मेरी बहन दमन प्रकाश, जो फरीदाबाद में रहती हैं अपनी टाँग में होने वाली तीव्र दर्द से परेशान थीं।
सौभाग्यवश, एक बड़े वीरवार के दिन वह गुडगाँव पहुंच गयी और गुरुजी को मिलने के लिए लाइन में लगकर अपनी बारी का इन्तजार करने लगी। कुछ घंटों के पश्चात् उनकी बारी आई और जब वो गुरुजी के सामने आई तो सिसक-सिसक कर रोने लगी और कहने लगी, “गुरूजी, यहाँ मुझे बहुत देर हो गई है और मेरे पति मेरा इंतज़ार करते-करते परेशान हो रहे होंगे, हालांकि उन्होंने आजतक मुझे कभी डॉटा नहीं, पर मुझे बहुत डर लग रहा है।” रोते-रोते उसने गुरुजी को यह भी बता दिया कि वह राजपॉल की बहन है। मेरी बहन की बात सुन और उसकी आँखों में आँसू देख कर गुरुजी ने बड़े स्नेहपूर्वक कहा, “पुत्त कुछ नहीं होगा और तेरा पति बिलकुल नाराज़ नहीं होगा तेरे साथ, …तू बिलकुल फिकर ना कर” …और उसी समय गुरूजी ने अपने छोटे भाई गुल्लू को, मेरी बहन को कार में फरीदाबाद, उनके घर तक छोड़ने का आदेश दे दिया।
गुरुजी का यह प्यार से परिपूर्ण व्यवहार देखकर मेरी बहन दंग रह गई। लम्बी-लम्बी लाइनों में हज़ारो की संख्या में खड़े स्त्री, पुरुष और छोटे-छोटे बच्चे जब गुरुजी के समक्ष पहुँचते तो उनके चेहरों पर कोई थकावट कभी भी ज़ाहिर नहीं होती थी। जब किसी की आँखों में आँसू देखते थे, खासतौर पर स्त्रियों के प्रति तो वे बहुत प्रेम और धीरज का प्रयोग करते थे। आज, 25 साल बीतने के पश्चात् भी मेरी बहन दमन प्रकाश इस सुंदर घटना और उन पर गुरुजी की उस विशेष कृपा का गुणगान करती हैं।
यह है गुरुजी की मुहब्बत—
अपने पास आए भक्तों के प्रति। आँसू भी पौंछे, अभयदान भी दिया और घर तक पहुँचाया भी।
—वाह …हे गुरुदेव — वाह ।
गुरुजी अपने चरणों की छाया में रहने देना
…सदा-सदा के लिये।