गुरूजी का बेटा बब्बा, उस समय किशोरावस्था में था और बड़े वीरवार के दिन अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने में मस्त था। वह पूजनीय गुरुजी का बड़ा बेटा है और उसका पूरा नाम प्रवेश चानन है।
अचानक उसे एक सन्देश मिला कि गुरूजी उसे बुला रहे हैं। वह थोड़ा घबरा गया और गुरुजी के कमरे में पहुंचा। गुरुजी कुछ अलग सी मुद्रा में बैठे थे। उन्होंने उसे आदेश दिया कि वह 108 बाल्टी जल बेसमेन्ट में पहुंचाए, जहाँ सैंकड़ों भक्तजन बैठे थे और शिष्य सेवा कर रहे थे।
उन दिनों जल की सेवा, गुड़गाँव के सैक्टर-7 में होती थी। बब्बे के मन को शान्ति मिली और उसने बाल्टियों द्वारा ग्राण्उड फ्लोर से बेसमेन्ट में जल पहुंचाना शुरु कर दिया। 108 बाल्टी जल पहुंचाने में उसे लगभग चार घन्टे का समय लग गया। वह गुरुजी के पास यह बताने पहुँचा कि उसने वह कार्य कर दिया है तो गुरूजी ने उसे अपने पास बिठाया और जल की सेवा का महत्व समझाया ।
गुरूजी ने बताया कि जल का वितरण हमेशा ‘महागायत्री’ के पाठ के साथ करना चाहिए। जिसकी आत्मा पवित्र है वही इस जल की सेवा कर सकता है। आध्यात्मिक शक्तियाँ एक उसे, जो यह जल बनाता है और दूसरा उसे, जो यह जल लोगों या अनुयायीयों में वितरित करता है। उन दोनों को ही आध्यात्मिक शक्तियाँ दी जाती हैं। इस तरह महागायत्री मंत्र के द्वारा सेवा करते समय उसकी आत्मा में, वे स्वयं निवास करते हैं। यह दैविक शक्तियाँ उसकी आत्मा में निवास करती हैं जो साधु और तपस्वियों के लिए एक सपना है। लेकिन ऐसा सीधा ‘गुरू’ या उनके समकक्ष के नियन्त्रण में रह कर ही करना चाहिए। जैसे हमारे गुरुजी…।। पूर्ण विश्वास है कि थोड़े समय में ही वे तुम्हें, तुम्हारे लक्ष्य तक पहुंचा देंगे। मुझे गुरुजी से पता चला कि जल, पानी की उच्चतम् अवस्था है। यह आध्यात्म के साथ सम्बन्ध रखती है। ऐसा मैंने और कहीं नहीं देखा, जैसा कि गुरुजी ने प्रेक्टीकल रुप में दिखाया। यह मेरे लगातार सालों साल का अनुभव है कि पानी गुरुजी के हाथ में आया और जल बन गया। गुरूजी इसमें क्या डालते थे, ये मैं यहाँ विस्तार से नहीं लिख सकता। हाँ, यह ज्ञान दिया जा सकता है यदि कोई जिज्ञासु स्वयं चलकर आये और इस ज्ञान को जानने का इच्छुक हो। मैं स्पष्ट रुप से यहाँ बताना चाहूँगा कि सुबह सेवा शुरु करने से पहले, पहला काम जो गुरुजी करते थे, वह था जल बनाना ।
जैसा कि मैं जानता हूँ, कि जिस तरह के कठोर नियम गुरुजी ने शिष्यों और सेवादारों के लिए बनाये हैं ठीक उसी तरह के ही कठोर नियम उन्होंने अपने बच्चों बब्बा, रेनू, नीटू, इला व छुटकी के लिए भी बनाये है। मैं समझता हूँ कि वे पिता से अधिक गुरू हैं। मैं पिछले 30-35 वर्षों से गुरुजी के बच्चों को बड़े भाई की तरह उनके प्यार के नामों से ही पुकारता हूँ।
जो कुछ भी मैंने कहा, वह कहने की क्षमता और ज्ञान दोनों मुझ में नहीं, क्योंकि यह दोनों एक शिष्य के बस में है ही नहीं। यह जो सब ज्ञान जैसा दिखता है, वास्तव में एक सन्देश है जो शिष्य की सम्पूर्ण रचना में एक स्थाई चैनल द्वारा गुरुजी ने स्थापित कर रखा है।
सो…..!! जो कुछ भी मैं दिखता हूँ, वह मैं नहीं, अपितु वह स्वयं मेरे मालिक ही हैं।
सब कुछ आप ही आप हैं।
ऐ मेरे मालिक….!!