एक दिन शाम को मैं गुड़गाँव पहुंचा तो पता चला कि गुरुजी छत पर हैं। मैं भी छत पर चला गया और गुरूजी के दर्शन पाकर आनन्दित हो गया। उन्होंने आशीर्वाद देने के बाद मुझे नीचे चटाई पर बैठने को कहा तथा खुद चुपचाप आकाश की ओर देखने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने मेरी तरफ देखा। मैं लगातार उन्हें देखे चला जा रहा था लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया कि वे आकाश में क्या देख रहे हैं।’
अचानक मेरी नज़र गुरुजी से हटी और मैं भी आकाश की ओर देखने लगा। यह जानने के लिये कि गुरूजी ऊपर क्या देख रहे हैं। तभी मैंने देखा कि आकाश में कोई तिकोनी सी वस्तु जिसके तीनों तरफ मन्द-मन्द पीली लाईट जल रही थी, बहुत शान्ति से चली जा रही है। वह पीली लाईट छोटे-छोटे बल्बों के समान एक कतार में लगी थी, जो आँखों को आनन्द प्रदान कर रही थी।
पहले मुझे लगा कि शायद यह कोई हवाई जहाज़ है। लेकिन उसमें किसी प्रकार की कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। मैंने उसे और ध्यान से देखा तो लगा कि उस वस्तु का आकार हवाई जहाज़ जैसा नहीं है। वह तिकोने आकार का था जिसकी नाक छोटी थी। जैसा कि हम बचपन में कागज़ का हवाई जहाज बनाकर उड़ाते थे।
एक और अजीब बात मैंने वहाँ देखी कि वह एक स्थिर गति से उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर धीरे-धीरे चली जा रही है। मुझे लगा कि ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा। मैंने उत्साहित होकर गुरुजी से कहा, “गुरुजी देखिए, वो ऊपर क्या जा रहा है?” गुरुजी एकदम संजीदा व शान्त थे। उन्होंने मुझे इसका तब तक कोई जवाब नहीं दिया, जब तक कि वह वस्तु आँखों से औझल नहीं हो गई।
बजाय इसके कि गुरूजी मेरी बात का जवाब देते, वे मेरी ओर एक-टक देखने लगे। उस समय उनके चेहरे पर आनन्द पूर्ण आभा, सम्पूर्ण प्यार और भाव, बहुत कोमलता से भरपूर मधुर मुस्कान, देखने लायक थी।
गुरुजी का यह रुप मैंने शायद ही पहले कभी देखा हो। मैं थोड़ा सहम सा गया और पूछा, “गुरुजी, कोई खास बात है…?”
गुरुजी कुछ देर तक चुप रहे और उसके बाद बोले……..
“राज्जे, बेटा तू बड़ा खुः शनसीब है। तूने आज वो देखा है जो कभी किसी ने नहीं देखा।”
गुरूजी ने आगे बताया…….
“किसी खास दिन भगवान शिव, अपने वाहन पर यहाँ स्थान के ऊपर से गुजरते हैं। मेरे अलावा किसी को इसकी जानकारी नहीं है। तू पहला शख्स है जिसने इनके दर्शन किये हैं और वो भी अपने गुरू के साथ।”
मैं गुरूजी के तेजपूर्ण चेहरे की तरफ देखता ही रह गया। उनकी दिव्य आवाज़, मेरे कानों और दिमाग में आज तक गूंज रही है। मुझे शून्यता का अहसास हो रहा था। यह एक अनोखा अनुभव था जिसका अनुमान लगाना असम्भव सा है।
इसी को कहते हैं गुरू कृपा और …….इसके कृपा निधान हैं गुरुजी स्वयं।
शत्-शत् प्रणाम है गुरु महाराज।
…..कृपा बनाये रखना,
साहेब जी।