मनुष्यों में यह एक आम स्वाभाविक प्रवृति है कि वे चमत्कार देखकर उससे बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। एक बार बब्बू अपने स्कूटर पर तेजी से फैक्ट्री जा रहा था कि अचानक वह किसी दूसरे स्कूटर वाले से टकरा गया। दोनों स्वयं व उनके स्कूटर, सड़क पर गिर गये। बबू जल्दी से उठा तथा दूसरे स्कूटर चालक को पकड़ लिया और इस एक्सीडेन्ट के लिए उसे दोषी करार देने लगा। वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा। वह उसे पीटने ही वाला था कि अचानक उसे लगा कि उसके कन्धे को किसी ने छुआ है और कोई पीछे खड़ा उससे बात करना चाहता है। उसने मुड़कर पीछे देखा तो पाया कि गुरुजी का ड्राईवर सीताराम उससे कह रहा था कि गुरुजी उसे बुला रहे हैं। उसे देखकर बबू हैरान हो गया और उस स्कूटर सवार को भूल, वह गुरुजी के पास सड़क के दूसरी तरफ दौड़ा। गुरुजी अपनी कार में बैठे हुए थे। गुरुजी ने कहा….. “बब्बू, …तुम गुरू को बुला कर फैक्ट्री के दरवाजे बन्द रखते हो?” बबू ने प्रार्थना की और बताया कि वह किसी को आवश्यक कार्य हेतु छोड़ने गया था और लेट हो गया। उसने आगे कहा, “गुरुजी, मैं आपका गुप्त निर्देश भूला नहीं हूँ कि मुझे आपका फैक्ट्री के गेट पर स्वागत करना है। देर हो जाने के कारण ही मैं स्कूटर तेज़ चला रहा था।” गुरुजी मुस्कुराये और कहने लगे,
“….ठीक है। मैं फैक्ट्री के बाहर खड़े सभी कर्मचारियों को पचास-पचास रुपये दे आया हूँ।” उन्होंने कुछ और पैसे बलू को दिये और कहा,
“जो कर्मचारी वहाँ उपस्थित नहीं थे उनको भी दे देना।” उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और चले गये। इस काम में करीब एक मिनट का ही समय लगा होगा। गुरूजी के जाने के बाद जैसे ही वह पीछे मुड़ा, तो देखकर दंग रह गया कि वहाँ सड़क पर कोई भी नहीं है। ना ही वह व्यक्ति, जिससे एक्सीडेन्ट हुआ था और ना ही उसका स्कूटर। वहाँ कोई भी व्यक्ति नहीं था। उसे और भी आश्चर्य तब हुआ जब उसने देखा कि उसका अपना स्कूटर भी गिरा हुआ नहीं था जैसा कि वह वहाँ छोड़कर गया था बल्कि अपने स्टैंड पर खड़ा है।
• यह किसने किया..!!
• गिरा हुआ स्कूटर अपने आप तो खड़ा हो नहीं सकता…!!
• जिसने यह कार्य किया, वह व्यक्ति कहाँ चला गया…!!
• क्या वास्तव में इस रचना के रचनाकार गुरूजी स्वयं तो नहीं थे, एक्सीडेन्ट हुआ भी था या नही…?
बार-बार पूछने पर बबू ने बताया कि वास्तव में उसका ही स्कूटर किसी दूसरे स्कूटर से टकराया था और उसके चालक को वह पीटने ही लगा था कि अचानक गुरुजी का ड्राईवर सीताराम आ गया। गुरुजी ने उसे डाँटा और निर्देश दिये। सब-कुछ वास्तव में हुआ था लेकिन किसी बात का वहाँ कोई निशान तक बाकी नहीं मिला।
• …कहीं यह सब गुरुजी की माया तो नहीं थी..?
• ….क्या इस दृश्य की रचना गुरूजी ने सिर्फ बब्बू को रोकने के लिए ही तो नहीं की थी…? क्योंकि उस समय वह सड़क की दूसरी तरफ था और उन दिनों मोबाईल फोन नहीं होते थे। इसीलिए गुरुजी ने उसे अपना संदेश देने का यह अद्भुत तरीका तो नहीं अपनाया…? लेकिन पूर्णतयाः मैं कुछ कह नहीं सकता। क्योंकि जो हुआ, ऐसा तो भगवान ही कर सकते है। बबू अपने स्कूटर से आगे चला गया और उस दिन के बाद काफी अनुशासन बद्ध तरीके से जीवन जीने लगा। वेदों के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवऋषि नारद को अपनी माया से अवगत कराने के लिए, इसी प्रकार की रचना की थी। इसलिए….
वाह…..! ….हे गुरुदेव…!!
हमें भी अपनी इस माया से
…अवगत करा दीजिए।