अपने नियमित कार्यक्रम के अनुसार, मैं अपने शोरुम जाने के लिए अपनी गाड़ी में बैठा और जाने के लिए निकलने ही वाला था कि मुझे किसी संत ने, जो साधू वेश में था, रोका और बड़े प्यार से टोकते हुए कहा, “हम आए और तुम चल दिये……?”
गाड़ी की खिड़की में से उसे देखते ही मैंने ड्राईवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा और उस संत को सम्बोधित करते हुए कहा, “क्यों, ….मैं अभी गया तो नहीं” …और फिर मैं गाड़ी से बाहर आ गया। इतने में रसोईया एक गिलास नीम्बू पानी ले आया, जो मैंने उसे दे दिया। उसने वह खुशी से पी लिया और मैंने भी मुस्कुराते हुए उसे अंदर चलने के लिए कहा।
वह मेरे पीछे-पीछे बगीचे के रास्ते स्थान वाले कमरे की ओर चल पड़ा। इस बीच कुछ बच्चे उस संत की ओर आकर्षित हुए और उसे पुकारने लगे। इस पर उसने कुछ फूल तोड़े और वो जामुन में बदल गए जिसे उसने मेरी भतीजी रश्मि को दे दिये। फिर और फूलों को आम बनाकर बाकी बच्चों को दे दिये। वह संत इस जादुई शक्ति का प्रदर्शन बड़ी मुस्कुराहट के साथ करता हुआ स्थान वाले कमरे में चला आया।
हमेशा की तरह मैं स्थान की गद्दी पर बैठा और वह अपने चेलों के साथ नीचे बिछे कॉलीन पर बैठ गया। शिष्टाचार के नाते मैंने उसे भोजन के लिए पूछा …तो उसने ‘हाँ’ कर दी।
मैंने रसोईये को भोजन लाने के लिए कहा। कुछ ही देर में जब एक प्लेट खाने की आई तो खाने से पहले संत ने उस रोटी की ऊपरी तह को खोला तो उसमें किशमिश थी जो उसने मुझे खाने को कहा। सुनकर मैंने कहा कि मैं केवल अपने गुरुजी का दिया हुआ ही खाता हूँ। इतने में वह किशमिश का दाना उड़ कर स्थान पर गिर गया, साधू ने मुझे उसकी ओर इशारा करते हुए उसे देखने और पहचानने के लिए कहा। मैं वहाँ से उठा और किशमिश का दाना उठाकर खा गया। उसने पूछा कि अब क्यूँ खाया तो मैंने जवाब दिया, “तुमने देखा नहीं यह स्थान पर था…! मैंने इसे वहीं से लिया है …यानि यह मुझे गुरूजी ने ही दिया है।”
बस अब तो उसने मेरी प्रशंसा में भजन गाना शुरु कर दिया अगले पाँच मिनट तक। उस भजन के शुरु के शब्द कुछ ऐसे थे…, “राजपॉल भगत, हमने तुझे दिल में बसाया है…” वह साधू कुछ मिनटों के लिये लगातार रचना करता गया और गाता रहा। वह जो कुछ भी गा रहा था वह सब मेरी दिनचर्या की बातें थी और जो कुछ भी कृपा, गुरूजी ने मुझपर की हुई थी उसी को गाता जा रहा था। उसकी इस जानकारी की उपलब्धि पर मैं हैरान था। उसमें कोई भी खोट नहीं थी। केवल सत्य ही था और कुछ नहीं। इसके साथ-साथ उसके इस संगीत की रचना में भी कोई कमी नहीं थी। मानों कि कोई बहुत अनुभवी संगीतकार हो। यह थी उस नौजवान साधू के साथ मेरी मुलाकात। शाम को जब मैं गुरुजी के पास पहुंचा तो मैंने उन्हें वह सब बड़ी उत्सुकता से बताया और उसके रहस्य की जानकारी प्राप्त करनी चाही तो गुरुजी ने उस पर कोई विस्तारपूर्वक जानकारी नहीं दी, बस मुस्कुरा दिए और फिर कुछ लोग, जो अंदर घुस आये थे, उनका ध्यान उनकी ओर हो गया।
आज जब वह दृश्य मेरी आँखों के सामने आता हैं तो ऐसा प्रतीत होता हैं कि गुरूजी ने कोई दिव्य शक्ति की उपलब्धि, मुझ तक पहुँचाने के लिए यह सब रचना की थी।
हालाँकि मेरे पास इस सब की कोई विशेष जानकारी नहीं है। यह जो कुछ भी हुआ वह बहुत ही असाधारण है, परन्तु मुझे गुरुजी से इस घटना के बारे में दुबारा जानने का मौका नहीं मिला।