अस्सी के दशक की शुरुआत की बात है। गुड़गाँव स्थान पर असंख्य लोग थे और सम्पूर्ण वातावरण में सिर्फ एक ही आवाज सुनाई दे रही थी और वह थी ‘गुरुजी’। कारों के शीशों पर स्टिकर लगे थे– एक ही सत्य— ‘गुरुजी’ सम्पूर्ण वातावरण एक ही शब्द से गूंज रहा था ‘गुरुजी’ । स्थान के क्या बाहर और क्या अन्दर, इसी शब्द का भरपूर नशा-सा छाया हुआ था। स्थान हॉल में सेटी पर तीन शिष्य बैठे थे और उनके समक्ष लोग कॉरपेट पर बैठे उन्हें अपनी समस्यायें बता रहे थे। वे शिष्य लौंग, इलायची, जल आदि और जो कुछ चाहिए था, उन्हें दे रहे थे।
कुछ समय सेवा करने के उपरान्त, उन तीनों शिष्यों की जगह दूसरे तीन शिष्यों को सेवा दी जाती और इसी तरह उन शिष्यों की जगह भी कुछ समय की सेवा के बाद, अगले तीन शिष्य उनकी जगह ले लेते थे तथा उन शिष्यों को विश्राम दे दिया जाता। विश्राम का यह समय लगभग दो घण्टे का होता था।
ऐसे ही एक बड़े वीरवार के दिन, हम तीनों शिष्य जिनमें मैं तथा मेरे अलावा रवि त्रेहन भी थे, उठे और बाहर विश्राम के लिए चले गये तथा चाय का स्वादिष्ट प्रसाद लिया।
रवि को संगीत और कविताओं से बहुत लगाव है और मुझे भी गज़ल गायकी बहुत पसन्द है। तभी रवि ने मुझे, उसके लिये गजल गाने को कहा क्योंकि उस समय विश्राम का समय था। थोड़ी ना-नुकुर के बाद, मैं गजल सुनाने को राजी हो गया और मेन गेट के सामने वाली सीढ़ियों में आ गया। क्योंकि वह एक एकान्त सी जगह थी जहाँ अक्सर कोई आता जाता नहीं था। वहाँ मैंने रवि त्रेहन को एक गज़ल सुनाई—
अगले दिन सुबह जब मैं उठा तो मेरा गला बन्द था और मैं बोल नहीं पा रहा था। गुरुजी के पास पहुंचा और अपने बोलने की समस्या बतायी, “गुरूजी, मेरा गला बैठ गया है, * मुझसे बिलकुल बोला नहीं जाता।”
गुरुजी ने मुझे ताना मारने के (Taunting Way) अन्दाज़ में कहा, “हाँ, हाँ, जाओ, गाने गाओ, जबकि हज़ारों दुखी लोग लाईनों में खड़े हैं।”
मैंने विनय पूर्वक प्रार्थना की, “पर गुरुजी हम तो सेवा से निर्मुक्त (Free) हो चुके थे और रवि ने कहा कि एक गज़ल सुना दो फिर हम सीढ़ियों के पास उस जगह गये थे जहाँ कोई नहीं जाता।”
“….पर गुरुदेव, आपको कैसे पता चला, …..आप तो बाहर लोगों को आशीर्वाद दे रहे थे?”
गुरुजी ने कहा, “बेटा, अगर कोई दुखी इन्सान वहाँ आ जाता तो क्या सोचता कि हम जिस भगवान से माँगने आये हैं, वह तो बैठा गाने गा रहा है….!!
जरा विचार करो कि उसके दिल पर क्या गुज़रती…..?
क्या होता उसके विश्वास का…?
क्या यही डिजाईन बनाया है मैंने तुम्हारे रुप का…? ऐसा बनाया है मैंने तुम्हें… कि अब मैं देखू कि तुम कैसा गा सकते हो…? बड़ी शर्म आयी मुझे…. अपनी गलती का एहसास हो गया और क्षमा माँगने लगा।
…लेकिन गुरुजी चुप थे।
ये सब होने के बाद गाना तो दूर की बात है, मैं ठीक से बोल भी नहीं पा रहा था। मैं सिर्फ रुक-रुक कर कानाफूसी की तरह से ही बात कर पा रहा था और इसी तरह करीब तीन-चार महीने बीत गए.. और ऐसा ही चलता रहा।
फिर एक दिन गुरुजी ने मुझे और के. सी. कपूर तथा कई अन्य शिष्यों को अपने साथ कश्मीर चलने का आदेश दिया। रास्ते में के. सी. कपूर ने मुझसे कुछ पूछा और मैंने उसी तरह फुसफुसाते हुए जवाब दिया। इस पर वह चिढ़कर बोला कि तुम गुरूजी से अपनी आवाज़ ठीक क्यों नहीं कराते…? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था। मैंने अपनी आँखें बन्द की और मन ही मन अगली सीट पर बैठे, अपने “सुपर लार्ड महागुरू साहिब” से प्रार्थना करने लगा..!
आखिर हम कश्मीर पहुंच गये। गुरुजी हम सबको साथ लेकर, दूर दराज़ की घाटियों में से होते हुए श्रीनगर पहुंच गए। वहाँ हमने एक रात मोहिन्दर सिंह बतरा के घर पर गुजारी।
अगले दिन सुबह गुरुजी ने, कंपकपाती हुई ठण्ड में हमें ‘गुलमर्ग’ चलने का आदेश दिया। ‘गुलमर्ग’ पहुंचने में हमें कुछ घण्टों का समय लगा। यह एक बहुत खूबसूरत जगह है। पहाड़ और सड़क पर पूरी तरह से बर्फ बिछी हुई थी। वह दृश्य मन को बहुत मोहने वाला था।
मैंने सोचा कि गुरुजी बहुत खुःश होंगे क्योंकि वो कुदरती सौन्दर्य के शौकीन हैं। गुरुजी इधर-उधर देख रहे थे और बहुत खु:श लग रहे थे। इतने में अचानक मेरी तरफ मुड़े और मेरी आँखों में देख कर बोले,
“…राजे,!! …कर दूं तेरा गला ठीक!!”
मुझे इस अचानक होने वाली कृपा की बिल्कुल आशा नहीं थी ! मैं तुरन्त बोला, “…..हाँ, गुरुजी, कर दीजिये”
कह कर मैं उनकी तरफ देखने लगा…
गुरुजी पहाड़ की तरफ इशारा करके बोले,
“….तो फिर जा, मुट्ठी भर बर्फ खा ले।”
फिर क्या था… मैंने बर्फ उठाई और खा गया…
वाह – यह क्या हुआ..?
अविश्वस्नीय——- …मेरा गला उसी वक़्त ठीक हो गया। मैं बात कर सकता था। कमाल हो गया अगली सुबह जब मैं उठा, तो बिल्कुल ठीक था। गुरूजी ने क्या किया था…? सिर्फ उन्होंने कहा ही तो था, “राज्जे….! कर दूं तेरा गला ठीक …और फिर बर्फ खाने के लिए कहा” |
आश्चर्य…… ये ‘सुपर लार्ड’ तो बिल्कुल अलग तरह के डॉक्टर हैं। दूसरे डॉक्टर तो यदि किसी का गला खराब हो तो बर्फ से दूर रहने का परहेज़ बताते हैं। खास तौर पर उस व्यक्ति को जो पिछले चार महीनों से इस तरह की तकलीफ़ से गुजर रहा हो !! …..पर गुरुजी ??
तो मैं ही क्या, तुम या कोई दूसरा व्यक्ति भी गुरुजी महाराज द्वारा किये गये इस इलाज के प्रति टिप्पणी कर सकता है…..।।
तो बेहतर यही होगा, कि कोई टिप्पणी न ही करे …और गुरुजी के पवित्र चरणों में जायें ।
जैसा कि वेदों व धर्मग्रन्थों में लिखा है—-
‘मंत्र मूलं गुरु वाक्यं ।’ और उनके शब्दों का इन्तजार व मनन करें।
आपको शत्-शत् नमन….
…….हे गुरुदेव