एक बार गुरुजी बहुत से बच्चों, जिनमें इन्द्रा, जो उन्हीं के परिवार की सदस्या है तथा अन्य शिष्यों को लेकर कुल्लू जा रहे थे। सभी लोग करीब सात या आठ कारों में सवार थे। गुरुजी स्वयं सबसे आगे वाली कार में थे। उस दिन सोमवार का दिन था और सभी का उपवास था।
कारों का काफिला एक नदी के किनारे से गुजर रहा था। रास्ते में एक छोटी सी छोले-कुल्चे (पंजाब का एक प्रकार का व्यन्जन) की दुकान आई। इस तरह के व्यन्जन अक्सर बड़े शहरों में देखने को कम मिलते हैं। यह केवल पंजाब के छोटे शहरों में ही होते है। इतने में किसी बच्चे के मन में खाने की इच्छा उत्पन्न हुई।
परन्तु उस दिन तो सोमवार का उपवास था। उसने सोचा और आपस में बात करने लगे कि कितना मज़ा आये अगर गुरुजी ये कभी-कभी मिलने वाले कुल्चे-छोले खाने की अनुमति दे दें।
तभी एक चमत्कार हुआ— एक मिनट में गुरूजी ने अपनी गाड़ी रोकी और उनके पीछे-पीछे सभी कारें रुक गईं। गुरुजी अपनी कार से उतरे और पैदल चलकर, पीछे उस कार तक आये जिसमें इन्द्रा बैठी हुई थी और सबको नीचे उतरने के लिये कहा तथा आदेश दिया कि— “…..जाओ और छोले-कुल्चे खा लो।”
उनमें से एक ने भोलेपन में गुरुजी से कहा– “गुरुजी आज तो सोमवार का उपवास है—–!!”
गुरुजी बोले— “उपवास तुम किसके लिए रखते हो..?”
सभी एक साथ बोले— “आपके लिए गुरुजी” गुरुजी ने कहा,— “वही गुरू स्वयं, तुम्हें खाने की इजाजत दे रहा है।”
सभी लोग महागुरुजी द्वारा दी गई उनकी इच्छा पूर्ति की आज्ञा पाकर बहुत आनन्दित हुए।
परन्तु आश्चर्य की बात तो यह है कि गुरूजी स्वयं पहली कार में थे और पीछे की किसी कार में किसी बच्चे के मन में क्या आया और उन बच्चों ने आपस में क्या बात की, सुन रहे थे और उनके मन की बात जान गये।
यह एक साधारण व्यक्ति की पहुँच की सीमा की बात नहीं थी। उन्होंने कैसे यह सब जान लिया..?
….आखिर कैसे जाने कि गुरुजी …हैं ……कौन ?
…ओ घट-घट वासी , ..ओ ज्ञानियों के ज्ञानी …..
आपको प्रणाम है।