यह पता लगने के बाद कि गुरुजी, गोल मार्किट में स्थित बक्शी बतरा जी के घर पर हैं, कृष्ण कुमार अपनी पत्नी को साथ लेकर गुरुजी के दर्शन करने के लिये वहाँ गया। कृष्ण कुमार ने बहुत से लोगों से गुरुजी की महानता के बारे में सुन रखा था। जिससे गुरुजी के प्रति उसके दिल में विश्वास पैदा हो गया था।
वहाँ पहुँचकर वे घर के पास, एक पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हुए किसी का इन्तजार करने लगे क्योंकि उसने उन्हें गुरुजी के दर्शन कराने का वादा किया था। इन्तज़ार का समय खिंचता हुआ दो घण्टे से भी लम्बा हो गया था। जिसका नतीजा यह हुआ कि कृष्ण कुमार की पत्नी स्वर्ण, स्वयं को असहज महसूस करने लगी। वह और अधिक देर वहाँ नहीं खड़ा रहना चाहती थी। अतः उसने अपने पति से वापिस चलने के लिए कहा क्योंकि वह थक गयी है और उससे और अधिक इन्तजार नहीं हो सकता।
वह पीपल का पेड़, बक्शी जी के घर से कुछ दूरी पर था। जब यह शब्द उसके मुँह से निकले कि वह थक गई है तभी अचानक पीछे से उसके कंधे पर किसी का हाथ आया। उसने पीछे घूम कर देखा तो पाया कि पीछे गुरुजी खड़े हैं और कह रहे हैं–,
“क्यों पुत, इतने में ही घबरा गई।”
उसे बहुत हैरानी हुई और आश्चर्य भी हुआ। वह बोली– “मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे विचार गुरुजी तक इस तरह पहुँच जायेंगे और दूसरा यह कि कैसे और कहाँ से गुरुजी प्रकट हो गये और आकर मेरे कंधे पर हाथ रख दिया।” उसने यह भी कहा– “मैंने उन्हें उस बिल्डिग से बाहर निकलते हुए नहीं देखा ।” एकाग्र मन से आपस में यही बात करते-करते वह दम्पति अपने घर चले गये कि उनके साथ यह कैसा चमत्कार हुआ
है?
फिर एक दिन यह दम्पति, अपने बहनोई के लिए जो बीमार था और गम्भीर अवस्था में था, गुरुजी का आशीर्वाद लेने गुड़गाँव स्थान पर आये।
स्थान पर पहुंचने पर उन्होंने गुरुजी से मिलने की इच्छा जाहिर की। लेकिन पूरन ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया। पूरन जो गुरुजी का मुख्य सेवादार था उसे गुरुजी का ऐसा ही आदेश था कि किसी को भी उनके कमरे में न आने दिया जाये। वे दम्पति मजबूर हो गये और उनके पास और कोई चारा भी नहीं था सिवाय इसके कि स्थान के बाहर इन्तज़ार किया जाये। उस समय वे अपनी बहन के घर, मरीज़ को लेकर बहुत चिंतित थे। कुछ ही मिनट बीते होंगे कि एक दूसरा सेवादार दौड़ता हुआ आया और उसने गुरुजी का आवश्यक संदेश दिया कि उन्हें तुरन्त अन्दर बुलाया है। जैसे ही उन्होंने अन्दर जाना चाहा तो पूरन ने दुबारा उन्हें रोक दिया। लेकिन दूसरे सेवादार ने पूरन को गुरुजी का संदेश बताया और उन्हें अन्दर जाने की इजाजत देने को कहा। जैसे ही उन्होंने गुरुजी को प्रणाम किया तो गुरुजी बोले, “पुत, जल्दी से चाय का प्रसाद लो और निकल लो, तुम्हारे पास टाईम बिल्कुल नहीं है।” जैसा उन्हें आदेश मिला और वे घर पहुंचे तो पता चला कि वह मरीज़ मृत्यु को प्राप्त हो चुका है और उनकी उपस्थिति घर में बहुत जरुरी थी।
गुरुजी उस मरीज की मौत का समय जानते थे इसीलिये उन्होंने उनको तुरन्त घर वापिस भेज दिया था।
…हे भविष्य के सम्पूर्ण ज्ञाता, गुरुजी महाराज, मैं आपसे विशेष कृपा की प्रार्थना करता हूँ।
मेरे मान्यवर प्रभु…।।