गुरुजी ने कहा, “बेटा, मैंने ये भी तो देखना है ना कि मेरे गुरु के गले में हार मुझसे कम ना पड़ें।
…वाह, क्या रिश्ता है गुरूजी का अपने गुरु के साथ,
प्रेम और मौहब्बत की इन्तहा– जवाब नहीं।
वो शिवरात्रि का दिन था। सुबह की शुरुआत से लेकर रात्रि के 12 बजे तक लोगों की भीड़ उमड़ी चली आ रही थी। अपने हाथों में फूलों की दो-दो मालाएँ लिए, एक स्थान पर चढ़ाने और दूसरी गुरुजी के गले में डालने के लिए लम्बी-लम्बी कतारों में लोग खड़े थे। कोई-कोई सिर्फ एक ही माला लेकर आ रहा था, जिसे वह स्थान पर ना चढ़ाकर, गुरुजी को अर्पण कर रहा था। जहाँ तक मैं समझता हूँ कि विशेषकर फूलों की मालाओं और लोगों से सम्बन्धित इस तरफ किसी का ध्यान नहीं था।
दरवाजा, जो गलियारे की तरफ खुलता था के बीचोंबीच गुरुजी खड़े थे। लोग पहले कमरे में प्रवेश करते और स्थान पर माथा टेककर माला अर्पण करते थे। तदोपरान्त वे गुरुजी के पास आते प्रणाम करते और उनके गले में माला डालते थे। सुबह से ऐसा ही चल रहा था। मैं गुरुजी के पीछे खड़े होकर बाहर जाने के रास्ते के बारे में लोगों का मार्गदर्शन कर रहा था।
वास्तव में यह मेरी कल्पना से परे एक ऐसा दृश्य था, जिसे देखकर मुझे अन्दर से इतनी खु:शी की अनुभूति हो रही थी कि प्रत्येक दो/तीन सैंकिण्ड के बाद मेरे पूजनीय गुरुजी के गले में हार डाले जा रहे थे और वे लगातार लोगों के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे। बारह घण्टे बीतने के बाद भी, लगातार गुरुजी के चेहरे पर वही मुस्कुराहट थी जैसे कि शुरु में थी। गुरुजी के व्यवहार और मुस्कान में कोई परिवर्तन नहीं आया था।
लेकिन कुछ समय के बाद मैंने अनुभव किया कि गुरुजी कुछ लोगों को तो गले में माला डालने की अनुमति दे रहे हैं लेकिन कुछ लोगों को नहीं। वे उनकी मालाएं अपने हाथ में ही ले लेते हैं। मैंने फिर कुछ अन्तराल के बाद फिर दुबारा ऐसा ही अनुभव किया। मैं उन लोगों की भावनाओं के बारे में सोचने लगा जिन्हें गुरुजी ने गले में माला डालने की अनुमति नहीं दी थी।
जब मुझे ऐसा अनुभव कई बार हुआ तो मैंने साहस बटोर कर आखिर गुरुजी से पूछ ही लिया, “गुरूजी, आप कुछ लोगों को गले में माला डालने देते हो, पर कुछ को नहीं। जिनसे नहीं डलवाते, उनका दिल दुखता नहीं होगा…?
गुरुजी अपना मुँह स्थान की तरफ करके खड़े हुए थे। वे मेरी तरफ मुड़े और बहुत प्यार से स्थान की तरफ इशारा करते हुए बोले, “बेटा, मैंने अपने गुरु की तरफ भी तो देखना है ना, कि मेरे गले में ज़्यादा मालाएं ना पड़ जायें..”
…वाह, साहेब जी…..वाह!
आफरीन…! आफ़रीन…।।
ऐसे वातावरण में भी अपने गुरु का इतना ध्यान…!! इस समय जब लोगों का समुद्र उमड-उमड़ कर आप पर न्यौछावर हो रहा है, इस समय भी आपको अपने गुरु का इतना ध्यान है…! और पूरी गिनती भी है कि कितनी मालाएं स्थान पर पड़ी हैं और कितने आपके गले में।
कृप्या गुरुजी बतायें कि आप हैं कौन….?
हम पर अपनी कृपा बनाये रखना जी…… ||