गुरुजी गुड़गांव में अपने शयनकक्ष में थे। उस दिन कुछ चुने हुए लोगों को, उनके दर्शन के लिए अनुमति दी गई थी। वहाँ मेरे भतीजे की पत्नी पिंकी को भी आशीर्वाद लेने का मौका मिला। गुरुजी बहुत प्रसन्न मुद्रा में थे। जब उसने गुरुजी के पवित्र चरण-कमल छुए, तो गुरूजी ने उसे आशीर्वाद दिया।
उन्होंने चारों ओर देखा, मुस्कुराए और व्यंग पूर्वक कहने लगे, इसके दो सुंदर जुड़वाँ लड़कों को तो देखो और फिर वे पिंकी की ओर देखने लगे। उसे पिछले साल हुई उस बातचीत और शब्दों को याद दिलाया, “…क्या मेरे भाग्य में संतान नहीं है? (क्या मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँगी…?)” और मैंने कहा था, “एक नहीं दो बेटे होंगे …और …ये रहे इसके दो बेटे ।” यह सुनते ही कि गुरुजी ने ये क्या कह दिया …मैं अपनी उन यादों में चला गया, जो पंजाबी बाग स्थान पर पिछले साल हुआ था। वह पल याद आ गया, जब मैं बैठा हुआ था कि स्थान पर पिंकी, बहुत दुखी मूड में मेरे पास आई और पूछने लगी, “मेरी किस्मत में क्या है? क्या मुझे कभी बेटा नहीं होगा…?” मैंने उसकी बात सुनी, उसे देखा और कहा था, “एक नहीं, तुम्हें दो बेटे होंगे।” —-अब गुरूजी ने उसे वही शब्द कहे। मैं अपने और गहरे विचारों में चला गया और थोड़ा हैरान हो गया कि यही शब्द तो मेरे द्वारा पिछले साल कहे गये थे…!! गुरुजी ने बिलकुल वोही शब्द दोहराए हैं …और कहा है कि उन्होंने कहा था। उनका दोहराना बिलकुल उन्ही शब्दों को इस बात की पुष्टि करता है कि वे गुरुजी ने ही कहा था …और मैं तनाव के साथ गहरी सोच में डूबा हुआ था क्योंकि शब्द तो मैंने कहे थे। और– अब हुआ एक चमत्कार— गुरूजी मेरी ओर मुड़े, थोड़ी देर के लिए मेरी आँखों में देखा और फिर कहा, “तू नहीं, वो मैं ही था, …राज्जे!” और मैं सुन्न हो उन्हें निहारता रहा। अविश्वसनीय और अद्भुत – ज्ञान के एक नए चरण की अनुभूति हो रही थी। और मेरी ‘मैं’ की धज्जियाँ उड़ रही थीं। यानि मैं जो कुछ भी करता हूँ वो मैं नहीं–अपितु गुरुजी ही होते हैं और वोही करते हैं और मैं समझता रहा कि मैं कर रहा हूँ….
कमाल है, यह सारा कार्य गुरुजी द्वारा किया और निदेर्शित था और मुझे पता तक नहीं चला…!!
….आफरीन गुरूजी …आफरीन।