गुड़गाँव स्थान पर मैं सेवा कर रहा था। वहाँ पर बहुत से लोग थे। सबसे अन्त में एक महिला अपनी एक विचित्र सी समस्या लेकर, मेरे पास आई और कहने लगी कि वह अपनी टाँगों के जोड़ों के दर्द से पिछले दस साल से परेशान है। हमेशा, जब वह स्थान पर आती है तो उसकी दर्द गायब हो जाती है और फिर जैसे ही घर जाने के लिए सड़क पार करती है तो दर्द दुबारा वापिस आ जाती है। वह बोली, यह गुरुजी जानते हैं।
मुझे ठीक से यह समझ नहीं आया और मैंने उससे कहा कि इसके बारे में मुझे विस्तार से बताए। उसने बताना शुरु किया, “कुछ वर्षों पहले मैं ईरान में थी। इंडिया आने पर गुरुजी के दर्शन करने के लिये मैं स्थान पर आई। गुरूजी को प्रणाम करने के बाद मैंने पूजनीय गुरुजी को एक बादामगिरि का डिब्बा भेंट किया। उन्होंने वह अपने माथे से लगाया और मुझसे कहा कि वह लाईन में खड़े हुए लोगों में बाँट दे।” उसने आगे बताया कि उसने गुरुजी से कहा, “गुरुजी यह तो मैं बच्चों के लिये लाई हूँ।” गुरुजी बोले, “हाँ बेटा, जाओ और बाहर जो मेरे बच्चे लाईन में मुझे मिलने का इन्तजार कर रहे हैं, उनमें बाँट दो।” मैं गुरुजी से दुबारा बोली, “नहीं गुरुजी, यह तो मैं रेनू, बब्बा आदि के लिये लेकर आई हूँ।”
गुरूजी को मेरा यह व्यवहार पंसद नहीं आया और वह बोले, “रेनू व बबे को यदि बादामगिरि की जरुरत होगी तो मैं उन्हें स्वयं बाज़ार से खरीद कर ला दूंगा। तुम जाओ और यह प्रसाद बाहर बाँट दो।”
मैंने गुरुजी से दुबारा रेनू व बब्बे को देने के लिये जिद्द की। अब गुरुजी का रुप बदल गया। वे कहने लगे, “तुम यहाँ से कुछ लेने आई हो या देने…? तुम्हारे व्यवहार से तो ऐसा लग रहा है कि जैसे तुम मुझे कुछ देने आई हो।” वह आगे बोले, “तुम अपने गुरु को संसारिक वस्तुओं का प्रलोभन देने की कोशिश कर रही हो।” फिर उन्होंने क्रोध में आकर कहा, “अब तुम यहाँ से जाओ और जब तक तुम स्थान से दूर रहोगी, तुम्हारी टाँगों के जोड़ों में दर्द रहेगा।”
इसी वजह से इतने वर्षों से मैं इस दर्द से परेशान हूँ। लेकिन जैसे ही मैं स्थान के अन्दर आती हूँ, मेरा दर्द गायब हो जाता है।
तब मुझे उसकी बीमारी का कारण समझ में आया और मैंने महसूस किया कि कितना भाग्यशाली हूँ मैं, जिसके ऐसे शक्तिशाली गुरुजी हैं और मेरे ऊपर उनकी कितनी अपार कृपा है। जिसके बारे में ना कोई सोच सकता है और ना अन्दाजा ही लगा सकता है।
उसने आगे विनयपूर्वक प्रार्थना करते हुए कहा, “मेरी आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि कृपया आप मुझे गुरुजी से माफी दिला दो। गुरुजी के कई शिष्यों ने मुझे कई बार ठीक करने की कोशिश की है। लेकिन मेरी समस्या ज्यों कि त्यों है। मुझे अपनी गलती का पूर्ण अहसास हो चुका है।” उसने पुनः प्रार्थना करते हुए मुझसे पूछा, “क्या यह मुमकिन है कि आप मुझे गुरुजी से माफी दिला दो….? क्योंकि अब वैसे भी मुझे सजा भुगतते हुए दस साल बीत चुके है।”
तभी मैं वहाँ से उठा और असाधारण उत्साह के साथ सीधा गुरुजी के पास चला गया और उनसे प्रार्थना की, “गुरुजी आज मेरा एक काम कर दो।” गुरुजी बहुत प्रसन्न मुद्रा में बैठे थे, बोले, “माँग क्या माँगता है…?” मैंने कहा, “उस औरत को माफ कर दो, जिसने आपको बादाम की गिरियाँ दी थी दस साल पहले।” गुरुजी मान गये और कहने लगे, “ठीक है…, जा बुला उसे।”
मैं गया और उसे सर्व-शक्तिमान गुरुजी के पास ले आया। गुरुजी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “जा आज से तेरी दर्दै खत्म, अब कभी गुरू को लालच मत देना।” और उसके बाद उसे फिर कभी दर्द नहीं हुई। वह बिलकुल ठीक हो गई। ….और अब मेरी बारी थी मैंने भी इसे ध्यान में रखते हुए, मनन किया कि :
गुरूजी द्वारा कहे गये शब्द, भगवान का कानून है। दस साल पहले उन्होंने शब्द कहे थे और वह दस सालों तक पीड़ा में रही। जरा सोचो…… अब दस साल बाद उन्होंने फिर कुछ शब्द कहे और वह आजीवन पीड़ामुक्त हो गई। यह भी सोचकर देखो…….
गुरुजी आप और भगवान दो नहीं अपितु एक ही हैं।
मुझ पर भी अपनी कृपा बनाये रखना
…..साहेब जी।।