अविश्वस्नीय झलकियाँ – भाग-1, आकांक्षी गुरुभक्तों के लिए, आध्यात्म और गुरुभक्ति का एक सम्पूर्ण भोजन है। गुरूजी की असीम कृपा और समय-समय पर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन से, गुरू ज्ञान के इच्छुक भक्तों के लिए, यह पुस्तक लिखी तथा वितरित की गई।
लेकिन यह काफी नहीं थी शायद…। पुस्तक भाग-1 लिखने के बाद, मुझे ऐसी कई अन्य झलकियाँ स्मरण हो आईं, जिन्हें और आगे लिखने का आदेश मिला। अत: उन्हें मैं एक अगली पुस्तक भाग-2 के नाम से प्रस्तुत कर रहा हूँ। मेरी यह नम्र प्रस्तुति, आपके समक्ष है।
मैं चाहता हूँ कि पाठकों और भक्तों पर गुरुजी अपनी कृपा बनाये रखें।
इस समय मैं यह नहीं कह सकता कि इन झलकियों की श्रृंखला यहीं समाप्त हो जायेगी या फिर कुछ और अविश्वस्नीय झलकियाँ मुझे दुबारा प्रलोभन देंगी और मैं अपने गुरुजी के साथ बिताये गये, उन अनमोल पलों का अनुभव आपके साथ, आगे भी बाँट सकूँ। मैं नहीं जानता कि भाग-2 के उपरान्त क्या होगा..? क्योंकि यहाँ मुझे एक बड़े विश्व-विख्यात फ़कीर द्वारा कही गई निम्न पंक्तियाँ याद आ रही हैं —-
धरती को कागज़ करूं, कलम करूं बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाय।।
अर्थातः यदि मैं पूरी धरती को कागज़ बना लूं, और सभी पेड़ों को कलम तथा सातों समुद्रों की स्याही (Ink) बना लूं, तो भी गुरू के सम्पूर्ण गुणों का गुणगान लिखना संभव नहीं है।
करीब 30 वर्षों से ज़्यादा, गुरुजी के पवित्र चरणों में रहते हुए, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसे मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था, उसके बाद मुझे ऐसा लगता है कि यह मेरा धर्म है कि आने वाले नये लोगों को, मैं गुरूजी के उस सांसारिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान से लाभांवित कराऊं।
आदि से अन्त तक मेरी यात्रा, एक बच्चे की भाँति, उनकी गोद में चल रही है। आज जब वो मुझसे झलकियाँ लिखवाते हैं तो मेरा हाथ पकड़कर, मेरी उंगलियों को कम्पूयटर के की-पैड के एक-एक अक्षर पर चलाते हैं।
हाँ, मैं उन्हें अपने अन्दर महसूस करता हूँ—-
वो मेरे हैं, हमेशा-हमेशा……।।
कोई भी झलकी, जो एक चमत्कार सी लगती है, वास्तव में चमत्कार है नहीं…। क्योंकि चमत्कार वो होता है जिसे कुछ लोग, अन्य लोगों की आँखों को भाने के लिए करते हैं। परन्तु उससे किसी को बीमारियों अथवा दुखों से मुक्ति नहीं मिलती। जबकि गुरुजी जो भी करते हैं, उससे लोगों के दुख व रोग मिट जाते हैं और वो भी बिना किसी दवाई के। साथ ही लोगों में ईश्वर के प्रति, विश्वास उत्पन्न होता है, जिस विश्वास को भूलकर वे, डॉक्टर व दवाईयों में व्यक्त कर चुके थे।
उन्होंने अनगिनत चमत्कार किये और उनमें से जो-जो उन्होंने चाहा, मैंने भाग-1 में लिख दिये। कुछ और जो अब याद आ रहे हैं, उन्हें भी लिख रहा हूँ अपनी अगली पुस्तक भाग-2 में और शायद भविष्य में भी लिखता रहूँगा, अगर उन्होंने चाहा और मुझे, लिखने की सामर्थ्य दी।
‘राज्जे’ – गुरुशिष्य
(राजपॉल सेखरी)
18 अगस्त, 2010
भाग-2 का आनन्द लीजिए……