सैन-फ्रांसिसको एअरपोर्ट पर गुरुजी तथा माताजी के साथ संतलाल जी, बतरा बक्शी, मैं तथा कुछ अन्य गुरुशिष्य थे। हमें लॉस-ऐंजलिस के लिये फ्लाईट लेनी थी। संयोगवश मैं वहाँ रखे हुए एक साईनेज (Signage) पर होटलों के नाम पढ़ने लगा। गुरुजी ने देख लिया और मुझे बुला कर हल्की डॉट के साथ कहा, “बेटा, गुरु होटलों में नहीं रहते।” मैंने गुरुजी से पूछा, “गुरुजी, तो फिर हम लॉस-ऐंजलिस में रहेंगे कहाँ…..!!” सुनकर गुरुजी बस मुस्कुरा दिये, परन्तु कोई जवाब नहीं दिया।
हमने फ्लाईट ली और लॉस-ऐंजलिस एअरपोर्ट पहुंच गये। हम सब अपना-अपना सामान लेने के लिये बैगेज क्लेम की बैल्ट पर चले गये और अपने सामान के आने का इन्तजार करने लगे। गुरुजी एकदम शान्त थे और उनके चेहरे पर किसी प्रकार के कोई भी कौतूहल के भाव नहीं थे। हमने अपना-अपना सामान लिया और एक साथ एक ही जगह पर इक्कट्ठा कर दिया। तभी अचानक एक नवयुवक सीधा गुरुजी के पास आया और आकर उसने उनके चरण स्पर्श किये। गुरुजी ने उसे आशीर्वाद दिया और हम सभी से यह कह कर परिचित कराया कि हम सब उनके शिष्य हैं। तब उसने माताजी तथा हम सब के भी चरण छुए। उसके साथ एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति भी आये थे। उसने बिना हमसे कुछ पूछे, हमारा सामान उठाया और आगे-आगे चल दिये। हम एअरपोर्ट के बाहर पहुंचे जहाँ पर दो बड़ी कारें खड़ी थी। लगभग एक घण्टे की सड़क यात्रा करके हम रात्रि करीब 10 बजे उसके घर पहुंचे। वहाँ उसकी पत्नी उमा ने हमारा स्वागत किया। हम सब के लिये खाना टेबल पर लगा हुआ था। गुरूजी ने, माताजी और हम सब को इक्कट्ठा बैठकर खाने का आदेश दिया लेकिन स्वयं नहीं खाया तथा हमेशा की तरह सिर्फ चाय ही ली। खाना समाप्त करने के बाद हम लोग बैठक (Living Room) में आकर सोफे पर आराम करने के लिये बैठ गये। इतने में वह नवयुवक वैसे ही मेरे पास बातचीत करने के लिये आकर बैठ गया। बातचीत के दौरान मैंने उससे पूछा कि वो गुड़गाँव कब गया था…? तो उसने जवाब दिया, “नहीं, मैंने गुड़गाँव कभी नहीं देखा।”
कमाल है………!! मैंने उससे दुबारा पूछा, “तो फिर आप गुरुजी से पहले कहाँ मिले थे…?” उसने जवाब दिया, “मैंने तो गुरुजी को आज पहली बार देखा है।” विस्मित होकर मैंने फिर पूछा, “तो फिर तुम एअरपोर्ट पहुंचकर सीधा गुरुजी के पास कैसे आ गये…!! उनके चरण कैसे स्पर्श कर लिये और हम सब को लेकर यहाँ कैसे आ गये…!! …और तो और, तुम्हारी पत्नी ने भी हम सब के लिये ऐसे खाना टेबल पर सजा कर रखा था, जैसे वह पहले से ही जानती हो कि इतने लोग आ रहे हैं….!!” उसने बड़ी शान्ति से बताया मेरा नाम कृष्ण कुमार है और मैं यहाँ जज हूँ। उसने आगे बताया कि आज से दस साल पहले जब मैं भारत गया तो अपने किसी रिश्तेदार के घर रुका था। मुझे नाक से सम्बन्धित कोई बीमारी थी, जिसे अमेरिका का कोई भी डॉक्टर ठीक नहीं कर सका था। इस बीमारी की वजह से मैं बहुत परेशान था। अतः एक दिन मेरे रिश्तेदार मुझे अपने गुरू श्री आर.सी. मल्होत्रा जी के घर, शालीमार बाग ले गये। उन्होंने मुझे पीने के लिये एक गिलास में पानी दिया और कुछ इलायचियाँ दी।
चमत्कार हो गया– इलायचियाँ खाने के बाद, मेरी बीमारी हमेशा के लिये चली गयी और उसके बाद वह बीमारी कभी नहीं आयी। पिछली रात मुझे एक सपना आया कि गुरुजी अपने साथ कुछ और लोगों को लेकर भारत से यहाँ आ रहे हैं और मुझे उन्हें लेने के लिये एअरपोर्ट जाना है। मैंने अपने ससुर जी से प्रार्थना करी कि वे भी मेरे साथ चलें। क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि सबके लिये एक कार पर्याप्त नहीं होगी। इसलिये हम दोनों आपको तथा आपका सामान लेने के लिए एअरपोर्ट पहुंचे थे। मेरे पैर अपने आप मुझे रास्ता दिखा रहे थे और मैं नहीं जानता कि मुझे क्या हुआ था। मैं तो अपने आप ही गुरुजी की तरफ खिंचता चला जा रहा था। सच्चाई तो यह है कि मैं यह सोच रहा था कि मल्होत्रा गुरुजी कुछ लोगों के साथ आ रहे हैं। मुझे तो बाद में पता चला कि मल्होत्रा जी के गुरुजी, अपने शिष्यों के साथ आये हैं। कितना भाग्यशाली हूँ मैं, कि मुझे आर.सी. मल्होत्रा जी को गुरू बनाने वाले महागुरुजी का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं बहुत खुशनसीब हूँ। लेकिन सच्चाई यह है कि गुरुजी से आज यह मेरी पहली मुलाकात है। मैंने अपनी पत्नी को अपने सपने के बारे में बताया तो उसने अपने आप सबके लिये खाना स्वयं तैयार किया है। मैंने उसे नहीं कहा था।
हे भगवान………!! गुरुजी आपका कोई मुकाबला नहीं। आप सब कुछ पहले से ही जानते थे। किस तरह से आपने लॉस-ऐंजलिस आने का प्रोग्राम बनाया और किस तरह से सारा प्रबन्ध किया, इसका कोई जवाब नहीं। कभी-कभी मैं यह सोचता हूँ कि गुरूजी और भगवान का बहुत नज़दीकी का रिश्ता है। या फिर …वे दो नहीं अपितु एक ही हैं।
बहुत जरुरत है, हे गुरुदेव..! आपकी बहुत कृपा चाहिए।
प्रणाम जी।