सत्तर के दशक के शुरुआती दिनों में गुरूजी हिमाचल प्रदेश के पर्वतों में यात्राऐं किया करते थे। हालाँकि इन यात्राओं का कार्यक्रम उनके ऑफिस वाले बनाते थे, परन्तु इनकी रुपरेखा गुरुजी स्वयं तैयार करते थे। लेकिन यह होता अध्यात्मिक ही था। पहाड़ियो का सर्वेक्षण तथा वहाँ की मिट्टी के सैम्पल इक्कठा करना और इन सब की रिपोर्ट तैयार करने के इस ऑफिशियल कार्य के तुरन्त बाद, गुरुजी वहाँ एकत्र हुए लोगो की परेशानियाँ और समस्याऐं, दोनों को दूर कर देते थे।
कुछ दिनों के बाद वह अपने शिष्यों को बुलवाकर उन्हें गुरु और फिर भगवान बनाने की प्रक्रिया शुरु कर देते थे।
एक बार अपने टुअर्स के दौरान वे ज्वालाजी (जोकि माता ज्वालाजी का एक तीर्थ स्थल है।) में अपने कुछ शिष्यों के साथ कैम्प लगाये हुए थे, गुरुजी वहाँ पर सेवा शुरु करने का मूड बना ही रहे थे कि किसी ने आकर उनसे प्रार्थना की, “गुरूजी, यहाँ पर एक साधू है, जो बड़ी तकलीफ़ में है, तपस्या करते-करते वह पागल हो गया है और बहुत तोड़-फोड़ करता है। परेशान होकर, लोगों ने उसे लोहे की जंजीरों के साथ बाँध रखा है। कृपा कर आप उसे ठीक कर दीजिये।”
गुरुजी ने कहा, “अच्छा…! जाओ, उसकी जंजीरें खोल दो और उसे ले आओ।” यह सुन कर किसी ने कहा कि उसके संगल खोलना खतरनाक हो सकता है और बिना संगलो की मद्द के उसे यहाँ लेकर आयेंगे कैसे…!!”
गुरुजी ने कहा, “उसके संगल खोल दो और कहो कि मैंने बुलाया है।”
फिर 4-5 लोग मिलकर गए, उसके संगल खोले और कहा कि गुरुजी ने उसे बुलाया है।
अविस्वस्नीय जैसे ही उस पागल साधू ने गुरुजी का यह संदेश सुना उसके तेवर ढीले हो गये और वह तुरन्त शांत हो गया और उन लोगो के साथ हो लिया।
…वाह, गुरजी का सन्देश सुनते ही इतना बड़ा बदलाव…!! असम्भव सा था और लोग उसे लेकर गुरुजी के पास पहुंच कर प्रतीक्षा करने लगे।
गुरुजी अपने कमरे में एक-एक कर सब लोगो से मिल रहे थे जब आखिर में उसकी बारी आई तो गुरूजी ने एक सेवादार से दरवाजा बंद करने के लिए कहा और फिर गुरूजी और वह साधू उस बंद कमरे में कुछ देर तक रहे। लेकिन जब वह साधू बाहर आया तो उसे देखते ही हम सब हैरान रह गये।
सीतारामजी ने कहा,
“…राज्जे, जो आदमी अन्दर गया था और ये जो बाहर आया है, दोनों एक जैसे नहीं, बिलकुल ही अलग से लग रहे है। ऐसा अद्भुत क्या कर दिया है गुरुजी ने…!! उस साधू की सम्पूर्ण रुपरेखा, उसका व्यक्तित्व, सबकुछ जैसे फिर से जीवित हो उठा हो”
साधू ने टिप्पणी दी,
“यह और कौन हो सकते हैं…!!
जो हमेशा सिर्फ देते ही देते हैं,
लेते कुछ नहीं किसी से…!!
….ये तो खुद ही सबके स्वामी हैं।”
शत्-शत् प्रणाम …..गुरुजी