2 मार्च 2010, सैक्टर-7, गुड़गाँव…..
माताजी अपने कमरे में बैठी हुई थी। मैं उनके दर्शन पाकर धन्य हो रहा था। उनकी उपस्थिति मात्र से मैं परम आनन्दित हो रहा था। तभी उन्होंने मुझे चाय का प्रसाद दिया और कहने लगी… “राज्जे, किसी ने एक लड़के को भेजा था और वो कहने लगा कि उसे यहाँ रहने के लिए भेजा है। मैंने कह दिया, कोई बात नहीं, रह जाओ।”
माताजी ने आगे कहा, “इतने में तू आ गया और उसको गुस्से से डॉटने लगा और कहा, भाग जा यहाँ से, और वो भाग गया।” थोड़ी देर के बाद ऊपर से गुरुजी आये और कहने लगे, “राज्जे ने काम कर दिया।”
यह कोई खास सन्देश था, ऐसा मेरा अनुमान है और मैं बड़ी उत्सुकता से इसका सारांश पाने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
मैं अपने सुपर मास्टर ‘गुरुजी’ से बड़ी बेसब्री से यह जानने की प्रतीक्षा भी कर रहा हूँ कि वे मुझे बताएं कि वह लड़का कौन था और उसे किसने भेजा था और दूसरी बात यह कि जब माताजी ने वहाँ रहने की अनुमति दे दी थी, तो मैंने उसे क्यों डॉटा और इस तरह उसे स्थान से क्यों भगा दिया। जबकि माताजी का निर्णय हम सब शिष्यो के निर्णय से ऊपर है।
पर पूरी बात समझ नहीं आ रही, कोई तो भेद है।
निश्चित रुप से इस उत्तर की अपेक्षा मैं सिर्फ गुरुजी से ही कर सकता हूँ।