सन् 1985 की घटना है जब बहुत सारे लोग हरिद्वार जा रहे थे। रास्ते में एक बस के साथ टक्कर हुई और कार में बैठी मेरी बड़ी बेटी पुन्चू की टाँग की दो हड्डियाँ टूट गयीं। किसी दूसरी गाड़ी से लाकर उसे दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में दाखिल करा दिया गया।
हड्डियों का बड़ा डॉक्टर गुरुजी का भक्त था और उसने ऑपरेशन करने का प्लान बनाया। पुन्चू ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं थी लेकिन डॉक्टर पूरी तैयारी कर चुका था।
सिस्टम के अनुसार पुन्चू को ड्रेस पहनाकर और स्ट्रेचर पर लिटाकर ऑपरेशन-कक्ष के दरवाजे तक ले जाया गया।
अब एक अद्भुत घटना घटी। पुन्चू ने अपना कड़ा माथे पर लगाया और मन ही मन गुरुजी को पुकारा और प्रार्थना की, कि …हे गुरुदेव मेरा ऑपरेशन रोक दीजिये।
…थोड़ी देर में बड़ा डॉक्टर आया और कहने लगा कि उसने ऑपरेशन का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया है इसलिए मरीज़ को वापिस कमरे में भेज दो। तद्-उपरान्त उसे तख्ती (Splint) लगाकर पट्टी बाँध दी गयी।
आफरीन गुरुदेव, आपने दूर बैठे-बैठे अपने बच्चे की पुकार सुन ली और ऑपरेशन रोक दिया। …कुछ समय बीता और पुन्चू को तख्ती (Splint) लगी पट्टी के साथ ही घर ले आये।
एक रात को करीब तीन बजे कराहने की आवाज़ से मेरी नींद खुली। मैं भागा और देखा के पुन्चू फर्श पर गिरी, दर्द से कराह रही थी। मैंने उसे उठाया और वापिस बिस्तर पर लिटाया और धीरज बंधाते हुए कहा कि सुबह होते ही गुडगाँव चलेंगे गुरुजी के पास। इस तरह पुन्चू को लेकर करीब सात बजे हम गुरुजी के पास पहुंच गए और गुरुजी ने उसे छोटे कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया।
तकरीबन डेढ़-दो घंटे के इंतजार के बाद गुरुजी आये और कहने लगे, “…आ राज्जे, अब मैं इसकी टाँग की हड्डियाँ जोड़ता हूँ।”
टाँग में लोहे की तख्ती (Splint) लगी हुई थी जिसमें टूटी हुई टाँग को कसकर नीचे की तरफ से बाँधा हुआ था। गुरुजी कहने लगे, “…चल खोल इसे और टाँग को ढीला कर दे।” जैसे ही मैंने पट्टियाँ खोली गुरुजी ने अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर और दूसरा उसके घुटने के ऊपर रखा। गुरुजी कहने लगे, “…राज्जे दिखाऊँ तुझे कि हड्डी कैसे जोड़ी जाती है…?”
मैंने कहा, “…जी गुरुजी।”
उन्होंने हाथ नीचे की ओर खिसकाते हुए मुझसे कहा, “अपना हाथ जाँघ पर रख और खिसकती हुई हड्डी को महसूस कर। मैं दंग रह गया। मेरी हथेली के नीचे से बिलकुल साफ़ महसूस हुआ कि हड्डी नीचे कि ओर चल रही है।
गुरुजी आहिस्ता-आहिस्ता अपना हाथ नीचे की ओर खिसकाते जा रहे थे और मैं हथेली के नीचे से हड्डी का धीरे-धीरे खिसकना महसूस कर रहा था। बहुत बड़ा अचम्भा था यह मेरे जीवन में। मैंने कभी सोचा तक नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। कौनसी शक्ति का प्रयोग कर रहे थे गुरुजी, मेरी समझ से बहुत परे था। टॉग के ऊपरी भाग पर हाथ रख कर नीचे कि ओर खिसका रहे थे और हड्डी अंदर से खिसक रही थी। असम्भव–असम्भव ।
कुछ मिनटों के बाद कहने लगे, “ले बेटा, ऊपर चढ़ी हुई हड्डी अब आमने-सामने आ गयी है, अब इसे तख्ती (Splint) के साथ बाँध दे।” मैंने वैसा कर दिया। गुरुजी वहाँ से फिर दूसरे कमरे में चले गए जहाँ बहुत सारी पब्लिक उनका इंतज़ार कर रही थी।
बेटी को लेकर मैं दिल्ली, पंजाबी बाग वापिस आ गया। कुछ समय बीतने पर टाँग को तख्ती (Splint) से बाहर निकाल दिया गया और टाँग बिलकुल ठीक हो चुकी थी। कोई कह नहीं सकत था कि कभी इस टाँग में फ्रैक्चर हुआ था।
दिल और दिमाग, दोनों शक्तियाँ बिलकुल बेकार सिद्ध हुईं। जो गुरुजी ने किया, उसे समझने के लिए किसी अलग तरह के ज्ञान की आवश्यकता होगी, जो मेरे पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए, मैं हाथ जोड़, नत्-मस्तक होकर गुरुजी से प्रार्थना करता हूँ कि चिकित्सा विज्ञान में एक्सरे मशीन और कैमरे की सहायता से टी.वी. स्क्रीन पर देख कर पता लगता है कि हड्डी ऊपर से उतर कर आमने-सामने आ गयी है, तभी अगली कार्यवाही (Action) करते हैं और डॉक्टर लोग तख्ती (Splint) से बाँध देते हैं। …लेकिन
गुरुजी के पास कौन सा कैमरा था जिसे देख कर उन्होंने मुझे आदेश दिया था कि “राज्जे, हड्डी ऊपर से उतर कर सामने आ गयी है, अब बाँध दे इसे तख्ती (Splint) के साथ।”
सभी दिशाओं और समस्त देवी-देवताओं को सम्मिलित कर मैं आपको माथा टेकता हूँ।
प्रणाम स्वीकार कीजिये …गुरुवर