सन् 1989 की बात है। मोन्टी सेठ और उसके माता-पिता, गुड़गांव के सैक्टर 7 वाले स्थान पर गये और मोन्टी सेठ ने गुरुजी से अपनी माँ की सेहत के लिए कृपा करने की प्रार्थना की। वास्तव में वह हमेशा बीमार रहती थी और उसे जल्दी-जल्दी पेटदर्द की शिकायत होती रहती थी तथा रोज़-रोज़ दर्द-निवारक दवाईयाँ (Pain Killers) ले-लेकर तंग आ चुकी थी। इसी कारणवश मोन्टी अपनी माँ को लेकर अपने पिता के साथ, गुरुजी के पास गया था।
भाग्यवश गुरुजी प्रसन्न मुद्रा में बैठे थे। जब उसने गुरुजी को दर्द-निवारक दवाईयों (Pain Killers) से तुरन्त राहत के लिए प्रार्थना की, तो गुरुजी बोले—-
“ठीक है….!! इसे मैं अभी ठीक करता हूँ।” उन्होंने इन्दु को बुलाया और माताजी द्वारा बनाया गया चूरण मंगवाया। गुरुजी ने उसमें से थोड़ी सी मात्रा लेकर उसे दी और अगले दिन रात 10 बजे खाने के लिए कहा। अगले दिन उसने वह चूरन खा लिया और 10-15 मिनट में ही 7-8 रसौलियाँ उसके गर्भाशय से बाहर आ गई। यह एक बहुत बड़ा आश्चर्य था जबकि इन रसौलियों को बाहर निकालने के लिए डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने की सलाह दी हुई थी।
अब सन् 2012 है। 22 साल बीत चुके हैं ऐसा दर्द या ऐसी कोई समस्या उसके सामने दुबारा नहीं आई। यह सोचने का विषय है कि इतनी सारी रसौलियों (Tumor) को पेट के अन्दर पनपने में कितना समय लगा होगा…!! …और यह अन्दाजा लगाना भी मुश्किल है कि कैसे माताजी द्वारा बनाया गया चूरन जो गुरूजी अक्सर पेट की गैस के लिए दिया करते थे, उसकी एक चम्मच खुराक से इतनी सारी रसौलियाँ (Tumor) बाहर आ गईं……!! स्पष्ट है, कि गुरूजी ने कोई आध्यात्मिक आदेश ही दिया होगा कि उसने अपना काम कर दिया तथा रसौलियों (Tumor) को बाहर निकलने पर मजबूर होना पड़ा होगा, जो किन्हीं दवाईयों द्वारा सम्भव नहीं था।
गुरूजी का एक और चमत्कार, इसी सेठ परिवार ने दिसम्बर 24, 1990 को देखा। मोन्टी की माँ डॉक्टर सेहरा के अस्पताल में भर्ती थी। संयोगवश उन दिनों गुरूजी, पंजाबी बाग में अपने ऊपर के कमरे में थे। मोन्टी उनके पास आया और उसने गुरुजी से प्रार्थना की। गुरुजी के पूछने पर मोन्टी ने अपनी माँ को अस्पताल ले जाने का कारण बताया। उसने बताया कि हृदय में गहन समस्या से उनकी हालत चिंताजनक है। उनके हृदय की धडकन उच्चतम सीमा पर है, अतः डॉक्टर भी चिंतित हैं। डॉक्टर ने कहा है कि उन्हें गंगाराम अस्पताल ले जाओ लेकिन मोन्टी दौड़कर गुरुजी के पास आ गया और उन्हें स्थिति की गम्भीरता से अवगत करा दिया। गुरूजी ने मोन्टी से कहा, “तुम उसकी बांयी बाजू पकड़ो, बीच के जोड़ पर दबाव दो और तीन बार ऊपर की ओर सरकाओ। वह मूत्र त्याग कर देगी और मैं राज्जे (गुरुशिष्य) को भेज दूंगा फिर वो सम्भाल लेगा। उसके बाद तुम उसे घर ले जाना। गुरुजी के आदेशानुसार मोन्टी अस्पताल गया और उसकी कोहनी के अंदर के भाग पर दबाव डालकर वैसा ही किया जैसा गुरुजी ने कहा था। परिणाम स्वरुप उसने पेशाब कर दिया। अब मोन्टी उसे घर ले जाने की तैयारी करने लगा। उसके आचरण को देखकर डॉक्टर ने आश्चर्य से पूछा, “क्या तुम गम्भीर हो, क्या तुम अपनी माँ को जीवित नहीं देखना चाहते..?” उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें घर नहीं, गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। मोन्टी की बहन किरन भी वहाँ मौजूद थी। वह भी यही जानना चाहती थी कि उसने आगे क्या करने का विचार बनाया है…? मोन्टी ने दो टूक जवाब दिया और कहा कि वह वही कर रहा है जैसा गुरुजी ने उसे आदेश दिया है। वह उन्हें घर ले जा रहा है, …अभी।
सुनकर किरण परेशान हो गयी और वह उससे सहमत नहीं थी। लेकिन मोन्टी अपनी बात पर अटल था। अन्त में उसने डॉक्टरों से एक बार दुबारा ई.सी.जी. करने का अनुरोध किया। डॉक्टरों ने एक बार पुनः ई.सी.जी. परीक्षण किया, परिणाम बिल्कुल सामान्य थे। डॉक्टर बहुत चकित हो गये और मोन्टी से कहने लगे कि एक घन्टे में हुआ क्या है..? क्योंकि कुछ समय पहले हृदय की हालत बहुत चिंताजनक थी। उन्होंने आगे पूछा, “वह व्यक्ति कौन है, जो कुछ समय पहले यहाँ आया था …और उसने इसके साथ किया क्या था…?” उसकी माँ तो ठीक हो गई लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि कैसे…! यह कैसे सम्भव हो सकता है…! यह बात हजम नहीं होती। एक घन्टा पहले जो अत्याधिक खतरे में थी, सिर्फ एक घन्टे में ही वापिस बिलकुल ठीक हालत में आ गयी… और वह भी आवश्यक उपचार के बिना! …और आश्चर्यजनक बात यह कि हृदय की समस्या से पूरी तरह से बाहर है…!! डॉक्टर कहने लगा कि उसके जीवन और चिकित्सा क्षेत्र में यह एक रहस्य ही रहेगा। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा। मोन्टी के हाथों से उसकी कोहनी को दबाकर और बाद में मुझे वहाँ भेजकर क्या किया था गुरुजी महाराज ने कि चिन्ताजनक हालत में ऐसा सुधार हुआ कि मरीज़ आज 20-21 वर्ष बीत जाने के बाद भी ठीक-ठाक है। …..ऐसे और भी बहुत प्रश्न हैं जिनके उत्तर मेरे पास नहीं हैं। बस एक ही उत्तर है—
गुरुजी —सर्वज्ञ गुरजी।
आपको शत्-शत् प्रणाम …हे भगवन्
…हे गुरुओं के गुरू —अपनी कृपा बनाए रखना। …ऐ मालिक!