हमेशा की तरह गुरुजी अपने ऑफिश्यिल टुअर पर बाहर गये हुए थे। रात हुई और सभी कमरों के ताले लगाकर माताजी बच्चों को लेकर स्थान की छत पर सोने चली गईं। करीब आधी रात के समय तेज हवाएं चलने लगी और माताजी ने सोचा कि शायद बारिश आने वाली है। अतः वे सभी को लेकर नीचे आ गईं।
जब नीचे आईं तो वह चौंक गईं क्योंकि स्थान वाला कमरा खुला हुआ था और वहाँ लाईट भी जल रही थी। उन्होंने ताले को देखा तो वह टूटा हुआ नहीं था, वह तो खोला गया था। फिर उन्होंने घर का सामान देखा, वह भी बिल्कुल सु-व्यवस्थित था। बाकी सभी कमरों पर ताले लगे थे केवल स्थान का कमरा ही खुला हुआ था।
माताजी को यह देखकर तसल्ली हुई कि सभी सामान अपनी जगह पर सुरक्षित है और कुछ भी चोरी नहीं हुआ है। जैसा कि अक्सर होता है।
जब गुरुजी ‘शारीरिक रुप में स्थान पर नहीं होते थे तो उस समय उनके शिष्य श्री एस. के. जैन और राजी शर्मा, दोनों गुड़गाँव स्थान पर आ जाते और सेवा करते थे। माताजी ने उन्हें रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि कोई नुकसान नहीं हुआ है। लेकिन उन्होंने इसे कोई गम्भीरता से नहीं लिया।
परन्तु उन्हें आश्चर्य तो तब हुआ कि जब गुरुजी अपने टुअर से वापिस आये और दुबारा इस विषय पर बात हुई। गुरुजी माताजी से कहने लगे, “ओ मॉस्टर, (गुरुजी माता जी को इसी तरह सम्बोधित करते थे और खुः शी महसूस करते थे।) कैसे बेहोशों की तरह सोती हो, जरा तो चौंकन्ना रहना चाहिए….!!”
उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले मैं, कुछ आध्यात्मिक कार्य के लिए स्थान पर आया था। मैंने तुम्हारे सिरहाने के नीचे से कमरे की चाबियाँ निकाली और अपना काम किया। लेकिन मैं वापिस कमरे का ताला लगाना और लाईट बन्द करना भूल गया और चाबियाँ दुबारा तुम्हारे तकिये के नीचे रख दी।”
कितनी आसानी और सरलता कह दिया गुरुजी ने। पर बात तो बहुत ही बड़ी थी।
साधारण मनुष्य की सोच बहुत सीमित है। अगर उसकी तरह से सोचा जाये तो गुरूजी को कैम्प से गुड़गाँव स्थान तक आने के लिए किसी टैक्सी, ट्रेन या किसी अन्य वाहन की जरुरत रही होगी। लेकिन गुरुजी ने ऐसे किसी भी साधन का प्रयोग नहीं किया।
गुरुजी आये, चाबियाँ उठाई…., दरवाजे खोले….
लाईट जलाई…., साधारण तरीके से अपना काम किया …
और चले गये।
लेकिन वे कैसे आये और कैसे वापिस गये, यह बात हज़म नहीं हो रही।
हे गुरुदेव, ये तो सिर्फ आप ही बता सकते हैं
कि आप कैसे आये और कैसे गये।
अपनी कृपा करें ….हे गुरुदेव ।
……..प्रणाम गुरुजी।