मेरी जिन्दगी का यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था जो 101% मेरी समझ से परे था।
वास्तव में हमारे धर्मग्रन्थ, जैसे ‘शिवपुराण’ का अध्ययन करें तो उसमें इस तरह का वृतान्त आता है जिसमें भगवान शिव देवऋषि नारद को शिव व शक्ति के एक रुप होने के बारे में बताते हैं। सिर्फ नारद जी के अलावा और किसी दूसरे को इस दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो, मैं कह नहीं सकता…
गुरुजी अपने बिस्तर पर लेटे थे और मैंने सेवा शुरु कर दी। मेरे कहने का मतलब है कि मैं उनकी टाँगें दबाने लगा। इस तरह की विशेष सेवा करने का सौभाग्य, मुझे पिछले कई सालों में कई बार मिल चुका था। जब मैं उनकी टाँगें दबा रहा था तो अचानक मेरा ध्यान गया कि उनकी दायी टाँग तो चट्टान के समान सख्त है लेकिन बाँयी टाँग बहुत ही मुलायम है। मैंने अपने सिर को झटक कर फिर दुबारा महसूस किया तो देखा कि दोनों टाँगें गुरूजी की ही हैं। लेकिन दायीं और बाँयी टाँग में इतना अधिक अन्तर कैसे हो सकता है……!!
मुझे अपने अन्दर से इसका जवाब नहीं मिला तो मैंने गुरुजी से ही पूछा, “गुरूजी ये मैं क्या देख रहा हूँ कि आपकी दायी टाँग तो चट्टान की तरह सख्त है और बाँयी टाँग मक्खन के समान बिल्कुल नरम है। ऐसा कैसे हो सकता है गुरुजी…? पहले तो कभी ऐसा नहीं देखा।” गुरूजी मेरी तरफ मुड़े और उन्होंने मुझे कुछ संजीदा होकर देखा।
गुरुजी बोले, “बेटा, आज मैं ‘शिव-शक्ति’ के रुप में हूँ। मेरा बायाँ शरीर शक्ति का है और दाहिना शिव का। ये बॉयी टाँग तेरी माँ की है। इसीलिये नरम है।”
मैं अपनी पुरानी यादों में चला गया, जब मैं आध्यात्म सम्बन्धी किताबें पढ़ता था। सोचने लगा कि यह सच्चाई मैंने पहले किताबों में पढ़ी तो थी कि भगवान शिव कुछ समय के लिये अपनी इच्छा से ‘शिव-शक्ति’ के रुप में आये थे लेकिन उन्होंने यह रहस्य सिर्फ देवऋषि नारद को उनकी विशेष प्रार्थना पर ही बताया था। मैं यह समझता हूँ कि इस संसार में वह शायद दूसरा व्यक्ति मैं हूँ जो इस सच्चाई के रू-ब-रू हो सका। कितना भाग्यशाली और खुः श किस्मत हूँ मैं, कि आज मैंने वास्तव में भगवान ‘शिव’ (गुरुजी) के साक्षात रुप में दर्शन कर लिये।
मैं गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ कि वे पाठकों पर भी कृपा करें। उन्हें इतनी शक्ति दें कि वे इस सच्चाई को समझकर अंर्तग्रहण कर सकें और आत्म-बोध कर, आपके नजदीक आ सके।
शत्-शत् प्रणाम है,
गुरुवर…..