and Hell as they seem to us during the course of our lives is just our mindset. It is the manifestation of the state of our satisfaction or our discontent. Any person who is satisfied with his circumstances, is living in a state of paradise. Where as even with every possible amenity in the life of a disgruntled person, his situation is similar to Hell. Where the hell ends, the desire to be in Heaven also ends. And when the distinction between heaven and hell is erased, that condition leads to salvation.


हमें किसी भी व्यक्ति का अथवा किसी भी परिस्थिति का, पक्ष – विपक्ष से नहीं, अपितु धर्म – अधर्म एवं निर्मलता – मलीनता की तुला पे रख कर उसका समयक आंकलन करना चाहिए। जब हम पक्ष – विपक्ष से परे हो जाते हैं, तब हम किसी व्यक्ति या परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना और निजी स्वार्थ से हट कर उसे देखते हैं। ऐसा करने से घृणा का अंत होता है।

If we ever try to assess some one or some situation, it is important that we do it impartially. Instead of taking sides due to favoritism, we should put emphasis on the purity of intention and the need according to the time concerned. When we keep our self interest apart then we are able to look at a person or an event without being affected by it. Doing so brings an end to hatred.


गुरु भक्ति व सेवा में अग्रसर व्यक्ति अक्सर अपने को शक्तिशाली व महत्वपूर्ण महसूस करता है। ऐसे में अहंकार का आना सम्भव है। किन्तु यदि ऐसा होता है तो सेवा के तात्पर्य ही बदल जाते हैं। यह अति आवश्यक है कि सेवा के मार्ग पे चलते हुए, विनम्रता का परित्याग ना किया जाए। सेवा से शक्ति प्राप्त होती है, यह सत्य है; किन्तु उसके साथ ही व्यक्ति के उत्तरदाइत्वों की परिधि भी बढ़ जाती है। अहंकार के आगमन के पश्चात यह भूलना भी सम्भव है कि सेवा किन के लिए व किन के समक्ष की जा रही है। किन्तु इस तथ्य को स्मरण रखना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।

संगत सेवा का बहुमूल्य अवसर व्यक्ति को उसके कल्याण के लिए प्रदान करती है, इस लिए संगत का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। सेवा के समय यह सदैव याद रखना चाहिए कि इस कार्य के नाम में ही इसका समन्वय छिपा है – सेवा।

A person fully engrossed in Guru Bhakti and Sewa may start feeling powerful and important. It is also possible for ego to start raising its head. But if such a thing does happen, the entire meaning of Sewa changes. It is very important that while treading the path of ‘Sewa’, humility should not be abandoned. It is true that a person derives power from the Sewa but it is also true that the responsibilities increase in an equal manner. After the onset of ego it is also possible to forget the reason of doing Sewa – For whom it is being done and why? But this fact is not only important to remember, it is mandatory.

The ‘Sangat’ provides a valuable opportunity to the ‘Sewadaar’ for his welfare and that is why it is of utmost importance to take care of the ‘Sangat’. A person should always remember that the name of this action summarizes its nature – ‘Sewa’ (Service)


हमारे जीवन में जो कुछ भी हो रहा है, उसका सम्बन्ध हमारी मनोस्थिति से भी है। हम क्या सोचते हैं, इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से हमारे जीवन में प्रत्यक्ष होता है। एक आनंदपूर्ण क्षण, हमें अनंत प्रतीत हो सकता है, उसी प्रकार कठिनाई का एक क्षण भी अनंत प्रतीत हो सकता है। किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए, कि जो प्रतीत होता है, वो सत्य नहीं।

सुख और दुःख अनुभूतियाँ हैं, जो जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। गुरु कृपा की छाँव में, जीवन बीतता रहे, तो धीरे – धीरे व्यक्ति इस सत्य को समझ लेता है, कि जीवन का तात्पर्य, अनुभूतियों से कहीं अधिक है।

Whatever is happening in our lives has a certain relationship to our mindset as well. What we think, directs its influence in our lives. A joyful moment for example, may seem to be endless, or in the same way a moment of difficulty can also seem to be infinite. But we should never forget, that whatever appears to us, may not be the truth.

Pleasure and pain are just sensations which are an integral part of life. If life goes on with the blessings and grace of the Guru, a person does slowly realize this truth, that the implication of life, is far more than just feelings.


सच्चे हृदय से निकले प्रेम, करुणा व संवेदना में इतनी शक्ति होती है कि इसमें निकट निर्जीव को भी सजीव में परिवर्तित करने का सामर्थ्य होता है।

True feelings of love, compassion and sensitivity are so powerful that they have the capability to give a new lease of life even to those nearing their death.


अरदास:

हे मेरे मालिक, मेरे लिए इतना ही काफी है कि आप मेरे पालनहार हो और मेरी पहचान के लिए इतना ही काफी है कि मैं आपका बंदा हूँ। आप वैसे ही हैं जैसा मैं चाहता हूँ, बस आप मुझे वैसा बना दें, जैसा आप चाहते हैं। जय गुरुदेव।।

Prayer:

My Master, For me it is sufficient that you are there to take care of all my needs and for my recognition, it is enough that I am known as your devotee. You are just the way I want. Please make me just the way you want. Jai Gurudev


अहंकार और स्वाभिमान में अंतर होता है जिसे समझना आवश्यक है। प्रायः व्यक्ति को अपना अहंकार, अपना स्वाभिमान प्रतीत होता है और दूसरे के स्वाभिमान को वो उसका अहंकार समझने लगता है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति भ्रमित हो जाता है और कभी-कभी कुछ अवांछित कार्य कर लेता है। यदि इस भ्रम से बच सकें तो उन कार्यों के पश्तातापी परिणामों से भी बचा जा सकता है। जो व्यक्ति संपूर्ण रूप से गुरु को समर्पित होते हैं, उनका मार्गदर्शन स्वयं हो जाता है।

It is essential to understand the difference between Ego and Self-esteem. A person often makes the mistake of misunderstanding his (/her) ego to be self-esteem where as the self-esteem of others appears to be their ego. Such a situation may lead to some unwanted actions which may have to repented later. If a person can peep into his conscience and avoid this confusion, then the sorrow of repentance can also be avoided. The one who surrenders himself completely to his Guru, is automatically guided towards the correct path.


प्रायः व्यक्ति अपनी अनभिज्ञता, अपने भय, उपेक्षा और अहंकार में अपने सम्बन्धों की महत्ता को समझ नहीं पाता। ऐसे में वो अपनी भूल को कभी स्वीकार नहीं कर पाता। उसे दोष सदैव दूसरों में ही दिखता है और वो स्वयं को पीड़ित घोषित कर देता है। यही कारण बन जाता है आपसी द्वेष का।
यदि व्यक्ति अपने परिवार और सांसारिक सम्बन्धों में दो बातों का ध्यान रख पाये तो कई कष्टों से मुक्ति मिल सकती है। पहली – कृतज्ञता और दूसरी – क्षमा।

अपने सम्बन्धों के प्रति कृतज्ञता और अपनी भूलों के लिए क्षमा। इन दोनों को व्यक्त करने के लिए कभी भी विलम्ब या संकोच नहीं करना चाहिए।

यह जीवन की दिशा बदल सकता है।

Often people in their ignorance, fear, indifference and arrogance do not understand the importance of their relationships. Instead of looking at their own mistakes, they keep finding faults in others and declare themselves as the victim. This becomes the cause of mutual animosity.
If a person can take care of two things in his family and other relations, many sufferings can be avoided. First – Gratitude and second – Forgiveness.

Having gratitude towards people who matter, for all that they have done for the person and seeking forgiveness for one’s mistakes. A person should neither delay nor hesitate to express these two feelings.

This can change the entire course of a person’s life.


काल से परे कोई नहीं। जो आज है, वो कल नहीं होगा और जो आज नहीं है, वो कल होगा। सृष्टि के इस चक्र में परिवर्तन निरंतर होता रहता है। जो दृश्यमान है, उसमें भी और जो अदृश्य है, उसमें भी। हम में भी। अपने गुरु से हमारी यह प्रार्थना है, कि हमारे जीवन में निरंतर होते इस परिवर्तन को सही दिशा दें, जिससे हम अपने इस मानव जीवन को सफल कर सकें।

No one is beyond time. What exists today, will not exist tomorrow and what does not exist today, will exist tomorrow. In this cycle of creation and destruction, the only thing constant is change. Everything continues to change. Both – that which is visible and even that which is invisible. We also undergo this process of change continuously. It is our prayer to our master, the changes that occur constantly in our life, may be moulded in the right direction, so that we can successfully achieve the correct purpose of our human life.


भक्ति का कोई भी ढंग पूर्व निर्धारित नहीं होता। भक्ति में जो आवश्यक है, वो है भक्त का भाव। भक्त की मंशा। यदि भक्त में भाव हैं तो मालिक भी मौजूद हैं। यदि भाव नहीं, तो कुछ भी नहीं। जब भक्ति कर्म-काण्ड से परे हो जाये और भक्त के मन में अपने भगवान् के लिए सिर्फ निश्छल प्रेम रह जाए, तो भगवान् भक्त की हर प्रार्थना स्वीकार करते हैं। भक्ति की परिकाष्ठा में भक्त अपने भगवान् में इतना विलीन हो जाता है, कि दोनों में अंतर करना भी मुश्किल हो जाता है। उसी प्रकार जिस प्रकार समुद्र में डूबा हुआ एक लोटा। पानी में लोटा होता है और लोटे में पानी… दोनों कथन ही सत्य हैं।

There is no pre-determined manner or ritual of devotion. What is necessary in devotion, is the feeling of the devotee. The intent of the devotee. If devotion is present in the heart, God is also present there. If the feelings are missing, nothing can be achieved. When devotion becomes free of fixed actions and just unconditional love remains then the Lord listens to every prayer of His devotee. The epitome of devotion is, when the devotee merges in such a way in his God, that it becomes difficult to distinguish between the two. Just like, a jar dipped in the sea. Whether we say that the jar is in the water or that water is in the jar, it doesn’t matter… both statements are true.


गुरु भक्ति में सबसे महत्त्वपूर्ण है भाव। उनके प्रति भक्त का प्रेम। यदि प्रेम है तो नियमों का पालन, नियमों का आदर स्वतः हो जाता है। किन्तु जहां केवल नियम हों और प्रेम न हो वहाँ नियमों का उल्लंघन होना भी निश्चित है।

The most important aspect of devotion towards one’s Guru is the feeling. The love that automatically flows from the heart for Him. If love for one’s Guru exists in the heart then systems are also automatically followed. But if there are only systems (fixed actions) and the love is missing, then sooner or later, the systems themselves also become unsustainable.


जब भक्ति में अनौपचारिकता आ जाती है। पवित्रता आ जाती है। वो बनावट-हीन हो जाती है, तो एक सहज बंधन भक्त और उसके ईष्ट में बन जाता है। ऐसे शिष्य के मुख से निकली बातें, उनके ईष्ट को भी मान्य होती हैं। सच्ची भक्ति को किसी व्याख्यान की आवश्यकता नहीं होती। भक्ति के सम्बन्ध को भक्त और उसके भगवान् दोनों ही समझते हैं इसलिए किसी और का इसे समझना या उसे समझाना अनिवार्य नहीं। गुरु भक्ति में डूबा व्यक्ति अलग ही दिख जाता है।

When Bhakti becomes informal, pure… and free of fake appearances, then the devotee forms a seamless bond with his Guru. In such a relationship, even simple things uttered from the mouth of the Shishya are fulfilled by his Master. True Bhakti does not need to be popularized. This relationship is understood by the Shishya as well his Guru, so it is not important how any one else looks at it. A person immersed in Bhakti of his Guru stands out amongst millions.


जब गुरु शारीरिक रूप से भक्त के सामने नहीं होते तो भक्त को यह नहीं भूलना चाहिए कि वो सर्वत्र विराजमान हैं। प्रत्यक्ष में भी वो हैं और परोक्ष में भी वही हैं।

When the Guru is not physically present in front of the devotee, it must not be forgotten that Guru is present everywhere. In whatever is visble to the eye as well as in what is not visible to the eye.


सत्य केवल वही नहीं है जो हमें दिख रहा है। सत्य उसके अतिरिक्त भी हो सकता है।

और होता भी है।

The truth is not limited to only what is visible to us. Truth can be beyond that.

In fact, it is beyond that.


जिसने इन्हे जिस रूप में देखा है, ये उससे उसी रूप में मिले हैं। इनकी छवि प्रत्येक के लिए उसके मन अनुकूल है। कोई एक व्यक्ति इन्हे सबके लिए एक ही छवि में बाँध नहीं सकता। हमें सिर्फ यह याद रखना है कि ये वो हैं जो सबके हैं और सब रूप में एक ही हैं।

He appears in that form in front of each of us, in which we imagine Him to be. His image may be different in each devotees mind. No one person can bind Him into a single image for everyone else. We should just remember that He is universal and remains the same irrespective of our perceptions.


Faith consists in believing… when it is beyond the power of reason to believe


अभिमान को त्याग कर मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है। क्रोध को त्याग कर शोक नहीँ होता है और लोभ को त्याग कर मनुष्य सुखी हो जाता है। <,/p>

गुरुदेव सबके जीवन को प्रकाशमय करें।

A person becomes respected when he discards his ego. He becomes rid of grief when he discards his anger and attains happiness when he discards his greed.

May Gurudev illuminate everyone’s life.


ज्ञान कभी संपूर्ण नहीं होता। ज्ञान आकाश की भांति अनंत होता है, जितना उसे पाने का प्रयास करो, उतना ही उसका विस्तार समझ में आता है। प्रत्यक्ष से परे, शब्दों से मुक्त – वो भी तो ज्ञान ही है। चेतन भी, अवचेतन भी। सच्चा ज्ञानी वही है जो सत्य को समझता है। सच्चा ज्ञानी वही है जो ज्ञान के आंकलन का प्रयत्न नहीं करता। जो ज्ञान की मात्रा निर्धारित करने का प्रयत्न नहीं करता।

सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए सबसे अनिवार्य है, गुरु के प्रति समर्पण। गुरु कृपा से ही शिष्य आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है और बाहरी ज्ञान की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

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Knowledge is never absolute or complete. Knowledge is infinite, like the sky. The more one tries to attain it, the more extended it seems. Beyond the visual, free of words – that is also knowledge. Conscious, as well as subconscious. A true seeker understands this truth. A true seeker does not try to assess the knowledge. He does not attempt to determine the amount of knowledge.

The most important step towards acquiring true knowledge is to surrender to your Guru. By the grace of the Guru, a disciple moves towards enlightenment and the need for external knowledge ends.


परम आनंद का स्त्रोत है इनकी भक्ति। जिसने इनकी सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया, फिर उसे कोई कष्ट नहीं। कोई भय नहीं।

Devotion towards Him is the ultimate source of pleasure. The ones who have dedicated themselves in service to Him, have no pain. Have no fear.


सामाजिक असमानताओं का मूलाधार है अज्ञानता। बड़े बड़े ज्ञानी भी अपने ज्ञान के अहंकार में दिखाव और आडम्बर के कारण भ्रमित हो सकते हैं। जब परोक्ष से अधिक महत्व प्रत्यक्ष को दिया जाये। आध्यात्म से अधिक प्राथमिकता भौतिकता को दी जाए। शरीर की पवित्रता पर बल देकर मन की पवित्रता की अनिवार्यता को भुला दिया जाए। ऐसे में समाज, शासन या धर्म के दृष्टिकोण से उच्च वर्गों पर स्थापित व्यक्ति जन साधारण की अज्ञानता का लाभ उठा सकता है। क्यूंकि ऐसे में शासित होना अति सरल हो जाता है। ज्ञान के सूत्रों के अनुपयुक्त और अनुचित व्याख्या से नियंत्रण पाकर अपना वर्चस्व स्थापित करना सरल हो जाता है। आध्यात्म ज्ञान का उद्देश्य इस संसार का कल्याण है, शासन करना नहीं। सद्गुरु के ज्ञान का प्रकाश, व्यक्तियों के इस अज्ञान रुपी अन्धकार को दूर कर देता है व समानता की ओर ले जाता है। गुरु के दर पे कोई बड़ा या छोटा नहीं होता और व्यक्ति अज्ञान जनित अंध-विश्वास के भय से मुक्त हो जाता है।

………

The bedrock of social inequalities is ignorance. Even the wisest of men can be misled towards ignorance in case of arrogance and pretensions based on their knowledge. When more importance is given to the visible and direct than the indirect. When materialism is given priority over spiritualism. When emphasis on the purity of the body super-seeds the inevitability of purity of the mind… In such a scenario, influential people in society, government or religion may be in a position to take advantage of the ignorance of masses, as masses are most vulnerable to be governed that way. Inappropriate and unreasonable interpretation and spread of the sources of knowledge make it easy to gain control and dominate. The purpose of spiritual knowledge is the welfare of the world, not to rule. The light of the knowledge of the True Guru, allows individuals to overcome the darkness of their ignorance and move towards equality. At the abode of the Guru, no one is big or small and a person gets freed from the fear of ignorance generated superstitions.


व्यक्ति को समाज से भय नहीं लगता। व्यक्ति को भय होता है समाज के माध्यम से अपने सत्य से सामना करने का, अपनी वास्तविक्ता को स्वीकार करने का।

जो व्यक्ति अपनी वास्तविक्ता को स्वीकार कर ले, उसका भय भी स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

गुरु कृपा से व्यक्ति को इस भय की नगण्यता का भी आभास हो जाता है।

Person does not fear society. A person is afraid to face his own truth through the society and to accept its reality.

The person, who accepts his reality, automatically wins over his fear.

With the Guru’s blessings a person is also able to understand the meaninglessness of this fear.


सद्गुरु इस जन्म में ही नहीं, अपितु प्रत्येक जन्म में अपने शिष्य के साथ होते हैं। शिष्य ही कभी कभी अज्ञानतावश गुरु का साथ छोड़ देते हैं।

सद्गुरु का हमारे जीवन में वापस लौटना तभी संभव है, जब हम उन्हें अपने हृदय से निकाल देते हैं।

यदि हम उन्हें अपने हृदय में ही स्थापित रखें, तो उनके लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता।

The true Guru guides his disciple not only in this lifetime, but in each birth. The disciple himself ignorantly moves away from his Guru sometimes.

The Guru’s return is only possible in our lives when we remove Him from our heart.

If we always keep Him close and treasured in our heart, then there is no question of returning.


सेवादार को यह बात सदैव स्मरण रखनी चाहिए कि सेवा उसकी वजह से नहीं हो रही, अपितु, वह सेवा की वजह से वहां प्रस्तुत है।

सेवादार के समस्त अधिकार, उसके दायित्व के विस्तार अनुकूल होते हैं। उन्हें अपने अहंकार को पोषित करने का माध्यम नहीं बनने देना चाहिए। ऐसा होने देना एक सेवादार के जीवन की बहुत बड़ी भूल हो सकती है।

जो सेवादार यह समझ ले, कि उसके दायित्व क्या हैं, व उनकी महत्ता क्या है, उस सेवादार में निःसंदेह नम्रता भाव उत्पन्न हो जायेगा।

सेवादार का अर्थ एवं दायित्व ही है सेवा करना, अपने अहम् की पूर्ति करना नहीं।

A Sewadaar should always remember that he exists as a Sewadaar because of Sewa and not vice versa..

His powers may enhance with time but they are only to fulfill his responsibilities which also expand accordingly. They should not be a means of feeding his ego. For this to happen in his life can be a big mistake.

A sewadaar who understands, what his responsibilities are, and also their importance will undoubtedly be humble.

The meaning as well as duty of a sewadaar is the one who serves, not the one who rules.


जो उचित है, वो सबके लिए और सदैव उचित है। और जो अनुचित है, वो सबके लिए अनुचित है। यही समानता का आधार है। हर व्यक्ति को अपने धर्म की पूर्ति करनी चाहिए और यह स्मरण रखना चाहिए कि जितने उसके सत्कर्म होंगे उतना उसे पुण्य प्राप्त होगा व जितने दुष्कर्म होंगे उतने पाप का वो भागी होगा। हम सभी अपने कर्म के मार्ग पर चल रहे हैं और यह यात्रा निरंतर चलती रहती है। गुरु कृपा से ही इस यात्रा को पूर्ण करना संभव है।


भक्त के जीवन में अनुशासन का एक अपना महत्व है किन्तु यह आवश्यक है कि व्यक्ति इसे समझ कर अपने आचरण में उतारे।

पूर्ण रूप से अनुशासन वही है जिसके लिए प्रयत्न न करना पड़े। अनुशासन एक ऐसी आंतरिक अवस्था है, जो व्यक्ति के स्वभाव का, उसके संस्कार का भाग बन जाती है। तब अनुशासन एक कार्य प्रतीत नहीं होता, जिसे पूर्ण किये जाने की आवश्यकता हो। उसी प्रकार, जैसे श्वास लेना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है। उसके लिए प्रयास नहीं करना पड़ता। श्वास लेने के लिए स्मरण भी नहीं करना पड़ता।

Discipline is necessary in the life of a devotee but it is important for him (/her) to understand that it should be part of his conduct.

Being fully disciplined is not something which can be tried for everyday, eventually it should flow naturally. Discipline is an internal state, the person’s nature, it becomes part of his sacrament. Then, discipline does not seem to be a work, which needs to be completed. In the same way as breathing; which is a continuous natural process. One does not have to try to breathe. Does not even need to remember it.


व्यक्ति को इस संसार को इसकी अच्छाइयों और बुराइयों सहित स्वीकार करने योग्य बनने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। उसे यह समझना आवश्यक है कि जीवन में चुनौतियां हैं और जीवन अर्थपूर्ण चुनौतियों से ही बनता है। उनका सामना करने से बनता है, उनसे भागने से नहीं।

गुरु का उद्देश्य व्यक्ति को क्षणिक प्रसन्न करना नहीं, अपितु गुरु का उद्देश्य होता है हमें यह सिखाना… कि जीवन में प्रसन्न कैसे रहा जा सकता है।

Every person should strive to accept the world, including its good as well as bad experiences. It is necessary to understand the challenges in one’s life and also understand that life becomes meaningful only with its challenges. To face them, not to escape from them.

The purpose of the Guru, is not to make a person happy momentarily, the real motive of the Guru is to teach us… how to be happy in life.


इस संसार को जैसा हम देखना चाहते हैं, जैसा बनाना चाहते हैं, हमें वैसे ही कार्य भी करने चाहियें। अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर रहना चाहिए। जीवन में संकट निरंतर आते रहते हैं। आवश्यकता है तो उन समस्याओं का प्रेम भाव व निःस्वार्थ भाव से सामना करने की। यदि ऐसा हम करें, तो जीवन में कोई भी संकट बड़ा नहीं। सब छोटे प्रतीत होते हैं। किन्तु जीवन में केवल दूसरे से सहायता की अपेक्षा न रख के, हमें स्वयं सहायता की पहल करनी होगी। तभी पारस्परिकता आरम्भ होगी। परिवर्तन लाने के लिए हमें स्वयं को परिवर्तित करना होगा। विकल्प हमारे समक्ष है, चयन भी हमें ही करना है।

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We should act in the same way as we expect of the world. The way we see it and want it to be. Constantly pursue the goals which are meant to be. Life is full of challenges. What is needed is to face the difficult times with compassion and selflessness. If we are able to achieve this, then no difficulty is big enough. Every challenge seems minimized. But we must remember that instead of expecting anything from anyone, we should first be ready to start giving without expectation. Only then is any reciprocation possible. To bring about change, we must first change our self. The choice is before us… we have to choose wisely.


Worry ends… when faith begins


Faith in Him, includes faith in His timing.


भक्ति में और भक्ति के मोह में बहुत अंतर होता है। भक्ति का मोह भक्त का शत्रु होता है जो भक्त को उसके मार्ग से भटका देता है। इस मोह में भक्त यह सोचने लगता है कि वो जो कुछ भी कर रहा है, वो उचित है। अनुचित कुछ भी नहीं। मोह वो तर्कविरोधी वृति है, जो किसी पवित्रता का ध्यान नहीं रखती, वो उद्देश्य को भूल जाती है। और इस प्रकार वो प्रायः दोष का स्वरुप ले लेती है। भक्त को सांसारिकता की ओर ले जाती है। सांसारिकता का आधिक्य बड़े से बड़े भक्त को अहंकार और पतन के पथ पे ले जाता है। यह भक्ति का मोह ही था जिसने एक महान भक्त दशानन को भी रावण बना दिया।

जहाँ मोह होता है वहां भक्ति वास नहीं कर सकती क्यूंकि भक्ति का मार्ग तो मुक्ति का मार्ग है और मोह का मतलब है बंधन।

There is a huge difference between devotion and a delusion of devotion. Delusion of devotion actually is an enemy of the devotee and can mislead. In this delusion a devotee might think that whatever he (/she) is doing is right. That he can do no wrong, because he is a devotee. This delusion defies the person’s logic and does not adhere to any piousness. It becomes directionless and often takes a defective form. It takes the devotee more towards worldliness and an excess of worldliness can lead to ego and ultimately away from the purpose itself. An example to understand this is Raavan. Everyone knows what happened when his devotion turned into delusion of devotion.

Delusion prevents devotion from developing altogether; as devotion is the path to salvation where as delusion is a force that binds to the world.


भक्ति का मोह व्यक्ति से उसका विवेक व उसकी संवेदना को छीन लेता है। ऐसे में भक्त केवल विधियों में उलझ जाता है। निष्ठा छूटने लगती है और व्यक्ति आधिक्य को ही भक्ति समझने लगता है। कभी कभी तो भक्त स्वयं को आराध्य का अभिभावक समझने लगता है। उसे स्वयं ये भ्रम होने लगता है कि अपने आराध्य पर अधिकार केवल उसे ही है।

भक्ति की महिमा अधिकार में नहीं, समर्पण में होती है। यदि भाव समर्पण के स्थान पर नियंत्रण का हो जाए तो परिस्थितियां विपरीत हो जाती हैं। भक्त और आराध्य के सम्बन्ध को बाहरी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। भक्ति का आधार दिखावे में नहीं, अपितु सादगी में है।

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Delusion in Devotion of a person seizes his discretion as well as his sympathy. The devotee becomes entangled only in the rituals. Dedication starts taking a back seat and an excess show of rituals is misunderstood as devotion. Sometimes the devotee even misplaces himself (/herself) as the guardian of his Master. He falsely starts believing that he is the only one who has a right over his Master.

The glory of devotion lies in dedication not in authority. If a person starts keeping a sense of control in place of dedication, the situation becomes contradictory. Relationship between devotee and his Master never requires external evidence. The essence of devotion does not lie in pretenses, but in simplicity.


भक्ति, मुक्ति का आधार है और मुक्ति तो केवल समर्पण से ही संभव होगी। और समर्पण के लिए पुष्प नहीं, स्वर्ण नहीं, आभूषण भी नहीं; तथ नहीं, धन नहीं, विधि विधान भी नहीं… केवल अपने मन को अर्पित करना अनिवार्य है। यदि समर्पण के लिए पुष्प अर्पित करने ही हों, तो मालिक को वह पुष्प अर्पण करो जिनसे वो प्रसन्न हों। जैसे, इन्द्रियों का नियंत्रण, दया भाव, शान्ति, तप, क्षमा, ध्यान, सेवा और सत्य। यदि मालिक की आराधना इन पुष्पों से की जाये तो वे अवश्य प्रसन्न होते हैं। भक्ति में भव्यता आवश्यक नहीं है अपितु सरलता अति आवश्यक है।

सरलता के अभाव में भक्त के लिए यह समझना कठिन हो जाता है की प्रायः भक्ति कब मोह में परिवर्तित हो जाती है और ऐसे में पथ भ्रमित होना सरल है।

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Devotion, is a stepping stone for salvation and salvation will be possible only by surrender. And for surrender, one does not need to offer flowers, or gold, or jewelry; Not gifts, or money, not even rituals… what is necessary, is to offer your mind and heart. If you must offer something, then offer that, which makes your Master happy. Such as, control over your senses, compassion, peace, perseverance, forgiveness, meditation, service and honesty. If the Master is adorned by offering these flowers, He is sure to be happy. Grandeur in devotion is not necessary, but simplicity is essential.

In the absence of simplicity it becomes difficult for the seeker to understand that when his devotion may turn into a delusion of devotion and in that case it becomes easy to lose direction.


नकारात्मक विचारों को मन से दूर करना हो, तो मन को सकारात्मक विचारों से भर देना चाहिए।

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To remove negative thoughts from the mind, the mind must be filled with positive thoughts.


गुरु के आदेश से की जा रही सेवा को नियंत्रण का अधिकार नहीं समझना चाहिए। सेवा का उद्देश्य नियंत्रण नहीं होता। आदेश का पालन करने वाले के लिए यह अनिवार्य है कि वो आदेश को समझे और आदेश के साथ दिए गए अधिकार को भी।

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Sewa performed under the instructions of your Guru should not be used as a means of control. The aim of the Sewa is not have control. In order to comply with the instructions, it is essential to understand them as well as the rights and responsibilities associated with them.


भक्त को अपने गुरु के पास जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए इतना ही संकेत पर्याप्त है कि उसके मन में अपने आराध्य के दर्शन पाने की इच्छा है। और यह इच्छा भी तभी जागृत होती है जब स्वयं आराध्य में अपने भक्त से मिलने की इच्छा हो। प्रश्न यह है, कि क्या भक्त में अपने आराध्य से मिलने की इच्छा है? यदि है, तो यही उन का निमंत्रण है। जितनी उत्सुकता एक सच्चे भक्त को अपने गुरु से मिलने की होती है, उतनी ही उत्सुकता गुरु को अपने उस भक्त से मिलने की होती है।

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A disciple does not need an invitation to visit his Guru. The only indication needed is that there is a desire in his heart to see his Guru. And this desire is also present only when the Guru Himself wants to meet His disciple. The question is, Is there any desire in the disciple’s heart to meet his Guru? If yes, then this is the invitation of the Guru. The Guru remains equally eager to meet His true disciples as the disciple himself


His plans are bigger than our worries


जीवन में मनवांछित प्राप्ति न होने पर क्रोध न करें, क्रोध से कुछ प्राप्त नहीं होता है अपितु व्यक्ति खुशी से और दूर हो जाता है।

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Do not become angry because you cannot have what you want, anger achieves nothing but it pushes you further away from happiness.


अहंकार जनित अज्ञानता के अन्धकार में व्यक्ति अपने सत्य से दूर होता जाता है और उसे इसका बोध भी नहीं होता।

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In the darkness of arrogance borne ignorance, a person moves away from his own reality and does not even realize it.


शक्तिशाली वही है, जो स्वयं अपनी शक्तियों को नियंत्रित करना जानता हो। जो स्वयं अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना जानता हो। शक्ति को पाने का अर्थ है – अनुशासन। शक्ति का उद्देश्य, अपना वर्चस्व स्थापित करना नहीं, अपितु समाज को उसकी विषमताओं से दूर करना होता है। व्यक्ति विभिन्न प्रकार से शक्तिशाली हो सकता है। तन से, मन से, धन से अथवा आत्मा से। मालिक यह सदैव देखते हैं, कि व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा से अपनी शक्तियों का सदुपयोग करता है या दुरूपयोग। क्यूंकि उसका यही चुनाव, उसके उत्थान या उसके पतन का सूचक बन जाता है।

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Powerful is the one who knows how to control his (/her) powers himself. Who knows how to control his senses himself. Gaining power implies – to be in discipline. The purpose of power is not to dominate, but to help society overcome its odds. The person may be powerful in different ways. It could be strength of the body, power of the mind, of money or of the soul. The Master always sees how a person uses his free will to use or misuse his powers. Because it’s a choice, that ultimately becomes an indicator of his rise or fall.


अपने जीवन के सत्य को समझने के लिए व्यक्ति को कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं होती। सत्य को स्वीकार करने के लिए सर्वप्रथम, व्यक्ति को अपने मन के द्वार खोलने होंगे। जब तक व्यक्ति, अतीत की पीड़ा व भविष्य की चिंताओं और अपेक्षाओं से निकल कर, वर्तमान में स्थित नहीं होता, तब तक सत्य तक पहुंचना अत्यंत कठिन है। सत्य कोई खोई हुई वस्तु नहीं है, सत्य तो शास्वत है। खोये हुए हम होते हैं, सत्य तो स्वयं हमें ढूंढ रहा होता है। आवश्यकता है उसे अपने तक पहुँचने देने की, उसे दिशा देने की।

*** नव वर्ष सबके लिए मंगलमय हो ***

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To understand the truth of one’s life, a person does not require wander elsewhere. To accept the truth, one must open the door of his (/her) mind. Unless the person, rids himself of suffering of the past and concerns and expectations of the future; and live in the present, the truth is very difficult to reach. Truth is not a lost object, it is eternal. We are the ones who are lost. In fact the truth is searching for us. What is needed is to let it reach us, to give it direction.

*** May the new year bring prosperity to all ***


प्रत्येक सम्बन्ध की आधारशिला है विश्वास। यदि हम विश्वास ही ना कर सकें, तो भक्ति अथवा प्रेम का अर्थ ही क्या?

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Trust is the cornerstone of every relationship. If we cannot even believe; what is the meaning of devotion or love?


If you feel, you are not as close to Him as you used to be….. think…..

who moved?


प्रत्येक भक्त का अपने आराध्य से व्यक्तिगत सम्बन्ध होता है। हम केवल अपना सन्दर्भ परिभाषित कर सकते हैं, किसी और का नहीं।

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Each devotee has an independent relationship with their Master. We may define our interpretation of it, but not of anyone else.


भक्ति, मुक्ति का मार्ग है। किन्तु, भक्ति अपने इष्ट की पराधीनता नहीं है। पराधीन तो हम अपने कर्मों व अपनी इच्छाओं के होते हैं। मुक्ति के लिए गुरु के आश्रय की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार, जिस प्रकार जन्म लेने के लिए माता पिता की।

भक्ति में संदेह तभी होता है जब वो कुछ पाने की लालसा पे आधारित हो। यह भक्ति प्रेम नहीं क्यूंकि प्रेम कभी कुछ नहीं मांगता। प्रेम में लाभ हानि नहीं होती।

प्रश्न यह नहीं है, कि हम आश्रित क्यों हैं? समझने योग्य बात यह है कि इस संसार में जो कुछ भी है सबकी अपनी अपनी महत्ता है और उन सभी के समन्वय से संसार चलता है। विकसित भी होता है।

यदि हम इस समन्वय को अस्वीकार करना चाहें तो कर सकते हैं, किन्तु उससे संसार का सत्य परिवर्तित नहीं होता। सत्य तो शास्वत है और सत्य ही संतुष्टि एवं सुख का माध्यम है। जो सत्य से ही विमुख हो, वो अंतर्मन में दुखी ही रहता है। इस भ्रम में व्यक्ति आजीवन अपना मार्ग ढूंढता ही रहता है और विडंबना यह है कि उसे ज्ञात ही नहीं होता कि वो ढूंढ क्या रहा है।

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Devotion is the path to salvation. But, devotion is not the precariousness of one’s Master. Precarious we are to our actions and our desires. The Guru’s abode is required in pursuit of salvation. Just like parents are required to take birth in this world.

A person may have doubts in his (/her) devotion but only if it based on some unfulfilled wants. Such devotion is not based on love because love doesn’t ask for anything in the first place. There is no loss or gain in love.

The question is not why we are dependent? It should be understood that everything that exists in this world has its own importance and the world moves with proper co-ordination of all its elements. Development is also thus possible.

If we choose not to believe in this coordination, we can. But that does not change the truth of the world. Truth is eternal and truth is the medium to achieve satisfaction and happiness. If a person is detached from the truth, he remains unhappy even in his sub-conscience. In this illusion a person keeps searching for his true path in life and ironically he doesn’t even know what he is looking for.


वर्तमान पल में जो नकारात्मकता या सकारात्मकता व्यक्ति ले कर आता है, वही उसके जीवन की अगली दिशा का फैसला करती है।

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The negativity or positivity you bring into the moment, decides the direction your life goes next.


आध्यात्म दिल से उत्पन्न होता है। जब हमारा दिल ही पवित्र मंदिर बन जाये।

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Spirituality emanates from the heart… Our own sacred temple.


क्या भक्ति करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं ? उसके जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं ?

भक्ति में लाभ अथवा हानि का आंकलन नहीं होता। क्यूंकि जहाँ आंकलन हो, वहां भक्ति संभव ही नहीं। भक्ति तो अपने आराध्य के प्रति व्यक्ति का प्रेम है। और प्रेम कभी मांगता नहीं, प्रेम केवल देना जानता है। भक्ति विश्लेषण नहीं करती। भक्ति अनायास है, अकारण। एक ऐसी प्रक्रिया जो व्यक्ति को मुक्त कर देती है, रिक्त कर देती है। अपने अहम् से, अपनी आकांक्षाओं, अपेक्षाओं, आसक्तियों से। भक्त जितना अपने को रिक्त करे, उतना ही आराध्य का वास होता है उसमें।

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Do all the pains of a person vanish by means of devotion? Does devotion solve all the problems of his (/her) life?

Devotion does not assess any profit or loss. Because where there is this calculation, devotion is not possible. Devotion is just the expression of love towards one’s Master. And love never asks for anything, it just knows how to give. Devotion does not analyze. Devotion is spontaneous, unprovoked. A process, which frees the person; Empties him. From his ego, his aspirations, expectations and attachments. The more emptiness the devotee creates in himself, the more space is created for the Master to reside within him.


गुरु की क्षमता शिष्य के लिए असीम है; किन्तु शिष्य में भी कुछ प्राप्त करने की इच्छा और क्षमता होनी चाहिए।

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The capacity of the Guru is limitless for the Shishya; but the Shishya should have the desire and capacity to receive it as well.


यदि मालिक हमारी गलतियों का हिसाब रखने लगे तो उनसे कौन बच पायेगा? लेकिन वो हमें इतना क्षमा करते हैं कि स्वयं ही भय लगने लगे। फिर वो हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं।

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If the Master starts keeping a track of our mistakes, who can save us from Him? But He forgives us so much that we are totally in awe of Him. Then He guides us.


क्या भक्ति में कुछ प्राप्त करना ही भक्ति का लक्ष्य है? क्या बिना कुछ प्राप्ति के भक्ति निरुद्देश्य है? भक्ति की ऐसी यात्रा का क्या अर्थ है जिसका कोई गंतव्य ही न हो?

जिसके लिए यात्रा ही उसका गंतव्य हो, भक्ति ही उसका मार्ग भी और लक्ष्य भी उसके लिए इन सब बातों का कोई अर्थ नहीं। कोई मूल्य नहीं।

परम भक्त के मन में भक्ति के अतिरिक्त कोई भाव नहीं होता। उसका क्या होगा, क्या प्राप्त होगा, कैसे प्राप्त होगा, कब प्राप्त होगा, कब दर्शन होंगे। इन बातों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

भक्ति तो एक अवस्था है। केवल मन की एक अवस्था। ऐसी अवस्था में प्राप्ति भी स्वतः ही हो जाती है।

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Is the goal of devotion only to achieve something? Is devotion without achievement, purposeless? What is the purpose of this journey without a defined destination?

For the seeker for whom his (/her) journey itself is the destination, devotion is his path as well as aim, these things have no meaning; No value.

Apart from devotion, there is no other aspect in the mind of a true seeker. What happens, what will be, what will he get, how will he get, when will he meet his Master. These questions cease to exist.

Devotion is just a state of being; A state of mind. In that state, realization also happens consequentially.


When you have complete faith in Him, you build a divine connection, that brings peace to the heart and mind.


When we put our worries in His hands, He puts His peace in our hearts.


He hears you and He sees you.

You are not alone in your struggles.

Remain firm and stable, for He has your deliverance planned.


Faith is not the belief that He will do what you want. It is the belief that He will do what is right.


When you are free from the need for an answer, the answer will come, do not force, but relax & let it flow.


Belief helps you lead a happy life, without conflict for you & those around you. That’s the only way it should be.


The nearer you are to Him, the further away you are from hate, pain & anger.


भक्ति भौतिक सुखों के लिए नहीं, आध्यात्मिक सुखों के लिए होनी चाहिए। मन की शान्ति के लिए होनी चाहिए। निःस्वार्थ भक्ति छोड़ देना, अर्थात मन की शान्ति का परित्याग कर देना। धन से सब कुछ क्रय किया जा सकता है, एक मन की शान्ति को छोड़ कर। प्रसन्नता प्रदान करने वाली वस्तुओं को संचय किया जा सकता है, किन्तु प्रसन्नता को नहीं। सुख का साधन प्राप्त किया जा सकता हैं, किन्तु सुख नहीं। यह निर्णय हर व्यक्ति को स्वयं ही लेना पड़ता है कि वो किस ओर जाना चाहता है।

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Devotion should ideally be for spiritual pleasures and not for material ones. It should provide peace of mind. To give up selfless devotion, is, to abandon peace of mind. Money can buy everything, except peace of mind. The objects of happiness may be accumulated, but not happiness. The objects providing luxury and pleasure can be attained, but not pleasure. Every person has to decide for themselves, which way they wish to go.


भक्ति कोई बाहरी प्रक्रिया नहीं। भक्ति मूल से, अंतर्मन से संलग्न होती है। आत्मा की पुकार है – भक्ति। अर्थात, जब तक श्वास है, वो हम में हैं। और जब श्वास नहीं, तो हम उनमें।

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Devotion is not an external process. Devotion originally, is attached to the inner being. It is the call of the soul. That is, till we breathe, He is in us. And when breath goes, then we are in Him.


दिव्यता क्या है ?

देवत्व चमत्कार नहीं है। ना ही अहंकार है। जहां स्वतः दर्शन मात्र से ही जीवन-अन्धकार का बोध हो जाए, प्रकाश की अनुभूति हो जाए, वही दिव्यता है। जिसके दर्शन मात्र से समर्पण का भाव जागृत हो जाए, वही दिव्यता है। दिव्यता उद्घोषणा से प्राप्त नहीं होती, दिव्यता तो भक्ति की पुकार में है। जैसे समुद्र में डूबते हुए व्यक्ति को पार होने के लिए कोई भी विकल्प मिल जाए, तो उसे तो उसी में दिव्यता दिखने लगती है। कभी किसी व्यक्ति को किसी वृक्ष में दिव्यता की अनुभूति हो जाती है। और कभी – कभी किसी पाषाण पे शीश स्वतः झुक जाता है। देवत्व शक्ति प्रदर्शन से नहीं, अपितु भक्त की आस्था और उसके विश्वास से स्थापित होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी भूखे को पेटभर खाना खिला दे, तो वो उसे ही देव समझने लगेगा, क्यूंकि यही तो दिव्यता है। निःस्वार्थ भाव की पराकाष्ठा, त्याग की पराकाष्ठा, प्रेम व करुणा की पराकाष्ठा और संतोष की पराकाष्ठा। सबको एक दृष्टि से देख पाने की योग्यता, वही दिव्यता है। अनिवार्य यह नहीं कि कौन किसका भक्त है और किसका नहीं। अनिवार्य यह है कि व्यक्ति अपने धर्म का पालन कर रहा है या नहीं, क्यूंकि दिव्यता स्वार्थी नहीं होती। कर्म से मुक्त कोई नहीं होता इसलिए शक्तियां अर्जित करना दिव्यता नहीं, उनका उचित प्रयोग करना ही दिव्यता है। दिव्यता अपनी शक्ति से किसी के प्राण लेने में नहीं, अपितु किसी को जीवन देने में है, क्षमा करने में है।

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What is Divinity?

Divinity is not a miracle. Neither is it ego. When the mere sight leads to the cognition of darkness in life and the light of knowledge is experienced, that is Divinity. The mere sight of which awakens a sense of dedication, that is Divinity. Divinity is not received from proclamation; it is in the call of devotion. If a person is drowning in the sea and he gets something to cling on to which takes him ashore, he finds Divinity in it. Someone could feel Divinity in a tree. And sometimes the head automatically bows in front of a stone. Divinity is not a show of strength, but establishment of devout faith and trust. If a person can provide food to someone hungry, then the person receiving the food may see a glimpse of a Divine soul in the provider, because that’s what Divinity is.
Divinity is the culmination of selflessness; the culmination of sacrifice, love and compassion and the culmination of satisfaction.

The pertinence to see everyone with a balanced approach is Divinity. It is not important that who is worshipped and who is not. What is important is whether a person fulfils his duties virtuously or not, because divinity is not selfish. Nobody is exempt from karma. That is why there is no Divinity in acquiring powers; the divinity is in their proper and righteous use. Divinity is not in taking the life of someone by exercising one’s powers, but in giving life to someone. Divinity is in forgiveness.


There is no need to become bitter, what has gone has gone, you must flower again & shine brightly as you did before.


सम्मान को अपने कर्मों से अर्जित किया जाता है। यह तभी संभव है, जब हम स्वयं अपनी वास्तविकता, अपने कर्तव्य और अपने धर्म का स्मरण रखें। किसी और का रूप धारण करने की चेष्टा से, या औरों को भयभीत करने से सम्मान कभी प्राप्त नहीं होता। अपने धर्म, अपने कर्तव्य एवं अपने दायित्वों का निर्वाह तभी संभव है, जब हम स्वयं अपनी वास्तविकता के समीप रहे। जब भी हम उससे दूर भागते हैं, हमें निराशा ही प्राप्त होती है।

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Respect is earned by one’s deeds. This is possible only when we are close to our own reality. we remember our duties and virtues. Trying to impersonate someone else, or to intimidate others never earns respect for a person. To virtuously discharge our duties is only possible when we are close to our own reality. Whenever we tend to shy away from it, we face only disappointment.


भक्ति की पूर्णता नहीं होती। भक्ति एक ऐसा महासागर है जिसका आरम्भ तो है, किन्तु कोई अंत नहीं। यह महासागर तो अनंत है। यदि कोई व्यक्ति यह समझे कि उसने इस महासागर को पार कर लिया है तो यह केवल उसकी धारणा है। उसी प्रकार, जिस प्रकार बीज से वृक्ष उगता है किन्तु बीज स्वयं वृक्ष नहीं होता। यदि बीज अपने आप को वृक्ष समझने लगे तो उसका विकास संभव ही नहीं हो सकता।

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There is no end to devotion. Devotion is like that ocean which has a start but no end. This ocean is never ending and ever expanding. If a person thinks that he has crossed this ocean of devotion, then it is precisely that – his thought. Devotion grows like a tree from a seed, but the seed itself is not a tree. If the seed assumes itself to be complete as a tree, then its further growth is not possible.


Sometimes we just have to be quiet…

Be still…

And just listen.


हम जीवन को ऐसे नहीं देखते जैसे वो है, हम उसे वैसे देखते हैं जैसे हम हैं, इसलिए यदि आपसे कोई दुर्व्यवहार करता है, तो यह उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को दर्शाता है। इसका आपसे कोई लेना – देना नहीं है। अतीत में हुई ऐसी बातों का क्रोध अथवा गम यदि हम भुला नहीं पाते तो वर्तमान में भी हम प्रेम से दूर हो जाते हैं। इन बातों को भुला कर ही आगे बढ़ना संभव है।

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We see things not the way things are but the way we are, So if someone does not treat you right, it is a statement about who they are as a human being. It has nothing to do with you. If we carry anger of such a past in our heart, we ourselves become less capable of loving in the present. To progress, we have to learn to let go.


Ignorance is the source of hatred. And the way to get rid of hatred is realization.


जब हमारी सोच नकारात्मकता से ग्रसित होती है तब हम सत्य को समझने योग्य नहीं होते.

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When our thinking is motivated by negativity, we are unable to understand the truth.


आध्यात्मिकता में आगे बढ़ने में सबसे बड़ा खतरा होता है अहंकार से। अहंकार जनित भक्ति में सब कुछ प्राप्त कर के भी खोने का डर होता है। किसी भी साधक को अपनी भक्ति की तुलना किसी अन्य साधक से करने की आवश्यकता नहीं है, ना ही उसकी भक्ति का अनुसरण करने की आवश्यकता है। एक साधक, जो कुछ भी अपने सामर्थ्य और योग्यता अनुसार कर सके उसे केवल वही करना चाहिए। भक्ति में ऐसी सहजता अति आवश्यक होती है क्यूंकि सहज रूप से आने वाला भाव ही मन का सच्चा भाव होता है।

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The biggest risk one faces while advancing on his (/her) spiritual journey is from his own ego. Even after achieving everything, if the devotion is ego-generated then, there is also the fear of losing everything right back. A seeker need not compare his ways of devotion and service to that of another seeker. Nor is he required to follow them blindly. A seeker, should try and do, whatever he can according to his ability and capability. Such simplicity is of utmost importance in the path of devotion because spontaneity that comes instinctively from simplicity is devotion in the true sense of the heart.


We live in a dynamic environment. In this ever evolving world events keep happening. Things change, circumstances change and people change. Some changes are good and some are hurtful. Letting go, doesn’t mean we must forget the past or try to cover it up. It simply means that we move on and treasure the memories…

Letting go doesn’t mean giving up… it means accepting the fact, that some things just weren’t meant to be.


Thoughts… They are almost impossible to stop as they keep coming to us at much more than the speed of light. The aim is trying to train your mind about filtering the ones you should keep and discard the rest.

By choosing your thoughts and emotions, you can determine the quality of your Life. You determine the effects that you will have upon others and the nature of the experiences of your life.

The epitome of this filtration process is becoming thoughtless. But again, becoming thoughtless does not mean non-existence of thoughts. That is normally not possible. All of us need a thought to allow universal consciousness to express itself through a finite medium. Being thoughtless simply means reaching out to the absolute state of the consciousness which is free of thinking. When the thought remains just that – a thought; which can be accepted or discarded at will. When it stops affecting one’s state of mind.


Inner peace begins the moment you choose not to allow another person or event to control your emotions.


Self growth should always come from within. But if you find someone who inspires & supports you, then you’ve found a jewel beyond price.


A beautiful diamond doesn’t have to yell out “I’m shining”.

it just shines.


Faith doesn’t exempt us from difficulties. The storms of life come to every person.

Faith is to believe that He will not allow a storm to come through, unless there is a purpose for it.


There are some important lessons to be learnt from the past so whether you win or lose, it is the learning of the lesson that matters at the end of each year…

Embrace the New Year with not just a new look but also with a new and positive approach to make things simple in the year ahead.

Begin a new chapter by burying the unpleasant memories of the past and making way for better ones to come in the future.

Do not feel alone. If you will just let Him come into your life, You will realize that you have a companion in whatever happens in your life’s journey.

Stay closer to Him and feel the goodness that comes.

Happy New Year!


When things get darkest the need for the unique light within you is greatest.


You may not be able to change your destination overnight, but you can change your direction overnight.


हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। अब यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, कि उसे अपना जीवन कैसे व्यतीत करना है। और जब भी मन में निर्णय लेने में दुविधा उत्पन्न होती है, तब उसे दूर करने के लिए गुरु होते हैं।

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There is both good and bad in every person. Now it depends on the person, how he chooses to live his life. And whenever a dilemma arises in the mind to choose the correct path, there is the guidance of the Guru.


हर व्यक्ति में अच्छाई और बुराई दोनों होती हैं। अब यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, कि उसे अपना जीवन कैसे व्यतीत करना है। और जब भी मन में निर्णय लेने में दुविधा उत्पन्न होती है, तब उसे दूर करने के लिए गुरु होते हैं।

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There is both good and bad in every person. Now it depends on the person, how he chooses to live his life. And whenever a dilemma arises in the mind to choose the correct path, there is the guidance of the Guru.


Let the refining and improving of our own life keep us so busy that we have no time left, to criticize others.


जहाँ डर होता है, वहाँ सच्ची श्रद्धा नहीं हो सकती क्यूँकि जहाँ सच्ची श्रद्धा होती है और उन पर पूरा विश्वास होता है, वहाँ डर की आवश्यकता नहीं।

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When there is fear, there cannot be true faith; as true faith and trust over Him, relinquishes any need of fear.


वे हमें केवल रास्ता दिखाते हैं। उस पर चलना या न चलना व्यक्ति पर निर्भर करता है। और यह फैसला ही जीवन की दिशा निर्धारित करता है।

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He just shows us the way. To follow it or not, depends on the person; A decision that determines the direction of one’s life.


The happiness of one’s life depends upon the quality of his (/her) thoughts.


जाके रहिं भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।


Spirituality is not just doing meditation…

It is a way of life.


One day, suddenly we were told that our old currency notes would no longer work. We have just fifty days to exchange them…

People panicked, and began to try and exchange their notes as soon as possible in any way…

Imagine that one day we will be told that we have to leave this world for another one and what ever we have, nothing will no longer work there…

What will work is just the balance of our virtues and sins. And we will not even get a second to exchange them. For a moment, just think what would happen that day…

Experience comes. but we don’t get taught directly by life everyday…

Let us learn and start amassing the virtues that will work for us even then.


Keep the faith… The reason why people give up so fast is because they tend to look at how far they still have to go, instead of how far they have come.


क्षमा कर देने से बीता समय ठीक नहीं होता, किंतु आने वाला समय अवश्य ठीक हो जाता है।

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Forgiveness may not to undo the past, but it empowers you to move into the future.


We can’t last forever… Yet, we contain the infinite.

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हम हमेशा के लिए नहीं रह सकते हैं… किंतु, हमारे भीतर अनंत का वास है।


Don’t wait for everything to fall into place to be at peace.
Find your peace and everything will fall into place


Onwards the journey on the spiritual path, it may sometimes feel lonely; but that is just because one keeps shedding the energies that are no longer required to move further


When you’re struggling to find an answer, try being quiet enough to listen to Him.


यह सदैव हमारे नियंत्रण में नहीं होता कि हमारे आसपास क्या हो रहा है। किंतु यह सदैव हमारे नियंत्रण में रह सकता है कि हमारे भीतर क्या हो रहा है

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we may not always be in control of what happens around us. But we can always be in control of what happens within us.


प्रशंसा या आलोचना से ख़ुद को प्रभावित न होने दें। किसी एक में भी फँसना हमें निर्बल बनाता है।

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Don’t let praise or criticism affect you. it’s a weakness to get caught in either one.


Promise yourself to be so strong that nothing can disturb your peace of mind


He hears and answers every one of our prayers…

Sometimes we just don’t wait till the end.


Everything that irritates us about others can lead us to an understanding of ourselves.‬


The more you understand and accept that you don’t have control over certain situations, the less angry you will be.


सफलता और असफलता जीवन की एक चालू प्रक्रिया में केवल क्षण भर हैं: किसी एक पर भी बहुत अधिक ध्यान देने में दिशा से भटकने का ख़तरा हो सकता है।

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Success and failure are only moments in one ongoing process of life: Focus on either one too long and you’re not seeing things as they are.


चिंता तब होती है जब आपके मन में विश्वास की तुलना में भय अधिक हो।

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Anxiety happens when there’s more fear than faith in your heart.


Life is like a finger, pointing to the Moon.

If you look at the Moon, you will bask in its magnificence.

If you look at the finger… you will miss all the heavenly glory.


हमारा अस्तित्व भले ही हमारे अतीत से जुड़ा है, किंतु हमें सदा के लिए अतीत में रहना आवश्यक नहीं है।

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We maybe products of our past, but we don’t have to be prisoners of it.


नकारात्मकता से स्वयं को दूर करते ही जीवन की दिशा बदलने लगती है।

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Distance yourself from negativity and great things will happen.


हम दूसरों के कार्यों को नियंत्रित नहीं कर सकते, किंतु हम अपनी प्रतिक्रिया को अवश्य नियंत्रित कर सकते हैं।

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We can’t control people’s actions. But we can surely control how we react to those actions.


अपने समय व अपने शब्दों को सावधानी से प्रयोग करें: दोनों को ही वापस नहीं लाया जा सकता।

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Be careful with your time and your words: There are no take-backs on either of them.


Your task is not to seek for His love and blessings. They are always there…

Your task is merely to seek and find all the barriers within yourself that you have built against it.


If HE is all you have… You have ALL you need.


दूसरों को तकलीफ दे कर अपने निजी स्वार्थ में आगे बढ़ने वाले व्यक्तियों को प्रायः पतन भी उत्थान की तरह ही प्रतीत होता है। जीवन में भूल सबसे होती है, किन्तु जो अपनी भूल से शिक्षा प्राप्त कर के उसे सुधार लेते हैं, वे जीवन में निरंतर आगे बढ़ने में समर्थ हो जाते हैं।

हमें सदैव यह स्मरण रखना चाहिए कि उद्देश्य, कर्म से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। और यही अंतर होता है, असफलता और सफलता में।

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We should always remember that the purpose is far more important than action. And this is the difference, between failure and success.


You were born perfect and pure: That’s your natural state, you can return to it any time.


Accept what is, let go of what was, have faith in what will be.


Apologizing means accepting responsibility, not expecting forgiveness.


Following a spiritual path in life does not remove us from the world But can actually lead us deeper into it.

People may believe that in order to get in touch with our spiritual self, we need to let go of our connection with the world and be reclusive. This very thought is a fallacy. Spirituality in fact is achieved by being able to live out our relationships with our people and most importantly with ourselves.

Spirituality leads to a better understanding of others and helps a person to be a better child, a better sibling, a better spouse and a better parent. It makes people more consciously aware of their surroundings so that they become more observant and involved in their happiness and the world around them.

Spirituality helps us understand that happiness comes from within. It is not dependent on external things or other people.

When we connect to the silence within us, that is when we can make sense of the disturbance going on around us.