गुरुजी ने मुझसे पूछा, “…..राज्जे, दो और दो कितने होते हैं?” मैंने उत्तर दिया, “गुरुजी, चार।” गुरूजी बोले, “……नहीं बेटा, पाँच होते हैं।” मैंने सहमति से हाँ कहा और बोला, “जी गुरूजी, पाँच होते हैं।
सुनकर गुरुजी बोले “बेटा, दिल से नहीं कहा।” मुझे लगा जैसे मैं पकड़ा गया और शर्माते हुए बोला, “गुरुजी, दो और दो चार होते हैं, यह मेरे दिमाग में बचपन से ही डाल दिया गया था।” गुरुजी ने पूछा, “तुमसे किसने कहा कि दो और दो चार होते हैं?” ….मैंने जवाब दिया, “शायद किसी गुरु (अध्यापक) ने कहा था।”
उन्होंने मुझसे उस अध्यापक का नाम पूछा, जो मुझे याद नहीं था। अतः मैंने कहा, गुरुजी, याद नहीं मुझे।”
गुरुजी ने मुझे उसकी शक्ल याद करने के लिए कहा। तो मैंने कहा, …मुझे याद नहीं आ रहा।
इस पर गुरुजी बोले,
“जिसकी शक्ल और नाम तक भी याद नहीं है तुझे, उसकी बात को तू दिल से मानता है और मैं तेरा गुरू, जो साक्षात तेरे सामने हूँ उसकी बात मानने को तेरा दिल तैयार नहीं..?”
तथ्यः समझ में आने पर मुझे एहसास हुआ और दिल से स्वीकारते हुए मैंने कहा, “गुरुजी दो और दो उतने होते हैं जितने आपने कहा है, पाँच ही होते हैं। किसी भी कीमत पर चार नहीं हो सकते।”
मैंने आगे कहा, “गुरुजी, जो आपने कहा है वह पूर्णतयाः सत्य है, इसमें तनिक मात्र भी संदेह नहीं है तथा हाथ जोड़कर उनके पवित्र चरणों का स्पर्श करते हुए अपनी अज्ञानता के लिये क्षमा माँगी।
गुरूजी ने मेरा और अधिक ध्यान रखना शुरु कर दिया। वे मेरे विचारों, मेरे कार्यो तथा चिन्ताओं का बहुत ध्यान से नियन्त्रण रखने लगे। उन्होने मुझे आध्यात्मिक ज्ञान पर किसी भी लेखक द्वारा लिखी गई पुस्तक न पढ़ने का आदेश दिया और कहा कि मैं सिर्फ उनकी ही कही गयी बात सुनू और विश्वास करुं। बहुत बड़ी बात थी ये, कोई आम नहीं। संसार में हर सन्त महात्मा अपनी विचारधारा के अनुसार लोगो में ज्ञान बाँटता है लेकिन ये एक दूसरे से भिन्न हो सकते हैं। आध्यात्म की राह पर भिन्नता मुश्किल में डाल सकती है। यह मानूं या वह मानूं के असमन्जस में रास्ता भटकने का डर होता है। इसी कारण गुरुजी ने मुझे किसी भी पुस्तक को पढ़ने के लिए मनाह कर दिया था। गुरुजी के आदेश के उपरान्त कोई भी पुस्तक मेरी अलमारी में नहीं रही। किसी भी तरह की कोई जानकारी यदि मुझे चाहिए होती, तो वह गुरुजी के पास उपलब्ध होती। मेरा चुनाव गुरुजी ने कर लिया था और मैं सिर्फ उन्हीं की ही छत्रछाया में रहा और आज तक हूँ। गुरुजी संसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्रों में, उन सभी बड़ों से बहुत बड़े हैं।
वे हर ज्ञान के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं।
मैंने कई बड़े-बड़े सन्तों को, गुरुजी के पास आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिये आते हुए और उन्हें, पूर्ण-रुपेण सन्तुष्ट होकर वापिस जाते हुए देखा है। मैं हमेशा इस बात से विस्मित हो जाता था कि कैसे गुरुजी के पास हर उस बात का पूर्ण समाधान होता था, जिसके विषय में सामने वाला पूछना चाहता था।
गुरूजी के कार्यों की तुलना, किसी के साथ भी करना असम्भव है।