सीताराम जी, गुरुजी के शुरु के पहले शिष्यों में से एक थे। जो अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक में एक उच्च पद पर कार्यरत थे। उनका अपना एक अलग ऑफिस था और गुरुजी अक्सर शाम को ऑफिस का समय समाप्त होने के बाद उनसे मिलने जाया करते थे।
एक दिन शाम को गुरुजी उनके ऑफिस पहुंचे, तो सीताराम जी ने, गुरूजी से ऑफिस की किसी आवश्यक मीटिंग में सम्मलित होने के लिए मुम्बई जाने की इजाजत मांगी।
गुरुजी ने इजाजत देते हुए कहा—”ठीक है, हम इक्ट्ठे चलते हैं, मैं तुम्हें रास्ते में एअरपोर्ट पर छोड़ दूंगा और मैं गुड़गाँव चला जाऊँगा।”
जब गुरुजी एअरपोर्ट पहुंचे तो बोले— ”नहीं सीतू, गुरू कभी अपने शिष्य को नहीं छोड़ सकता, जबकि शिष्य छोड़ सकता है। लिहाजा तुम पहले मेरे साथ गुड़गाँव चलो, वहाँ मुझे छोड़ कर वापिस एअरपोर्ट आ जाना।”
गुडगाँव पहुंचकर, गुरुजी ने सीताराम जी को चाय का प्रसाद दिया और कहा–‘प्रसाद लेकर ही एअरपोर्ट जाना।” फ्लाईट का समय तेजी से निकला जा रहा था। चाय का प्रसाद लेने के बाद, वे गुरुजी से बोले— ”गुरुजी कृप्या आप किसी को आदेश दें कि वह मुझे एअरपोर्ट छोड़ आये।” गुरुजी बोले– ”बाहर देख कौन है?”
सीताराम जी बाहर आये और देखा कि एक व्यक्ति स्कूटर पर आया था और गुरुजी के दर्शन करना चाहता था। वे उसे लेकर, गुरुजी के पास आये और गुरुजी से प्रार्थना की, कि गुरुजी उस व्यक्ति को उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़कर आने का आदेश दें। जब वह व्यक्ति कमरे से बाहर गया तो सीताराम जी ने गुरुजी से कहा— “गुरुजी, जब तक मैं एअरपोर्ट पहुँचूंगा, फ्लाईट तो उड़ चुकी होगी। क्योंकि मैं बहुत लेट हो चुका हूँ।”
गुरुजी बोले : “…..मेरा शिष्य जाने वाला है तो फ्लाईट उड़ कैसे सकती है उसके बिना।”
उस व्यक्ति ने सीता राम जी को एअरपोर्ट छोड़ा। वे बोर्डिंग पास लेने के लिये जब कॉउन्टर पर पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि हवाई जहाज उड़ा नहीं था।
कारण पूछने पर पता चला कि कैप्टन पूर्णरुप से सन्तुष्ट नहीं था और इंजन की जाँच चल रही थी। उनसे कहा गया कि इन्जीनियर अपना काम कर रहे हैं इसलिए आप अपना बोर्डिंग पास लीजिए और विमान में बैठिए।
…तो वह विमान कैसे उड़ सकता था…? जब गुरुजी अपने शिष्य सीतू को चाय का प्रसाद दे रहे थे।