मैं अपने दरियागंज स्थित शोरुम में बैठा था कि अचानक मुझे श्री आर. पी. शर्मा जी (जो गुरुजी के प्रिय शिष्यों में से एक हैं) का फोन आया कि आपके लिए गुरुजी की तरफ से एक संदेश आया है कि गुरुजी मुम्बई से वापिस आ रहे हैं, उनकी फ्लाईट रात को आठ बजे पहुंचेगी, आप उन्हें लेने हवाई अड्डे पहुंच जाएं।
मैं शाम को 7:30 बजे ही, हवाई अड्डे पर पहुंच गया। वहाँ मैंने देखा, गुरुजी को लेने मेरे अलावा श्री सुरेन्द्र तनेजा, श्री आर. पी. शर्मा तथा और भी बहुत से लोग, पहले से मौजूद थे।
खैर… फ्लाईट आई, परन्तु उसके यात्रियों में गुरजी नहीं थे। हमने आपस में बातें करते हुए, नोटिस बोर्ड पर देखा वहाँ अगली फ्लाईट का समय 8: 30 बजे का था। किन्तु उस विमान के यात्रियों में भी गुरुजी नहीं थे। हम लोगों ने रात के 9 बजे तक इंतजार किया। लेकिन गुरुजी नहीं आये। मेरे गुरु भाई आपस में बातें करने लगे कि शायद गुरुजी की ये फ्लाईट छूट गई है या कोई और कारण है या तो फिर वे कल आयेंगे। उन सबने मिल कर यह फैसला किया कि अब हमें घर वापिस जाना चाहिए। लेकिन मैं, उनकी बातों से सहमत नहीं था।
शर्मा जी ने, मुझसे भी घर चलने को कहा, इस पर मैंने कहा, ”आपने ही मुझे गुरुजी का संदेश दिया था कि मैं गुरूजी को लेने हवाई अडडे पहुँचू। इसलिए, मैं तो यही रुकूँगा और गुरुजी को लिए बगैर घर वापिस नहीं जाऊँगा।” शर्मा जी कुछ नाराज से हो कर बोले— ”दो फ्लाईट तो आ चुकी हैं, और गुरुजी नहीं आये, तुम क्या यहाँ सारी रात बैठे रहोगे?” मैंने विनम्रता से उत्तर दिया—”मैं नहीं जानता।” मुझे सिर्फ गुरुजी के संदेश के, यही शब्द याद हैं कि…
”…राजपॉल आयेगा और मुझे हवाई-अड्डे से लेकर जायेगा।”
इसीलिए, मैं गुरुजी को लिए बगैर वापिस घर नहीं जा सकता। शर्मा जी, मेरी इस बात से नाराज हुए और बोले, ठीक है… जैसी तुम्हारी मर्जी…। लेकिन हम तो जा रहे हैं। वे बाकी लोगों के साथ अपने-अपने घर लौट गये। मैं गुरुजी के आने का, फिर से इन्तजार करने लगा।
करीब 11 बजे, एक सूचना प्रसारित हुई कि मुम्बई से एक फ्लाईट आई है। मेरी आँखें, आने वाली भीड़ में गुरुजी को तलाशने लगी। तभी मुझे एक हाथ में ब्रीफकेस पकड़े हुए, गुरुजी अपनी तरफ आते हुए, नजर आ गये। मैं बहुत आनन्दित हुआ और मुझे परम सुख की अनुभूति हुई। उस समय रात्रि के करीब 11: 30 बजे थे। मैने गुरुजी के चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया और वे बोले— ”तू अकेला है…!!, तू वापिस क्यों नही गया, जबकि
सभी लोग वापिस चले गये?”
मैंने उत्तर दिया— ”गुरुजी मुझे आपके आने का संदेश मिला था, इसलिए मैं, आपके आने की प्रतीक्षा कर रहा था।” गुरुजी बोले— ”जब मैं पहली दोनों फ्लाईटस में नहीं आया ….और सारे ही वापिस चले गये, तो तू क्यों नहीं गया?”
मैंने गुरुजी के पैर छुए और कहा—-
”गुरुजी, मुझे तो बस आपका संदेश ही याद था कि आप आ रहे हैं और मुझे आपको यहाँ लेने आना है।”
मैंने गुरुजी से पूछा—- ”गुरुजी, मेरी ये समझ में नहीं आ रहा कि आपकी तो इस फ्लाईट से आने की कोई उम्मीद ही नहीं थी” इस पर गुरुजी बोले—- ‘किसी वी.आई.पी. की वजह से, इस स्पेशल फ्लाईट की व्यवस्था की गई और बाकी लोगों के साथ, मुझे भी फ्लाईट मिल गयी।”
गुरुजी ने मुझे, फिर आशीर्वाद देते हुए कहा– ”अच्छा चलो।”
हम लोग गुड़गांव पहुंचे, जहाँ आदरणीय ‘माता जी’, गुरुजी का पहले से ही इंतजार कर रही थीं, जैसे कि वे जानती थी कि गुरुजी आने वाले हैं। उन्होंने माता जी को, मुझे चाय का प्रसाद देने के लिए कहा और फिर रात के 2 बजे तक, मुझे बहुत सी ज्ञान की बातें बताते रहे। इसके बाद उन्होंने मुझे, पंजाबी बाग वापिस जाने की अनुमति दी। साथ ही उन्होंने मुझे दूसरा आदेश भी दिया—”तुम स्थान वाले दीवान पर, जिस पर बैठकर तुम सेवा करते हो, उसी पर सो जाना” मैं घर पहुंचा और गुरुजी के आदेश का पालन करते हुए, करीब सुबह 4:00 बजे सोया।
मेरे लिए, ये कोई आम रात नहीं थी। इस रात मुझे, स्वप्न में क्या-क्या नज़ारे दिखाये, मैं वह सब कुछ, यहाँ लिखना तो चाहता हूँ, परन्तु उसके लिए मुझे अपने महा गुरुदेव जी की, आज्ञा लेना ज़रूरी है। मुझे बहुत खुः शी होगी, अगर आने वाले समय में मैं, आप सब के साथ अपने, वह अतुल्य अनुभव बाँट सकू।
शाम 7 : 30 से 11:30 बजे तक हवाई अड्डे पर, गुरूजी का इंतजार करुं, यह मेरे दिमाग की कोई उपज नहीं थी। बल्कि ये सब तो, गुरुजी की अपनी ही रचना थी। वे ही अपने शिष्यों को किसी ऐसे विशेष कार्य के लिए चुनते हैं और किसका चयन करना है, वह भी उन्हीं की मर्जी से होता है। उनकी मर्जी के खिलाफ हम कुछ भी नहीं कर सकते। हवाई-अड्डे पर मेरा अपनी मर्जी से रुकना, सम्भव नहीं था, अपितु ये तो, गुरुजी की मर्जी और उन्हीं का निर्णय था।
गुरूजी ने मुझे, अपत्यक्ष रूप से, यह आदेश दिया था कि ‘तुम घर नहीं जाओगे और मेरा, यहीं पर इंतजार करोगे।’