जब गुरुजी पंजाबी बाग में थे तो नीलमा प्रतिदिन उनके बैड के साईड टेबल पर एक गिलास पानी रखा करती थी। यह कार्यक्रम गुरुजी के शरीर छोड़ने के उपरान्त भी जारी रहा और नीलमा उसी तरह रोज़ाना पानी का गिलास उसी जगह पर रखती चली आ रही थी।
गुरुजी को शरीर छोड़े करीब तीन महीने हो चुके थे। उनके बैड के पास एक रॉकिंग चेयर रखी रहती थी, जो आज भी वहीं पर मौजूद है।
कभी-कभी गुरुजी उस पर बैठा करते थे। नीलमा ने पानी का गिलास लिया और कुर्सी के पीछे से होती हुई गिलास उनके बैड साईड टेबल पर रख दिया। लेकिन वापसी पर कुर्सी के आगे से होकर जैसे ही निकली तो गुरूजी ने आवाज़ दी, “ते हुन, तूं मेरे अग्गों लंगेंगी…?– सुनकर उसे थोड़ी शर्म आई और सुनी अनसुनी करके जल्दी-जल्दी कमरे से
बाहर आ गयी। बाहर आते ही उसे अहसास हुआ कि अरे –गुरुजी तो कुर्सी पर बैठे थे…!!
वह एक दम मुड़ी और बड़े उत्साह के साथ कमरे में दुबारा दाखिल हुई। सोचा …कि यह तो कमाल हो गया, दर्शन होंगे। पर अफ़सोस— कुर्सी तो हिल रही थी परन्तु गुरुजी आँखों से नज़र नही आ रहे थे। पहली बार जब आयी तो वहाँ बैठे थे पर अब नहीं थे।
यह क्या है गुरुजी…..!! आप आज भी शरीर के साथ रहते है, लेकिन कुछ चुने हुए लोगों को ही दर्शन करने की अनुमति देते हैं।
नीलमा शायद उन भाग्यशाली बच्चों में से एक है।
मेरी और हम सबकी प्रार्थना है कि
…ऐसा सौभाग्य हमें भी प्राप्त हो साहेब जी!!