माताजी ने शिष्यों को लुभाने और उन्हें उनके आध्यात्मिक लक्ष्यों तक पहुंचाने का कार्य चुपचाप किया।
शक्ति की अवधि, दीवाली पूजा की रात के बाद सुबह से शुरु होती है। क्योंकि गुरुजी स्वयं शिव हैं इसलिए शिवरात्रि तक शिष्यों के साथ शारीरिक संपर्क से बाहर रहते थे। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में शिष्यों से मिलना आवश्यक हो तो गुरजी रुमाल से अपने माथे को ढककर मिलते थे और अपने शिष्यों को भी इस अवधि में भक्तों से मिलने के लिए इसी तरह के नियम का पालन करने का निर्देश देते थे। इस अवधि को गुरुजी द्वारा ‘शक्ति की अवधि’ (Shakti Period) का नाम दिया गया है।
गुरुजी के आदेशानुसार शिष्यों को सेवा जारी रखनी होती है, लेकिन क्योंकि भगवान शिव समाधि अवस्था में रहते हैं इसलिए माँ शक्ति की आध्यात्मिक शक्तियों का ही प्रयोग किया जा सकता है। यह शक्तियाँ माताजी से ही उपलब्ध हो सकती हैं, इसलिए शिष्यों को माताजी से सम्पर्क करना आवश्यक है ताकि उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी सेवा बिना किसी कमी के जारी रख सकें। इसी कारण गुरूजी ने आदेश दिया कि सब शिष्य कम से कम ग्यारह बार गुड़गाँव स्थान पर चक्कर लगाएं और माताजी से प्रणाम करके आशीर्वाद प्राप्त करें।
यह अवधि गणेश चर्तुथी तक होती है। माताजी बड़ी दयालु हैं। उन्होंने सोचा कि गलती से कहीं कोई ग्यारह से कम चक्कर न लगाएं इसलिए उन्होंने एक कमाल का तरीका अपनाया। एक दयालु और देखभाल करने वाली माँ होने के नाते, मातारानी यह जानती हैं इसलिए उन्होंने एक नायाब तरीका अपनाया ताकि शिष्य स्थान पर उनके पास आयें और उनका आशीर्वाद, उनको दिया जा सके। मातारानी ने सभी शिष्यों को बुलाया और घोषणा की, “कल मैंने सरसों का साग बनाना है। इसलिए सभी आ जाना। मक्की की रोटी भी पकाऊँगी।”
वे यह अच्छी तरह से जानती थी कि सरसों का साग हममें से कईयों की कमजोरी है। हम सब के लिए यह एक विशेष दावत किसी उत्सव से कम नहीं थी और वो भी तब जबकि मातारानी द्वारा खुद दी जाये। इसके लिए तो किसी अन्य कार्यक्रम को भी स्थगित किया जा सकता था। अतः “मातारानी” जब कभी हमारा गुड़गाँव का दौरा कराना चाहती, वे साग और मक्की की रोटी पकाती और हमें तद्नुसार सूचित कर देतीं और हम स्थान पर पहुंच जाते तथा माँ का दिव्य आशीर्वाद लेते और साग और मक्की की रोटी का आनन्द भी लेते। एक बढ़िया तरीका था उनका, हम पर आशीर्वादों की बौछार करने का। …क्या विशेष माँ है और क्या रास्ता अपनाया उन्होंने। माता जी ने हमारा इतना ख्याल रखा और दीवाली से गणेश चर्तुथी के दौरान ग्यारह बार स्थान का दौरा पूर्ण करने में हमारी मदद की। यह सिर्फ आध्यात्मिक उत्थान के लिए, हमारे लिए किया। गुरुजी ने बताया कि आध्यात्मिक उत्थान के लिए, स्थान पर पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण और अत्यन्त आवश्यक है। जब भगवान शिव समाधि में प्रवेश करते हैं तो शिवरात्रि तक उसी अवस्था में रहते हैं। प्रभु जब वापिस जाग्रत अवस्था में आते हैं तो सम्पूर्ण जगत और खासकर वे लोग जो उन्हें प्यार करते हैं और उनकी पूजा की प्रतीक्षा करते हैं, वे कुछ महीनों तक इस अवधि में, महाशिवरात्रि के इस शुभ दिन की मिनट दर मिनट रात के 12 बजे के समय की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा करते हैं।