सन् 2005 की बात है। मैं पंजाबी बाग स्थान पर बैठा, सेवा कर रहा था। एक दम्पति अपने दो व्यस्क बेटों को लेकर मेरे पास आये। उन्होंने मुझसे उन्हें आशीर्वाद देने की प्रार्थना की। मैंने उनसे वैसे ही पूछा कि क्या तुम पहली बार आये हो…? उस महिला ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया, “नहीं गुरुजी, हम तो तभी से स्थान पर आते हैं, जब बड़े गुरुजी शरीर में थे।” उसने अपने एक बेटे की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह जब पैदा हुआ था तो इसकी दोनों किडनियाँ खराब थी।” उस समय हमारे किसी दोस्त ने हमें इसे गुरुजी के पास गुड़गाँव ले जाने की सलाह दी थी। हम उसकी बात से सहमत हो गये क्योंकि डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। हमारे पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। इसलिए हम लोग बड़े वीरवार के दिन इसे गुरुजी के पास गुड़गाँव ले जाने के लिए तैयार हो गये। हमें अपने जीवन में पहली बार ऐसा अद्भुत नज़ारा वहाँ देखने को मिला। हमने देखा कि बड़ी संख्या में लोगों की भीड़, जो करीब दो किलोमीटर लम्बी लाइन में खड़ी, गुरुजी के दर्शन करने के लिए पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ शान्ति से इन्तजार कर रही थी। मैं भी उन्हीं लोगों की तरह अपने बच्चे को गोद में लिए हुए खड़ी हो, गुरुजी का इन्तजार करने लगी। अचानक मैंने सुना
“….गुरुजी आ गये” “….गुरुजी आ गये” तो मैं क्या देखती हूँ कि सामने से एक अद्भुत व्यक्तित्व, प्रसन्न मुद्रा में गुरुजी, आगे से लाईन में हमारी तरफ आ रहे हैं। वे सबके सिर पर अपना हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे। बहुत लम्बी-लम्बी लाईनें लगी हुई थी और सभी स्त्री-पुरुष चाहे वे बूढ़े हों या जवान, गुरुजी उन्हें एक अनोखी मुस्कान के साथ मिल रहे थे। गोद में उठाये हुए बच्चे भी उनके आशीर्वाद से अछूते नहीं थे। अर्थात वे उन्हें भी आशीर्वाद देना नहीं भूलते थे। वे हर किसी के पास खड़े होते और उनसे बात करते थे। ….और मैं, यह सब बड़ी लगन के साथ देख रही थी। जिस तरह से वे लोगों से मिल रहे थे और बाते कर रहे थे, ऐसा लगता था मानो उन्हें हर किसी के बारे में पूर्ण जानकारी हो। मेरे हिसाब से उस समय लाईन में लोगों की गिनती हजारों में थी। जब गुरूजी से मिलने की मेरी बारी आई तो मैंने अपनी गोद में उठाये हुए बच्चे का चेहरा गुरुजी की तरफ करते हुए कहा, “गुरुजी, इसकी दोनों किडनियाँ खराब हैं।” इस पर गुरुजी ने मेरे बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया और कहा, “नहीं, इसकी दोनों किडनियाँ बिलकुल ठीक हैं।”
….ऐसा कहकर गुरुजी आगे चले गये। उस दिन मैं गुरुजी के शब्दों से इतनी प्रभावित हुई कि उसके बाद मैंने किसी डॉक्टर या इलाज के बारे में कभी नहीं सोचा और न ही कभी किसी डॉक्टर के पास गई। यही मेरा वो बेटा है जो अब बड़ा हो गया है और अपनी शैक्षिक समस्या तथा काम में तरक्की प्राप्त करने के लिए आपका आशीर्वाद लेने आपके सामने बैठा है। इसे आज तक किसी प्रकार का कोई शारीरिक कष्ट नहीं हुआ है। यह गुरुजी का वरदान ही है कि यह पूर्ण सुख के साथ अपना स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहा है। डॉक्टरों ने तो इसके जन्म के समय ही ‘ना’ कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दिये थे।
वाह….. हे गुरुजी……. ……..वाह कमाल है बच्चे को हाथों में लिया, देखा और कह दिया कि नहीं इसकी किडनियाँ तो ठीक हैं। __ मैं इसे क्या कहूँगा…?
….चमत्कार!!
…… चमत्कार नहीं। माफ करना, यह चमत्कार नहीं उससे कुछ अलग है। चमत्कार तो मनुष्य करते हैं
लेकिन गुरूजी ने क्या कहा… क्या उनके शब्द थे..!! जिन्होंने भगवान की तरह काम किया। ये तो वही बता सकते हैं उन्होंने उस महिला से क्या कहा था….!!
हजारों लाखों प्रणाम हैं…
हे सम्पूर्ण सृष्टि के मालिक।