गुरुजी ने अपना अमेरिका और यूरोप का टुअर, श्री आर. पी. शर्मा, डी. एस. जैन, बक्शी बतरा, देवेन्द्र जैन तथा कई अन्य शिष्यों के साथ पूर्ण किया।
एयरपोर्ट की बात है, वहाँ चेक-इन पर सभी यात्री अपना-अपना सामान का वजन कराने के लिए दे रहे थे। चैकिंग ऑफिसर सामान का वज़न करने के बाद, कानून के मुताबिक सामान का स्वीकृत मुफ्त वज़न घटाकर, बाकी वज़न के लिए अतिरिक्त भुगतान चार्ज कर रहा था।
इतने में देवेन्द्र जैन गुरुजी के पास आया और प्रार्थना करने लगा कि गुरुजी, जो चैकिंग ऑफिसर है वह बहुत सख्ती से चैकिंग कर रहा है और मेरे सामान का वज़न स्वीकृत मुफ्त वज़न से करीब दुगना है। मैंने सामान में कुछ दर्जन कैमी साबुन डाला है, वह मुझे बहुत पसन्द है। वह ऑफिसर सामान के अतिरिक्त वज़न के लिए चार्ज लगायेगा। उसके लिए मेरे पास और विदेशी मुद्रा भी नहीं है। अतः मजबूरन वह साबुन मुझे यहीं छोड़ना पड़ेगा।
उसने आगे प्रार्थना की, कि गुरुजी कुछ कीजिए ताकि ये साबुन बिना किसी चार्ज के, मैं अपने साथ भारत ले जा सकू।
गुरुजी ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिये… ||
तभी चमत्कार हुआ… देवेन्द्र ने अपना सामान वज़न करने की मशीन पर रखा। उसके सामान का वजन सामान्य से लगभग तीन गुणा था। चैकिंग ऑफिसर ने बिना कोई प्रश्न किये उसे बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लिया और वह दूसरे यात्री का सामान चैक करने में लग गया।
सभी लोग उस ऑफिसर के व्यवहार में अचानक आये इस बदलाव से आश्चर्य चकित थे। क्योंकि वह ऑफिसर, किसी भी यात्री के सामान में यदि 10% भी अतिरिक्त वज़न होता था तो भी उसके उस वज़न पर चार्ज लगा रहा था। तो यह कैसे सम्भव हुआ कि देवेन्द्र का सामान जो कि 300% था, बिना किसी चार्ज के पास हो गया…?
…उसके बाद गुरुजी भारत लौट आये। उनके लौटने पर मैंने गुरुजी से पूछा, “गुरूजी, उन्होंने देवेन्द्र के 300% सामान को कैसे जाने दिया…?” गुरुजी ने मेरी तरफ देखा और कहा, “बेटा, वो बहुत भोला हैं” जब देवेन्द्र की बारी आयी, तो मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा और मुझे उस पर दया आ गई। मैंने उस ऑफिसर के दिमाग को अपने नियन्त्रण में ले लिया और उसे सामान में उतना ही वज़न नज़र आया, जितना भेजा जा सकता था। अतिरिक्त वज़न उसे दिखाई ही नहीं दिया।
ऐसा मैंने देवेन्द्र के लिए इसलिए किया क्योंकि साबुन उसकी पसन्द का था और वह उसे अपने साथ लाने के लिए बहुत उत्सुक भी था।
गुरूजी ने कहा, “बेटा, ये तो खेल तमाशा है, जो मैं अपने बच्चों को खुः श करने के लिए करता हूँ, कभी-कभी।”
आपकी माया अपरम्पार है……
…….हे गुरुदेव!!