1977 की बात है, जब मैंने परम पूज्य गुरुजी का पहला ‘दर्शन’ किया था। मैं कॉलेज के सेकेंड ईयर में थी और गुरुजी कैलाश कॉलोनी आए थे। मैं, मेरा छोटा भाई और मेरे माता-पिता उनके दर्शन के लिए गए थे। मेरे पिता एक कैंसर रोगी थे और उन्हें नियमित जांच करानी पड़ती थी और स्वाभाविक रूप से, पूरा परिवार तनाव में था। मैं सिर्फ 17 साल की थी और मेरा भाई मुझसे 8 साल छोटा था। मेरे पिता को मुंबई में टाटा मेमोरियल जाना था और इसलिए मेरे माता-पिता दोनों बहुत चिंतित थे क्योंकि उन्हें हम सभी को अकेले छोड़ना होगा, क्यूंकी वे मेरे पिता के चेक-अप और इलाज के लिए लगभग बीस दिनों के लिए दूर थे। यह हर तीन महीने में किया जाना था। परम पूज्य गुरुजी ने मेरी माँ को आश्वासन दिया, हमारे सिर पर अपनी हथेली रखकर और पंजाबी में कहा “कोई गल नहीं पुतर, ऐ मेरे बच्चे ने।” और फिर हिंदी में “मैं इनके साथ हमेंशा रहूंगा….तू जा, मैं तेरे नाल भी हमेशा रवंगा“…… हमारा सौभाग्य था की हमने उन्हें देखा और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, उनके चरणों के पास बैठें और उन्होंने हमसे कहा “तुम लोग जब सड़क पर चल रहे होते हैं, मैं तुम लोगों के दो तरफ रहता हूं। तुम मेरे मुठी में हो… .कोई तुम्हारा कभी भी कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता ….किसने हिम्मत भी करी तो मुझ से गुजर के जाना पडेगा…” 1980 में मेरे पिताजी की मृत्यु के बाद, हमें बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी कृपा और आशीर्वाद से, हमने उनमें से हर एक को बड़ी आसानी से पार कर लिया है। वह हमारे साथ है और हमेशा हमारे साथ रहेंगे, मुझे पता है। आज मैं 52 साल की हूं…लेकिन अब तक, जब भी कोई समस्या हुई है या मुझे कठिनाई का सामना करना पड़ा है, तो मैं उनको सिर्फ एक बार आंखें बंद करके पुकारती हूं, और मुझे लगता है कि वह मेरे पास खड़े है ….. जब भी मुझे कोई संदेह होता है, मैं उनसे पूछती हूँ और वे उत्तर देते है। बस आज ही, मैं बहुत कम उत्साहित महसूस कर रही थी, मैंने नील कंठ धाम की सर्च की, इस साइट पर आई और यह देखकर अभिभूत हो गया कि मैं अपना अनुभव पोस्ट कर सकती हूं! मेरे पास केवल कुछ अनुभव नहीं हैं, बल्कि कई हैं! कौन सा शेयर करूं और कौन नहीं, मैं सिर्फ 17 साल की थी जब मैंने पहली बार गुरुजी के ‘दर्शन’ किए थे और वह आज तक हमारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे। जय गुरुजी।
(*गुरुजी द्वारा बोले गए शब्द बोल्ड+इटैलिक्स में हैं)