गुरूजी ने फैसला किया कि वे अपना घर बनायेंगे ताकि वहाँ सेवा कार्य में कोई विघ्न न डाल सके। जैसा कि बड़े वीरवार के दिन, शिवपुरी के किराये के मकान की छत पर इन्तज़ार करते हुए भक्तों को लेकर मकान मालिक ने ऐतराज़ किया था।
गुरुजी ने एक रिहायशी प्लॉट के लिए प्रार्थना-पत्र (Application) दिया और उन्हें स्वीकृति-पत्र मिल गया। उन्होंने आर. पी. शर्मा, सूरज शर्मा और एस. के. जैन साहब को, वह स्वीकृति पत्र देकर, रोहतक स्थित हुडा ऑफिस भेजा। साथ ही आदेश भी दिया कि प्लॉट का नम्बर 9 या उसके अंकों का योग 9 होना चाहिए।
जब ऑफिसर ने प्लॉट का नम्बर अलॉट करने के उपरान्त, उन्हें स्वीकृति पत्र लौटाया तो उस पर प्लॉट का नम्बर 9 नहीं बनता था। अतः शर्मा जी ने उससे नम्बर बदलने के लिए प्रार्थना की। परन्तु वह बोला कि अब तो सभी नम्बर अलॉट कर दिये गये हैं अतः वह ऐसा करने में असमर्थ है।
एक बार पुनः प्रार्थना करने पर वह ऑफिसर बोला, यदि आपसे कोई अपना प्लॉट नम्बर बदलना चाहे तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी।
शर्माजी तथा अन्य लोग इधर-उधर देखने लगे। कुछ समय इंतज़ार के बाद उस ऑफिसर के पास एक सज्जन आये और उससे, अपना प्लॉट नम्बर बदलने की प्रार्थना करने लगे।
उस ऑफिसर ने सामने खड़े शर्माजी की तरफ इशारा करते हुए कहा, यदि उन्हें कोई ऐतराज़ न हो तो वह ऐसा कर सकता है।
उसने शर्माजी से प्रार्थना की और शर्माजी तुरन्त राजी हो गये, क्योंकि उसके प्लॉट का नम्बर 702 था जैसा कि गुरुजी ने आदेश दिया था। प्लाट के नम्बर के अंकों का योग (7+2) =9 बनता था। अतः यह काम बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के हो गया।
यह एक समझने की ही बात है, कि गुड़गाँव में बैठे हुए भी, उनकी कृपा और आशीर्वाद से, 9 नम्बर प्लॉट का इन्तजाम हो गया।
यहाँ यह साबित होता है कि गुरुजी गुड़गाँव बैठे-बैठे ही, किसी दूसरे अलॉटी के दिमाग पर नियन्त्रण कर सकते हैं ताकि वह जाकर उस ऑफिसर को अपने प्लॉट का नम्बर बदलने के लिये कहे, जिसके प्लॉट का नम्बर 702 है।
देखने में यह एक साधारण सी बात है। लगता है कि यह काम वैसे ही हो गया। लेकिन मेरे लिये यह महत्वपूर्ण बात है कि गुरूजी ने सभी परिस्थितियों को अपने काबू में करके अपनी पसन्द का नम्बर ले लिया और वो भी बिना हुडा के आफिस में गये हुए।
जैसा गुरुजी चाहते थे, वैसा हो गया।
…..साहेब जी, आप महान हैं।