शायद सन् 1980 की बात है। मैं नहा रहा था कि अचानक मेरी पत्नी ने दरवाजा खटखटाया। असल में वह डर गई थी और यह जानकर सन्तुष्ट होना चाहती थी कि मैं ठीक तो हूँ ना। मेरे जवाब देने पर वह निरिंचत होकर बोली, “पता चला है कि जो कार आप कल्ब लेकर गये थे, उसमें साँप था।”
मुझे याद नहीं कि मैं डर गया था या फिर मैंने इस घटना को साधारण रुप से लिया। लेकिन मैंने अपने ड्राईवर को उसे बाहर फेंकने के लिये कह दिया।
अपने शोरुम जाते समय मैं साँप के बारे में सोचता जा रहा था। रास्ते में मैंने ड्राईवर से कहा कि वह कार कर्जन रोड पर स्थित, गुरुजी के ऑफिस की तरफ मोड़ ले। जैसे ही मैंने गुरुजी को साँप के बारे में बताया तो वे तुरन्त बोले,
“नहीं बेटा, इन दिनों में साँप तो तेरे सामने आ ही नहीं सकता।”
फिर उन्होंने ड्राईवर से पूछा तो उसने पुराने तौलिये में लिपटा हुआ साँप दिखाया। गुरुजी ने उसकी तरफ देखा और आदेश दिया कि वह उसे नजदीक की सूखी नाली में फेंक दे।
करीब एक हफ्ते के बाद गुरुजी कनॉट प्लेस में सीताराम जी के ऑफिस के सामने खड़े थे। देर शाम का समय था और उनके साथ उनके कुछ शिष्य, जिनमें सीताराम जी, आर. सी. मल्होत्रा जी और आर. पी. शर्मा जी तथा कुछ और अन्य शिष्य भी सड़क के किनारे खड़े हुए थे। वहाँ का माहौल कुछ ऐसा था कि गुरुजी, मल्होत्रा जी को किसी गलती के कारण डाँट रहे थे (क्या हुआ था, मालूम नहीं) परन्तु हम सब गुरुजी के इस मूड को देखकर सहमे से खड़े, गुरुजी की तरफ देख रहे थे।
एक सैकिण्ड से भी कम समय में वे उत्तेजित होकर मेरे ड्राईवर की तरफ मुड़े और कहने लगे—
“इधर आ ओय, कितने का खरीदा था सांप…?”
वह भी भौंच्चका सा रह गया। उसे कुछ नहीं सूझा और वह सच्चाई बताते हुए बोला, “…तीन रुपये का बापू ।”
गुरुजी ने पूछा—- “क्यों किया तुमने ऐसा… ?”
वह बोला, “मजाक किया था बापू ।”
गुरुजी बोले—
“अगर पुन्चु या कोई दूसरा बच्चा कार चला रहा होता और उसके सामने अचानक वो साँप आ जाता, तो वह डर कर अपना सन्तुलन खो देता और एक्सीडेन्ट हो जाता…! तो….?”
वे आगे बोले,—-
“तूने समझा था कि मुझे पता नहीं..? तुम मेरे शिष्य की सेवा करते हो इसलिए तुम्हें बक्श दिया मैंने। नहीं तो, उसी साँप से तेरे को डसवा सकता था। हालाँकि उसके दाँत नहीं थे।”
ड्राईवर और हम सब दंग रह गये और आश्चर्यचकित होकर समझने की कोशिश करने लगे कि गुरूजी ने एक सैकिण्ड में उस छुपी हुई सच्चाई को कैसे बाहर निकलवा लिया।
गुरूजी को सोचने की जरुरत नहीं थी। वह तो स्वयं विचारों के स्वामी हैं।
गुरुजी, आप इस वर्तमान युग में
प्रभुता के प्रभु हैं।
साष्टांग प्रणाम गुरुजी ।