गुरुजी मुझे तथा कुछ अन्य शिष्यों को, कुछ दिनों के लिये बैंगलौर ले गये। कुछ दिन बाद किसी शिष्य ने गुरुजी से मैसूर के चामुण्डा मंदिर के दर्शन करने की प्रार्थना की और गुरुजी ने भी तुरन्त अपनी स्वीकृति दे दी।
एक दिन हम सब कार से मैसूर पहुंचे। वहाँ पहुँचकर हमने एक गाईड बोला कि उस मंदिर के खुलने तथा बन्द होने का एक निश्चित समय है। वह आगे बोला कि मंदिर बन्द होने में केवल पाँच मिनट का समय ही शेष बचा है जबकि अभी यहाँ से वहाँ तक जाने का रास्ता करीब आधे घण्टे का है। इसलिये आज दर्शन करने की कोशिश करना बेकार है अतः अच्छा होगा कि आप लोग कल आयें। गुरुजी ने हमें आदेश दिया कि उस गाईड की बातों पर ध्यान मत दो और गाड़ी चलाओ और हमने ऐसा ही किया।
रास्ते में चलते हुए हम एक और जगह रुके और किसी राहगीर से, उचित रास्ते के मार्गदर्शन के लिये पूछा। लेकिन उसने भी हमें वैसा ही बताया जैसा कि पहले गाईड ने बताया था कि समय समाप्त हो चुका है और दर्शन होने की कोई सम्भावना नहीं है। क्योंकि पुजारियों ने मंदिर के द्वार बन्द कर दिये होंगे।
यह सुनकर गुरुजी बोले :
“मंदिर बन्द कैसे हो सकता है जब मेरे शिष्य, माँ चामुण्डा के दर्शन के लिये जा रहे है…?”
चलो गाड़ी आगे बढ़ाओ…
हम चुपचाप मंदिर की ओर गाड़ी चलाते रहे और आखिर मंदिर की पार्किंग में पहुंच गये।
गुरूजी स्वयं गाड़ी में बैठे रहे और हम सबको आदेश दिया कि जाओ और श्रद्धा पूर्वक दर्शन करके आओ।
हम जैसे ही अन्दर पहुंचे तो देखा, कि कुछ भक्त वहाँ पहले से ही मौजूद थे और पुजारी उन्हें शास्त्रों के अनुसार पूजा-अर्चना करवाने में व्यस्त था। वहाँ पूर्णतयाः शान्ति का वातावरण था। उस पुजारी को भी कोई जल्दी नहीं लग रही थी। हम सब ने बड़े आराम से पूजा तथा प्रार्थना की और माँ चामुण्डा के दर्शन करके वापिस गुरुजी के पास कार में आ गये। गुरुजी ने हम सबको देखा और मुस्कुरा कर आशीर्वाद दिया। निहाल हो गये हम सब।।
एक दूसरा व्यक्ति, जो कि पार्किंग में पहले से ही खड़ा था, बड़ा उत्साहित होकर हमारे पास आया और बोला, “पिछले बीस सालों में मैंने आज पहली बार देखा है कि मंदिर दोपहर दो बजे के बाद भी खुला हुआ है।” ऐसा लगता है कि परम श्रेष्ठा माँ चामुण्डा आज स्वयं, आप लोगों का इन्तजार कर रही थी।
आश्चर्य…
क्या यह मुमकिन है?
गुरुजी ने मंदिर में पहुंचने से पहले, कार में कहा था। उनके शब्द थे कि “मंदिर बन्द कैसे हो सकता है जब कि मेरे शिष्य माँ चामुण्डा के दर्शन के लिये आ रहे हैं।” मतलब, गुरुजी और माँ ने सबको पहले से ही बता दिया था और वहाँ पर स्वयं माँ, हम सब को आशीर्वाद देने के लिए हमारा इन्तजार कर रही थी……!!
मैं इस विषय पर और विस्तार से तो नहीं कह सकता, जहाँ कार में बैठे हुए गुरु जी और माँ आपस में वार्तालाप करते रहे होंगे। किन्तु कार में हम तो एक साधारण व्यक्ति की तरह से ही बातें कर रहे थे परन्तु गुरुजी उस समय भी माँ के साथ हमारे कार्यक्रम के बारे में बातचीत में व्यस्त थे। जिसे उनके साथ बैठे हुए हममें से किसी भी शिष्य ने महसूस नहीं किया। …..लेकिन ऐसा हुआ अवश्य था।
आप के समक्ष या साथ होने पर मेरी बुद्धि शून्य हो जाती है। अपनी बुद्धि के अनुसार मैने जो समझा, लिख दिया।
मैं यहाँ कहना चाहूंगा कि …हे महागुरुदेव, आप जहाँ खड़े हो जाते हैं वहाँ आपसे पहले और आपके पीछे, सभी आपके आधीन हो जाते हैं। आपके समक्ष हम सब नत्-मस्तक हैं।
गुरुजी, मेरी आपसे प्रार्थना है कि जो जिज्ञासु हैं और गुरुभक्ति के प्रति जिनकी रुचि हैं, आप उन्हें इतनी ज्ञान दें ताकि उन्हें आपकी असीम कृपा से वह प्राप्त हो सके।
हे…देव-आदि-देव..!