सतनाम सिंह उर्फ मंगा की दिल्ली में एक वर्कशाप थी। वह अपनी खराद मशीन पर भारी-भारी मशीनों के पुर्जे बनाने का काम किया करता था।
एक बार जब वह अपनी मशीन चला रहा था और उसकी मशीन पर बन्धा हुआ एक बड़ा सा पुर्जा, किसी वजह से अचानक खुल गया और उसके माथे पर आ लगा। उसके सिर पर गहरी चोट लगी और वह बेहोश होकर गिर गया। लोग उसे उठाकर अस्पताल ले गये जहाँ पर उसके लिये डॉक्टरों ने अपने आपको असहाय बताया। जब उसकी पत्नी और माँ को सूचना मिली तो वह स्थान की तरफ दौड़ी। मैं उनसे मिला और उन्हें आश्वासन दिया। लेकिन उन्हें जो डॉक्टर ने बताया था, वह बहुत गम्भीर था। इसलिए उन दोनों महिलाओं को समझाना, मुझे बहुत मुश्किल प्रतीत हो रहा था। किसी तरह मैं उसकी माँ को जल लेकर अस्पताल भेजने में तो सफल हो गया परन्तु मंगे की पत्नी जिद्द करके स्थान पर ही बैठ गई और कहने लगी, “मैं तब तक यहाँ से नहीं हिलुंगी, जब तक आप मुझे ये नहीं कह दोगे कि जाओ अब तुम्हारा पति सुरक्षित है और वह जीयेगा।”
मुझे उसके पति की हालत, आपे से बाहर लग रही थी। खराद मशीन से उड़ कर आये उस हिस्से के साईज और वज़न को देखते हुए, मैं भी उस चोट का अन्दाज़ा लगा सकता था। अतः मैंने गुरुजी से सम्पर्क किया और उनसे कृपा की प्रार्थना की। गुरुजी बोले, “राज्जे, ‘हाँ’ कर दे…., बाकी मैं देख लूंगा।” जब मैंने उसे ‘हाँ’ कहा तो वह सन्तुष्ट होकर एक पूरी उम्मीद के साथ अस्पताल चली गई।
….और चमत्कार हो गया। एक असम्भव कार्य के लिए गुरुजी की ‘हाँ’ काम कर गई। डॉक्टर भी आश्चर्य चकित हो गये और बोले, “मरीज़ अब खतरे से बाहर है। वह हमारे इलाज से अधिक किसी चमत्कारिक शक्ति से ठीक हो रहा है।” वे आगे बोले, “कुछ घन्टे पहले हम ना-उम्मीद हो चुके थे। मरीज़ पर जरुर किसी अतिरिक्त शक्ति ने प्रयोग किया है जो हमारी समझ से बाहर है।”
लेकिन वहाँ पर तीन लोग ऐसे थे जो समझ सकते थे और वे थे, मंगे की माँ, मंगे की पत्नी और मैं।
यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था। गुरुजी के वे शब्द, “राज्जे ‘हाँ’ कह दे…., बाकी मैं देख लूंगा….” मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहे थे और मैं आत्म-विभोर था। अपने ‘सुपर मास्टर’ की भक्ति और प्रेम में अपनी सुध-बुध खो बैठा…. ||
बार बार प्रणाम है गुरुदेव…/
कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद मंगा अपने घर लौट आया। अब वह ह्यूस्टन, अमेरिका में है और वहाँ अपनी पत्नी, चार बच्चों और अपने दो पोता पोती के साथ अपनी शान्ति भरी जिन्दगी जी रहा है। उसने वहाँ पर एक कमरे में, गुरुजी का स्थान बनाया हुआ है। वहाँ लोग हर महीने बड़े वीरवार के दिन आते हैं, स्थान पर माथा टेक कर अपनी समस्याऐं रखते हैं और सन्तुष्ट होकर जाते हैं। वह उन्हें वहाँ लंगर खिलाता है और जल, लौंग व इलायची वितरित करता है।
जब मैं अमेरिका गया तो ह्यूस्टन भी गया था। मैं उसके घर पर कुछ दिनों तक रुका और गुरुजी के आदेशानुसार, मैंने वहाँ जल बनाया और अधिक मात्रा में लौंग, इलायची व काली मिर्च भी अभिमंत्रित कर उसे दी, जिन्हें वह श्रद्धा व विश्वास के साथ वहाँ आने वाले भक्तों में वितरित करता है।
साष्टांग प्रणाम है……
हे गुरुदेव….।।