एक दम्पति अपने बच्चे के दाखिले के लिये एक स्कूल में गये। जब वह प्रिंसीपल के ऑफिस में पहुंचे तो दीवार पर लगी गुरूजी की तस्वीर को देख कर प्रसन्न हो गए।
वह दम्पति गुरुजी के भक्त थे। महिला के पति ने प्रिंसीपल से पूछा कि आपको गुड़गाँव गुरुजी के स्थान पर जाते हुए कितना समय हो गया है…? प्रिंसीपल ने उत्तर दिया, “मैं तो वहाँ कभी गया ही नहीं और न ही उसे गुड़गाँव स्थान के बारे में कोई जानकारी ही है।”
आश्चर्य है……!! वह व्यक्ति बोला, “तो हमारे गुरुजी की यह तस्वीर आपकी इस दीवार पर कैसे…?”
प्रिंसीपल ने घूमकर ऊपर देखा और कहा, “यह तस्वीर…!! यह तस्वीर आपके गुरजी की है…? यह तो मुझे सड़क के किनारे पर पड़ी हुई मिली थी। एक दिन मैं पैदल जा रहा था कि अचानक मेरी नज़र इस पर पड़ी।
कुछ रद्दी के कागजों के साथ जब मैंने इसे देखा तो लगा कि कोई खास व्यक्ति हैं ये, जो मुझे इतना आकर्षित कर रहे हैं। अनायास ही मैंने उठा लिया यह सोचकर कि यह किसी बड़ी दिव्य-आत्मा की तस्वीर है जो गलती से किसी से गिर गई है। मैंने इसे फ्रेम बनवा कर अपने ऑफिस की दीवार पर लगा दिया। लेकिन उसके बाद मैंने अनुभव किया कि मेरा बिज़नेस बढ़ता जा रहा है। आज मेरा स्कूल तीन गुना बड़ा हो गया है। बच्चे बढ़ते ही जा रहे है। लगता तो था कि अवश्य ही यह तस्वीर कोई चमत्कारी है पर मुझे पता आज ही लगा कि गुरुजी हैं ये।”
“इससे अधिक मुझे और कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इन्हें प्रणाम करने के बाद ही मेरे दिन की शुरुआत होती है और मैं बहुत खुश हूँ।”
अतः गुरुजी की तस्वीर भी उतनी ही कल्याण-कारी है
जितने कि गुरुजी स्वयं ।।
………आफ़रीन