एक 6 वर्षीया लड़की, जो पहली कक्षा में पढ़ती थी अपने दाहिने घुटने की दर्द से परेशान थी, डॉक्टरों ने उसकी माँ से कहा कि बचपन में भाग्यवश पोलिओ की दवा दी जाने के कारण वह बच गयी है, नहीं तो उसे पोलिओ हो सकता था।
दर्द इतना असह्य था कि वह दो महीनों तक स्कूल नहीं जा सकी। फिर शुरु हुआ डॉक्टरी जाँच और एक्सरे का सिलसिला। दवाओं का सिलसिला चलता रहा। जब वह छठी कक्षा में पहुंची तो घुटने के नीचे पस होने के कारण डॉक्टरों ने ऑपरेशन करना ठीक समझा। परन्तु एक समस्या यह थी कि शायद बच्चे की टाँग का बढ़ना बन्द हो सकता था। अतः वे पस को सुखाने की दवाईयाँ देते रहे।
इस बीच उस लड़की के पिता, गुरूजी के शिष्य बन गये थे और समस्त परिवार के साथ उनके दर्शनों के लिए गुडगाँव जाने लगे। जब उस लड़की ने लोगों को ठीक होते देखा, तो उसने भी गुरूजी से अपने घुटने की दर्द ठीक करने की प्रार्थना की। इस पर गुरुजी ने अपने किसी शिष्य से दर्द ठीक करने को कहा। शिष्य ने ठीक तो किया, पर दर्द फिर लौट आता था। कभी कुछ दिनों में, तो कभी महीनों में दर्द वापिस आ जाता था।
फिर एक रोज़ उस लड़की ने गुरुजी से दर्द से सदैव छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। इस पर गुरुदेव मुस्कुराये और बोले, “ठीक है… आने वाले सूर्य ग्रहण के दिन ठीक कर दूंगा।”
यह शिवपुरी स्थान की बात है, सूर्य ग्रहण के दिन गुरुजी हम सभी को लेकर स्थान की छत पर गए। उनके शिष्य आर.पी. शर्मा जी ने अपने हाथ से उस लड़की के घुटने को पकड़ा और ज़ोर से दर्द को खींचते हुए पैर के अंगूठे तक ले आये। यह नवम्बर 1977 की बात है। …बस, इसके बाद न तो दर्द ही उठी और न ही किसी दवा का जिक्र ही आया।
वाह क्या निर्णय है…!
कैसा अधिकार है….!
…जो न कभी साहित्य में देखा गया,
…और न ही भौतिक विज्ञान में!
ऐसी महारथ, …ऐसा प्राधिकरण और
इस अंदाज़ में… !!
ऐसे दया निधान और कृपालु हैं गुरुदेव। कभी न ठीक होने वाली बीमारी, कितनी सहजता से ठीक कर देते हैं।
एक आप ही हो, …हे महागुरुदेव !!