मायापुरी इण्डस्ट्रीयल एरिया में मेरी फैक्ट्री है। इस इण्डस्ट्रीयल ऐरिया में और भी बहुत सी फैक्ट्रियाँ हैं जो विभिन्न प्रकार के प्रोडक्ट्स का निर्माण करती हैं।
मेरी फैक्ट्री के ठीक सामने सड़क के उस पार एक फैक्ट्री है। उसका नाम हरियाणा आटो है, जहाँ प्लास्टिक का सामान बनता है।
एक दिन सुबह-सुबह उस फैक्ट्री के मालिक मि. गुप्ता मेरे पास आये और कहने लगे, “राजपॉल जी, मैंने सुना है कि आप बहुत महान गुरुजी के शिष्य हो और उन्होंने आपको भी बहुत सी आध्यात्मिक शक्तियाँ दी हैं। मुझे विश्वास है कि आप मेरे लिए भी कुछ कर सकते हैं।
मेरे पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसकी फैक्ट्री में कुछ अजीब सी समस्या चल रही है। जिसके कारण फैक्ट्री बन्द करने की नौबत आ गई है। समस्या समझ में नहीं आ रही। उसने बताया कि यदि कोई भी कारीगर काम करने के लिए मशीन को हाथ लगाता है तो उसे झटका लगता है तथा वह काँपने लगता है और फिर उसे तेज़ बुखार आ जाता है। ऐसा कितनी बार हो चुका है और अब सभी कारीगर मशीन के पास जाने से घबराते हैं। मेरा कारोबार अब बन्द होने के कगार पर है। उसने विनती करते हुए कहा कि मुझे बचा लीजिए।
मैंने कहा कि मुझे खुःशी है कि तुमने मेरे गुरुजी के बारे में जाना। मैं गुड़गाँव जाऊँगा और गुरुजी से आज्ञा लेकर जैसा वे कहेंगे, वैसा करुंगा।
गुड़गाँव जाकर मैंने गुरुजी से प्रार्थना की और उन्होंने ‘हाँ’ कर दी। इसके लिए उन्होंने मुझे कुछ खास हिदायतें दी। गुरूजी के आदेशानुसार अगली सुबह मैं उसकी फैक्ट्री में गया। उसकी फैक्ट्री की मशीनों का पूरा चक्कर लगाने के बाद मैंने एक गिलास जल का बनाया और मशीनों पर, दीवारों पर, फैक्ट्री की छत पर अर्थात सभी जगह छिड़क दिया।
तब मैंने उसके एक कारीगर को बुलाया और उसे मशीन चलाने का आदेश दिया। कारीगर ने जैसे ही मशीन को छुआ, उसे ज़ोर से झटका लगा और वो पागलों की तरह काँपने लगा। फिर जैसा गुरुजी ने मुझे आदेश दिया था मैंने उस कारीगर को पकड़ा और पीटना शुरु कर दिया। उसके बाद उसे जल पिलाया और मशीन को दुबारा चलाने का आदेश दिया। उसने ऐसा ही किया। परन्तु इस बार उसे मशीन चलाने पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मैंने उसे काम जारी रखने का आदेश दिया और कहा कि वे सामान का उत्पादन ना रोके। मैंने गुप्ताजी को आदेश दिया कि वे ध्यान रखें तथा चौकसी बरतें। यदि उन्हें फैक्ट्री में कुछ असाधारण या संदिग्ध वस्तु दिखाई दे तो वे तुरन्त लाकर मुझे दिखाऐं।
अगले दिन सुबह गुप्ता जी मेरी फैक्ट्री में आये और कुछ ताँबे के छोटे-छोटे ताबीज जो एक मोटे धागे से बंधे हुए थे, लाकर मुझे दिखाये और बताया कि वे उसे फैक्ट्री के फर्श पर पड़े हुए मिले हैं। मैंने सब कुछ जानने के बाद जैसा पहले मुझे गुरुजी ने कहा था उसे स्मरण करते हुए आगे के लिए आदेश दिया। उसके बाद फिर किसी को भी ऐसा झटका नहीं लगा और ना ही उसे उत्पादन में कोई दिक्कत आयी। उसका व्यापार पहले से कई गुना बढ़ गया।
कुछ महीनों के बाद, गुरुजी मेरी फैक्ट्री के गेट में खड़े थे और उन्होंने सड़क पर एक सफेद मर्सिडीज कार को जाते देखा। गुरुजी बोले–
“राज्जे, ये तेरी मर्सिडीज है..!! मैंने खुः श होकर मुस्कुराते हुए कहा,
“सो कैसे गुरुजी….?”
गुरुजी बोले—- “जो इस कार का मालिक है उसकी फैक्ट्री बन्द हो चुकी थी। कुछ महीने पहले तुमने ही उसे बचाया था। मुझे पता है उस समय उसके पास चलाने के लिए एक स्कूटर ही था। तुम्हारे आशीर्वाद की बदौलत ही आज वो मर्सिडीज के लायक हुआ है। अब बताओ कि ये तुम्हारी कार है या नहीं…?”
यह शब्द थे सर्वव्यापी ईश्वर, सम्पूर्ण प्रभुत्व के मालिक मेरे गुरुजी के। क्या आनन्द पूर्ण कृपा थी मेरे पूज्यनीय गुरूजी की। यह नई सी कृपा उस दिन मेरी समझ में आई…. “जैसे किसी को किसी महात्मा की दुआ के बाद पुत्र की प्रप्ति हो और उसे लेकर वह महात्मा के पास आये और कहे, ये आपका है…।।” ।
ठीक इसी तरह, इतने ही स्पष्ट और उदार, मेरे सर्वव्यापी ईश्वर के भी
…शब्द थे।
मैं कुरबान, …हे गुरुदेव। आप ही आप हैं…