“पुट तेरे दो बचेया दी जान आज बचाए है…”
गुरुजी की लीला अप्रंपर है। मेरा ये पर्सनल विचार है की इसे शब्दों में बंध नहीं जा सकता। पर ये एक छोटा सा प्रयास है।
बहुत पहले की बात है 1987 में, मेरी शादी के बाद मैं फिर से अपनी पढ़ाई कर रही थी और इसके लिए मुझे कुछ नोट्स लेने के लिए अपने सहकर्मी के यहाँ जाना पड़ा। मैंने अपने पति को मेरे साथ आने के लिए कहा, लेकिन वह पंजाबी बाग में गुरुजी के स्थान पर जाने के लिए बहुत इच्छुक थे। मैं अकेला गयी और मेरे पति मेरे छोटे बेटे को ले गए और स्थान के लिए दौड़ पड़े। जैसे ही वह पंजाबी बाग पहुंचे एक रेड लाइट पार करते हुए एक बस ने, उनके स्कूटर को टक्कर मार दी। मेरे पति और बेटा नीचे गिर गए। उन दोनों को कुछ चोटें आई हैं। जब वे स्थान पहुँचे तो पापाजी वहाँ थे। मेरे पति ने अपना और मेरे बेटे का हाथ पापाजी को दिखाया।
पापा जी खिलखिला कर हसने लगे, और बोले “चल मेरी कार का शीश टूट गया है ठीक करवा के दे। 10,000 रुपए का है”। यह सुनकर मेरे पति को बड़ा आश्चर्य हुआ।
फिर पापाजी ने बताया की बेटा आज तू तो बच गया… गुरु महाराज ने तेरे दुर्घटना को टाल दिया और उसका आधा हिस्सा मुझे दे दिया और मेरी कार का शीशा भी आज दोपहर में एक छोटे से दुर्घटना में टूट गया, पापा जी ने आगे बताया की जब मेरी कार का शीशा टूटा, मैंने गुरुजी से पूछा की गुरुजी ये क्या हो गया, गुरुजी ने बताया पुत्त आज दो बच्चया दी जिंदगी बचाई है’। बेटा वो दो बच्चे तुम ही हो। ऐसे हैं गुरु महाराज जो अपने बच्चो पर आंच नहीं आने देते बस दिल मैं विश्वास जगने की बात है।
(गुरुजी हमेशा बचाते हैं। वह हमारे उद्धारकर्ता हैं, यह सिर्फ हमारे में एक शुद्ध विश्वास रखने का सवाल है दिल।)
जय गुरु देव