सन् 1990 की बात है। गुरुजी ने एक अद्भुत रचना रची।
अरुण कुमार की कीर्तिनगर में फर्नीचर की फैक्ट्री है। वह पंजाबी बाग में बैठा, स्थान की बैठक और सोने के कमरों (Drawing Room & Bed Rooms) को सुव्यवस्थित करने का कार्य करवा रहा था।
वह मुझसे पलंग (Bed) के डिज़ाईन के बारे में बात कर रहा था कि तभी अचानक उसे उसकी फैक्ट्री के फोरमैन का फोन, किसी दूसरे ग्राहक के घर से आया।
फोरमैन ने अरुण कुमार को एक बुरी खबर सुनाते हुए कहा कि जो अल्मारियाँ हमारी कम्पनी ने उस ग्राहक को भेजी हैं, उनमें दीमक लगी हुई है। उसका मैनेजर बहुत नाराज़ है तथा उसने अपने मालिक को भी कह दिया है कि हमारे सामान के बिल का भुगतान ना करे। इस खबर से अरुण कुमार भी बहुत परेशान हो गया, जो मैंने महसूस किया।
मैं अन्दर गया और कुछ हजार रुपये लाकर अरुण कुमार को दे दिये। जो भुगतान का एक हिस्सा था उस काम का, जो कार्य वह हमारे घर करवा रहा था।
जब मैं उसे पैसे दे रहा था तभी मुझे गुरुजी से एक संदेश मिला कि वह अल्मारियाँ जो इसने दूसरे ग्राहक को भेजी हैं उनमे दीमक नहीं है। मैंने अरुण कुमार को आदेश दिया कि वह उस ग्राहक के पास जाये और अल्मारियों में दीमक दिखाने के लिये कहे। क्योंकि उसमें अब दीमक नहीं है। मेरे आदेशानुसार अरुण कुमार तुरन्त उस मैनेजर से मिलने चला गया।
वह मैनेजर बहुत गुस्से में लग रहा था। उसने अरुण कुमार के कहने पर जब एक के बाद एक अल्मारी खोली तो आश्चर्य से दंग रह गया…..!! उनमें से एक में भी दीमक नहीं थी। वह ऐसा लग रहा था कि मानों उसे काटो तो खून नहीं।
उसने अपने मालिक को फोन किया और बताया कि सारी अल्मारियाँ ठीक हैं। उसने अरुण कुमार से माफी मांगी और प्रार्थना करी कि वह मालिक से मिलकर अपने बिल के भुगतान का चैक ले लें। अरुण कुमार ने अपने बिल के पूरे भुगतान का चैक लिया और वापिस आ गया।
वापिस आकर उसने अपने फोरमैन को बुलाया और उससे पूछा——-
• क्या मैनेजर ने तुम्हारी मौजूदगी में सब अल्मारियाँ चैक की थी ? …और
• क्या उस समय उसमें दीमक मौजूद थी ?
उसने बताया कि वह मैनेजर 100% सही कह रहा था। लेकिन बाद में क्या हुआ …यह तो भगवान ही जाने!!
हे गुरुदेव…… !!
• आप हम बच्चों की हर समय रक्षा करते हैं जब हम मुश्किल में होते हैं।
• आप यहाँ तक कि दीमकों को भी जाने का आदेश दे देते हैं ताकि हम खुश और सुरक्षित रह सकें। आप हमें, हमारे पैसे के होने वाले नुकसान से भी बचा लेते हैं। जिससे हमारा आपके पवित्र चरणों के प्रति विश्वास और अधिक मजबूत होता है।
साहेब जी, ….प्रणाम।।